पीपॅल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (परी) इसके संस्थापक पत्रकार पी.साइनाथ के साथ एक संवाद के लिए आपको आमंत्रित करता है। साइनाथ परी के बारे में आपको जानकारी देंगे और देश में शुरू की गई अपने किस्म की इस पहली वेबसाइट से जुड़ी आपकी जिज्ञासाओं के जवाब देंगे।
तारीख: 5 जनवरी 2015
समय: शाम 3.00-6.00 बजे
स्थान: इंडिया इंटरनेशनल सेंटर, सेमिनार हॉल 1,2,3, कमलदेवी ब्लॉक (न्यू ब्लॉक), प्रथम तल
पीपॅल्स आर्काइव ऑफ रूरल इंडिया (परी) आम लोगों की रोज़मर्रा की जि़ंदगी का एक जीवन्त रोजनामचा है और इसे रिकॉर्ड करने का एक लेखागार भी है। यह काम कई मामलों में इस धरती के सबसे जटिल और विविध हिस्से में किया जाना है: ग्रामीण भारत में, जहां 83.3 करोड़ इंसान बसते हैं, 780 जि़ंदा भाषाएं हैं, बहुविध संस्कृतियां हैं और अद्वितीय किस्म की पेशागत विविधताएं हैं। परी एक ऑनलाइन लेखागार है जिसका उद्देश्य एक ही वेबसाइट पर तमाम अलग-अलग दुनियाओं को संग्रहित करना है। ग्रामीण भारत को रिपोर्ट करने के लिए मैग्सेसे पुरस्कार से नवाज़े गए पत्रकार, लेखक और पत्रकारिता के शिक्षक पी. साइनाथ का यह उपक्रम है।
परी वीडियो, छायाचित्रों, ऑडियो और लिखित सामग्री का एक मिश्रित लेखागार है। अब तक तमाम स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं ने इस दिशा में काफी प्रभावशाली सामग्री एकत्रित की है, लेकिन वेबसाइट पर जल्द ही प्रकाशित होने वाली सामग्री का वह एक छोटा सा अंश है। छायाचित्रों का लेखागार ग्रामीण भारतीयों की 8,000 श्वेत-श्याम डिजिटल तस्वीरों से युक्त होगा, जिसमें लोगों के पोर्ट्रेट, परिवार, घरों के अलावा उनके पेशे और श्रम से जुड़ी तस्वीरें होंगी। ग्रामीण भारत की हज़ारों तस्वीरों के अतिरिक्त ये सारी तस्वीरें समय के साथ साइट पर अपलोड की जाएंगी। वेबसाइट की एक विशिष्ट सामग्री ”बोलते हुए एलबम” हैं जिनमें किसी विषय पर केंद्रित तस्वीरों के साथ छायाकारों के दिए हुए ”ऑडियो कैप्शन” लगे होंगे।
परी के लिए विशेष तौर से बनाए गए वीडियो में ग्ररीबों और आम लोगों की जिंदगी और आजीविका को रिकॉर्ड किया गया है। उदाहरण के लिए, खेतों में काम करने वाली एक महिला श्रमिक अपनी जिंदगी, अपने काम, श्रम से जुड़ी तकनीकों, परिवार, रसोई और जो कुछ भी वह ज़रूरी समझती है, उनकी झलक आपको दिखाएगी। इसलिए ऐसी किसी भी फिल्म का पहला श्रेय उसे जाएगा और दूसरा उसके गांव और समुदाय को जाएगा। निर्देशक इस कड़ी में तीसरे स्थान पर आता है। परी इस तरीके से समूची कहानी का स्वामित्व उक्त महिला को देता है। हम उन तरीकों की तलाश कर रहे हैं जिनसे गांव के वे लोग जिन्हें हम कवर कर रहे हैं, उन्हें इस वेबसाइट के निर्माण में और इस तक पहुंच में भागीदारी दी जा सके।
इस साइट में एक ”रिसोर्सेज़़” नाम का खंड है जहां हमारा उद्देश्य ग्रामीण भारत से जुड़ी प्रत्येक रिपोर्ट/अध्ययन को लिखित रूप में विस्तार से दर्ज करना है (सिर्फ लिंक के सहारे नहीं)। ज़ाहिर तौर पर हम पहले से प्रकाशित और विशेष तौर से परी के लिए लिखे गए हज़ारों लेखों को भी वेबसाइट पर डालेंगे। इसके अलावा साइट के ‘ऑडियो ज़ोन” में समय के साथ हम हज़ारों क्लिप डालेंगे जिनमें उन तमाम भारतीय भाषाओं में संवाद, गीत, कविताएं आदि शामिल होंगे जिन्हें हम रिकॉर्ड कर सकते हैं। हमारे कार्यकर्ता प्रत्येक वीडियो डॉक्युमेंट्री के लिए एकाधिक भारतीय भाषाओं में सब-टाइटिल तैयार करने में जुटे हुए हैं।
ग्रामीण भारत बेहद संपन्न और अतुलनीय विविधताओं और सृजनात्मकताओं का एक स्रोत है। यह तमाम विस्मयकारी, पिछड़ी और बर्बर प्रवृत्तियों का भी स्थल है। परी का काम दोनों पहलुओं को दर्ज करना है (उदाहरण के लिए, छायाचित्रों के लेखागार में उन सैकड़ों परिवारों का रिकॉर्ड दर्ज होगा जो इतिहास में अब तक की सबसे बड़ी आत्मघाती लहर का शिकार बने हैं)। हमारा उद्देश्य सामान्य लोगों की कहानियां उन्हीं की जुबानी दर्ज करना है, फिर चाहे वे कहानियां कितनी ही लंबी क्यों न हों।
हमारा मानना है कि सीखने और सिखाने की प्रक्रिया पर परी का प्रभाव व्यापक होगा। वास्तव में हम जिस लक्षित वर्ग की तलाश में हैं, उनमें शिक्षक और विद्यार्थी सबसे अहम हैं। हमारा एक उद्देश्य यह है कि विद्यार्थी खुद अपनी ‘पाठ्य पुस्तकों’ के निर्माण में भागीदार बनें। वे ऐसे काम कर सकें जिनका मूल्यांकन उनके शिक्षक भी कर सकें।
छायाचित्रों की एक श्रेणी में हमें पहले ही देश भर के युवाओं से योगदान मिलना शुरू हो चुका है। छायाचित्रों की यह दीर्घा देश के प्रत्येक जिले से ‘चेहरों’ को जुटाने पर केंद्रित है। इन तस्वीरों में कामगारों, भूमिहीन श्रमिकों, हाशिये के उत्पादकों, गरीब शिल्पकारों और हर किस्म के सामान्य लोगों की तस्वीरें शामिल हैं। इस लेखागार को बनाने में परी को स्वैच्छिक कार्यकर्ताओं की ज़रूरत है।
परी को निशुल्क देखा जा सकता है। इस साइट का संचालन काउंटरमीडिया ट्रस्ट कर रहा है। एक अपेक्षाकृत ज्यादा अनौपचारिक इकाई काउंटरमीडिया नेटवर्क इस ट्रस्ट की प्राथमिक गतिविधियों को सहयोग और अनुदानित करता है। इसके लिए सदस्यता शुल्क, कार्यकर्ताओं के नेटवर्क, चंदा और निजी योगदान का सहारा लिया जाता है। संवाददाताओं, पेशेवर फिल्मकारों, फिल्म संपादकों, छायाकारों, लेखकों, वृत्तचित्र निर्माताओं, टीवी, ऑनलाइन और प्रिंट के पत्रकारों का यह नेटवर्क परी की सबसे बड़ी थाती है। इनके अलावा इसे खड़ा करने और साइट को डिज़ाइन करने में कई अन्य क्षेत्रों के पेशेवर लोगों, अकादमिकों, शिक्षकों, शोधार्थियों व तकनीकविदों ने निशुल्क अपनी मदद दी है। स्वैच्छिक प्रयासों से पार जाकर सामग्री संग्रहित करने में परी को पैसों की ज़रूरत होगी और इसके लिए हमारा लक्ष्य क्राउड सोर्सिंग से पैसा जुटाना है। ग्रामीण भारत इतना विशाल है कि इसे पूरी तरह कभी भी ”संकलित” नहीं किया जा सकता और परी का काम व्यापक यथार्थ को टुकड़ों में कैद करना है। इसलिए लोगों की ज्यादा से ज्यादा भागीदारी से ही हम अपनी कवरेज को विस्तार से सकते हैं।
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