भारत-जापान परमाणु समझौता उस बड़ी डील की आख़िरी बची हुई कड़ी है जिसके इर्द-गिर्द देश की राजनीति पिछले दस साल से घूम रही है. बाकी सारे समझौते संपन्न होने, किसानों से ज़बरदस्ती ज़मीन छीने जाने और आयातित अणु-बिजलीघरों के लिए पर्यावरण, सुरक्षा और पारदर्शिता के कायदे ताक पर रख दिए जाने और परमाणु दुर्घटना की स्थिति में मुआवजे का भार विदेशी कंपनियों पर न डालने के निर्लज्ज वादों के बावजूद अमेरिका और फ्रांस के परमाणु प्रोजेक्ट अभी तक अटके पड़े हैं. उनके डिज़ाइनों में कुछ ऐसे पुर्ज़ों की ज़रुरत होती है जो सिर्फ जापान बनाता है. फुकुशिमा के बाद पूरी दुनिया में परमाणु लॉबी का कारोबार आख़िरी सांस ले रहा है और उनको भारत में अपना बाज़ार बढ़ाने के लिए जापान-भारत परमाणु समझौते की सख्त दरकार है. परमाणु-विरोधी आन्दोलनों और जैतापुर, मीठीविर्दी, कोवाडा तथा कूडनकुलम के किसानों यह आख़िरी मौक़ा है अपना विनाश रोकने का.
परमाणु डील पर ही वाम और कांग्रेस की दूरियां इसी मुद्दे पर बढ़ीं और दक्षिणपंथ को निर्णायक बढ़त मिली। अपनी चुप्पी लिए विख्यात एक प्रधानमंत्री ने अमेरिका के साथ परमाणु डील पर अपनी सरकार दांव पर लगा दी. भ्रष्टाचार हाल के वर्षों में बड़ा मुद्दा रहा है, लेकिन कुछ ही लोगों ने इस बात को मुद्दा बनाया कि अमेरिकी राजदूत ने सीधे पक्ष-विपक्ष सांसदों से इस डील के लिए लॉबींग की और इस सिलसिले में नोटों की गड्डियां संसद में लहराने से देश शर्मसार हुआ. विपक्ष में इन डीलों का विरोध करने और परमाणु-उत्तरदायित्व क़ानून से छेड़छाड़ को देशद्रोह बताने वाली भाजपा की मौजूदा सरकार पूरी तरह यू-टर्न/मोदी-टर्न मार चुकी है और साहेब की हर विदेश यात्रा में मनमोहन सिंह के दौर के परमाणु समझौतों की पुष्टि किसी तमगे की तरह जुड़ी होती है.
भारत-जापान परमाणु समझौते का जापानी प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान ११ से १३ दिसंबर तक पूरे देश में विरोध होगा। इस मौके पर जनपथ विशेष रूप से अपने पाठकों के लिए भारत और जापान के बीच होने वाली इस डील से जुड़े आलेखों की एक श्रृंखला लगातार पेश करेगा जिसमें अलग-अलग आयामों से यह समझाने की कोशिश होगी कि यह डील इस देश की जनता के लिए क्यों और कैसे नुकसानदायक है और इसका विरोध क्यों किया जाना चाहिए। इस टिप्पणी समेत यह आलेख हमारे लिए विशेष रूप से कोलीशन फॉर न्यूक्लियर डिसार्मामेंट एंड पीस से जुडे परमाणु विरोधी एक्टिविस्ट कुमार सुंदरम लिखेंगे।
इस श्रृंखला की पहली कड़ी से पहले हम अपने पाठकों से अपील करते हैं कि वे नीचे दिए गए लिंक पर जाकर परिचयात्मक टिप्पणी को पढ़ें और कोलीशन फॉर न्यूक्लियर डिसार्मामेंट एंड पीस द्वारा जारी एक पेटिशन पर दस्तखत करें। आप इस श्रृंखला को पढ़ने के बाद व्यापक समझदारी बनाने के बाद भी दस्तखत कर सकते हैं।
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