शिक्षा का लोकतान्त्रिक मूल्य और डॉ. भीमराव अम्बेडकर

डॉ. भीमराव अम्बेडकर द्वारा दिया गया सूत्र ‘शिक्षित बनो, संगठित रहो और संघर्ष करो’ इस सूत्र में ही उनके संघर्षपूर्ण जीवन का व उनके शैक्षिक विचारों का सारांश छिपा हुआ है।

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भारतीय संविधान : हाशिये के समाज का मैग्नाकार्टा

आज के समय में हाशिये के समाज में तमाम सामाजिक विद्रूपताएं व समस्याएं दिखाई देती हैं। इसका कारण यह भी है कि संविधान द्वारा मिला हुआ कानूनी प्रावधान इन्हें उचित तरीके से नहीं मिल सका है जिसके वह वास्तव में हकदार थे।

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सावित्री बाई फुले को सिर्फ अतीत में नहीं बल्कि वर्तमान में देखने की जरूरत है

सावित्री बाई फुले को सिर्फ इस लिहाज से न देखा जाए कि वह एक दलित महिला थीं और उन्होंने कुछ स्कूलों की स्थापना की। उनका योगदान सिर्फ कुछ जातियों के विकास तक नहीं सीमित है। सावित्री बाई फुले अपने आपको एक मनुष्य की दृष्टि से देखती थीं।

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योगी सरकार के संस्कृति विभाग द्वारा सह-प्रायोजित मंच पर साहित्य अकादमी से सम्मानित तीन कवि

कार्यक्रम की शुरुआत हुई अखिल भारतीय कवि सम्मेलन से. इस कवि सम्मेलन में तीन-तीन साहित्य अकादमी विजेता कवियों ने भाग लिया. देश के प्रख्यात कवि लक्ष्मी शंकर बाजपाई, लीलाधर मंडलोई और सविता सिंह ने काव्य प्रस्तुति से एक बेहतरीन समा बाँधा.

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एक मई: दुनिया भर के धन्नासेठ आज भी जिस दिन से डरते हैं!

अमेरिका में कमजोर पडऩे के बावजूद, दुनिया के हर देश के करोड़ों मजदूर मई दिवस को एक ऐसे दिन के तौर पर मनाते हैं जब वे मजदूर वर्ग के रूप में अपनी मांगों को उठाते हैं।

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डॉ. आंबेडकर के प्रति मेरा नजरिया कैसे बना!

हम जिस जाति में जन्म लेते हैं उस जातिगत दंभ का प्रभाव हमारे समाजीकरण पर पड़ता है। सामाजिक सोच और दृष्टिकोण को निर्मित करने में जाति एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। ऐसा अवसर भारतीय जाति व्यवस्था में हर जाति को प्राप्त है क्योंकि हर जाति के ऊपर- नीचे कोई न कोई जाति है जहां एक जाति अपने से उच्च जाति की क्रियाविधि से हीनता का बोध ग्रहण करती है, वहीं अपने से निम्न जाति के प्रति व्यवहार करके श्रेष्ठताबोध को महसूस करती है।

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आज होमियोपैथी की जरूरत क्यों है?

हमें यह भी सोचना होगा कि एक तार्किक चिकित्सा प्रणाली को मजबूत और जिम्मेवार बनाने के प्रयासों की बजाय वे कौन लोग हैं जो इसे झाड़ फूंक, प्लेसिबो या सफेद गोली के जुमले में बांधना चाहते हैं? यदि ये एलोपेथी की दवा और व्यापार लॉबी है तो कहना होगा कि उनका स्वार्थ महंगे और बेतुके इलाज के नाम पर लूट कायम करना और भ्रम खड़ा करना है।

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भारतीय आलोचना का विद्रूप दोहरे अलगाव की देन है: मदन सोनी

गोष्ठी में दो दिनों तक इन मुद्दों पर जमकर चर्चा हुए। कई नई स्थापनाएं सामने आईं, कई समस्याग्रस्त पदों पर नई रोशनी पड़ी, अनेक मुद्दे अनसुलझे भी रहे। गोष्ठी का उद्घाटन वक्तव्य अशोक वाजपेयी ने दिया।

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अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर महिला समाज सुधारकों के संघर्ष को याद करते हुए

8 मार्च अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस के अवसर पर सावित्री बाई और फातिमा शेख जैसी महान नारियों के योगदान को याद करना हम सब के लिये गर्व की बात है।

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रेणु की जयंती पर ‘मैला आँचल’ को पढ़ते हुए…

बाकी लोगों की तरह मैं केवल डॉक्टर प्रशांत और कमला को इस पुस्तक के नायक-नायिका के तौर पर नहीं देखती। मुझे लगता है कि इस पुस्तक का कोई एक नायक अथवा नायिका नहीं है। इसमें 250 से अधिक पात्र अपनी अपनी दुनिया के नायक हैं।

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