ऐसा संभवत: पहली बार है जब किसानों की कवरेज को लेकर किसी संस्था को मीडिया को परामर्श देना पड़ा है। संपादकों की संस्था एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया ने किसान आंदोलन की कवरेज को लेकर मीडिया संस्थानों के लिए एक एडवायज़री जारी की है।
मीडिया के लिए इससे ज्यादा शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि देश की सबसे बड़ी आबादी और अन्नदाताओं के प्रति पत्रकारिता कैसे की जाय, उसकी सलाह मूर्धन्य संपादकों को जारी करनी पड़ रही है।
संस्था ने कहा है कि जिस तरह से मीडिया के कुछ हिस्सों में दिल्ली में चल रहे किसान आंदोलन के लिए खालिस्तानी, राष्ट्रविरोधी शब्दों का इस्तेमाल कर के उसे बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, उससे गिल्ड चिंतित है। यह जिम्मेदार पत्रकारिता के नैतिक मानदंडों के खिलाफ जाता है। इस तरह की हरकत से मीडिया की विश्वसनीयता पर असर पड़ता है।
गिल्ड ने मीडिया को किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग करते वक्त निष्पक्षता बरतने, संयम और संतुलन बरतने की सलाह दी है। गिल्ड का कहना है कि मीडिया किसानों के विरोध करने के संवैधानिक अधिकारों में पक्षपातपूर्ण भूमिका न निभाये। न ही वह प्रदर्शनकारियों की जातीयता और पहचान परिधान आदि को निशाना बनाकर उन्हें बदनाम करने वाले किसी आख्यान में फंसे।