हमें हिसाब चाहिए
(गीतकार: पीयूष बबेले, वरिष्ठ पत्रकार, इंडिया टुडे)
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए,
हम पूछते हैं आपसे
हमारा क्या गुनाह है,
करे कोई, भरे कोई
ये कौन सा इंसाफ है,
हमारी ये खता रही
के तुमको ही बनाया पीर,
भुगत रहे हैं आज हम
तुम्हारी मीठी बोलियां,
तुम्हारे बेचे ख्वाब भी
खड़े हैं संग कतार में,
हमें जवाब चाहिए
हमें हिसाब चाहिए.
तुम्हीं कहो, तुम्ही सुनो
तुम्हारी सारी भीड़ है,
तुम्हारी सारी बस्तियां
तुम्हारे लोग हर तरफ,
मगर हुजूर अर्ज है
हम भी तो हैं जहान में
हमारा भी वजूद है
माना के हम पामाल हैं,
माना के हम गरीब हैं
माना के हम कुछ भी नहीं,
मगर करें हुजूर क्या
हमें भी सांस चाहिए.
खड़े हैं हम कतार में
हमें सुराज चाहिए.
पढ़े-लिखे हैं आप तो
हैं आप तो प्रकांड भी,
जेहन पर जोर डालिये
माजी को कुछ खंगालिये,
वहां मिलेंगे आपको
बगावतों के सिलसिले
वो जुल्म की मुखालफत
वो रोशनी के काफिले,
सितमगरों के मकबरे
कहानियां सुनायेंगे,
हूजूर गौर कीजिए
हमें वकार चाहिए
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए.
हुजूर आप जान लें,
इस रास्ते को छोड़ दें
ये तिकड़में दफा करें,
बहुत हुआ घमंड अब
नजर उठा के देखिए,
ये कायनात जो भी है
हमारे दम से रोशन है,
अगर बिगड़ गए जो हम
तो फिर संभल न पाओगे,
ये ऊंची-ऊंची बोलियां
भक्तों की पागल टोलियां,
सिपाहियों की गोलियां,
हमें न रोक पाएंगीं.
हुजूर जान जाइये
हुजूर मान जाइये
खड़े हैं हम कतार में
हमें हिसाब चाहिए.
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