गांधी ने कहा था- अखबारवाले बीमारी के वाहक बनते जा रहे हैं!

काम के अतिशय बोझ के चलते उन्हें देर रात तक या फिर सुबह से ही काम करना पड़ता था। वे अकसर चलती ट्रेन में लिखते थे। जब उनका एक हाथ लिखने से थक जाता तो वे दूसरे हाथ से लिखने लगते। तमाम व्यस्तताओं के बीच भी वे रोजाना तीन से चार लेख लिखते थे।

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फूलदेई: फूलों और फूल जैसे बच्चों के नाम पहाड़ों का एक त्योहार

यह पर्व सर्दी का अंत और हल्की-हल्की गर्मी का आगाज़ होता है, जब मौसम अधिक रोमांचित हो जाता है, जिस समय हर पहाड़ों पर नए-नए फूलों-पौधों का जन्म होते दिखता है। बुरांश और बासिंग के पीले, लाल, सफेद फूल और और इन्हीं फूलों की तरह बच्चों के खिले हुए चेहरे…

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