दुख: एक कविता
एक पुराना दुख है मेरे भीतर कुछ पहचानें हैं उसकी कुछ निशान बिखरे हुए, स्मृतियों में धुंधले निराकार से- जिनके बारे में ठीक-ठीक नहीं बता सकता पूछे जाने पर। एक …
Read MoreJunputh
एक पुराना दुख है मेरे भीतर कुछ पहचानें हैं उसकी कुछ निशान बिखरे हुए, स्मृतियों में धुंधले निराकार से- जिनके बारे में ठीक-ठीक नहीं बता सकता पूछे जाने पर। एक …
Read Moreअभिषेक श्रीवास्तव जैसा हमेशा होता है, इस बार भी हुआ है। बनारस को छोड़ने के विदड्रॉल सिम्पटम से जूझ रहा हूं। किसी को शराब छोड़ने के बाद, किसी को सिगरेट …
Read Moreमोंछू के यहां मैंने पहली बार आज से करीब 14 साल पहले थम्स अप पीया था और उनके हाथ का लगा पान खाया था। उस वक्त उनकी मूंछें इतनी खूबसूरत …
Read Moreमाना जा रहा है कि नरेंद्रभाई मोदी बनारस से जीत रहे हैं, लेकिन उनकी जीत का जश्न मनाने वाले इस शहर में इतने भी नहीं कि बीएचयू गेट से रविदास …
Read Moreयथार्थ तब तक यथार्थ है जब तक उसके आगे कल्पना का अंश जुड़ा है। आप यथार्थ को सपनों से काट दीजिए, तो ज़मीन पर कटी हुई उंगली की तरह तड़फड़ाता …
Read Moreअस्सी चौराहे स्थित पप्पू की दुकान पर एक लंबा सा आदमी चाय पीने आया। उसकी लंबाई औसत से कुछ ज्यादा थी। एक व्यक्ति ने उसे देखकर दूसरे से कहा, ”ई …
Read Moreअभिषेक श्रीवास्तव कल रात शहर में पुलिस का फ्लैग मार्च हुआ। रात साढ़े दस बजे के करीब जब हमने दुर्गाकुंड से लंका की ओर जाते हुए नीली-पीली बत्तियों वाली सायरन …
Read Moreअभिषेक श्रीवास्तव मैं बनारस में क्यों हूं, मुझे नहीं पता। मैं नहीं होता तो भी यह चुनाव ऐसे ही चलता, ऐसा ही दिखता जैसा दिख रहा है। मैंने कोशिश की …
Read Moreअभिषेक श्रीवास्तव जिस देश में हवा रात भर में बदलती है, हमारे पास फिर भी एक महीना है। हम लोग, जो कि वास्तव में फासीवाद को लेकर चिंतित हैं, जो …
Read Moreआनन्दस्वरूप वर्मा 16वीं लोकसभा के लिए चुनाव की सरगर्मी अपने चरम पर है और 7 अप्रैल से मतदान की शुरुआत भी हो चुकी है। इस बार का चुनाव इस दृष्टि …
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