अयोध्या में 5 अगस्त को राम जन्मभूमि मंदिर का शानदार शिलान्यास कर, अपना एक बड़ा वायदा पूरा कर, आने वाले चुनावों में जीत पक्की करने के बाद भी भारतीय जनता पार्टी की उत्तर प्रदेश सरकार को आखिर इतना नीचे क्यों गिरना पड़ा कि उसे आम आदमी पार्टी के लखनऊ कार्यालय में अपनी पुलिस से ताला लगवा दिया? उ.प्र. भाजपा सरकार की असुरक्षा का क्या कारण है?
आम आदमी पार्टी उत्तर प्रदेश में ऐसी कोई राजनीतिक शक्ति नहीं है जो उसे निकट भविष्य में कोई चुनौती दे सके। असल में आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सांसद संजय सिंह द्वारा सरकार पर की गयी टिप्पणियों से सरकार बौखलायी दिखायी पड़ती है। संजय सिंह ने अयोध्या में राम मंदिर के शिलान्यास कार्यक्रम में राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को न शामिल किये जाने को भारतीय जनता पार्टी का दलित विरोधी चरित्र बताया है। इससे प्रदेश के कई दलितों व अन्य पिछड़ा वर्ग के नेताओं ने इस बात के लिए संजय सिंह को बधाई दी है। सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी- जिसका आधार अन्य पिछड़ा वर्ग राजभर समुदाय है और जिसका नरेन्द्र मोदी के पिछले कार्यकाल में भाजपा के साथ गठबंधन था- के नेता ओमप्रकाश राजभर ने आम आदमी पार्टी के साथ भविष्य में गठबंधन के संकेत दे दिये हैं। संजय सिंह ने प्रदेश की कानून व व्यवस्था पर टिप्पणी करते हुए कहा कि पुलिस और अपराधी दोनों अराजक हो गये हैं। पुलिस का अपराधियों व सरकार का पुलिस पर नियंत्रण खत्म हो गया है। सबसे तीखी टिप्पणी उन्होंने यह की है कि योगी सरकार सिर्फ ठाकुरों के लिए काम कर रही है।
ज्ञात हो कि योगी आदित्यनाथ और संजय सिंह दोनों ही ठाकुर बिरादरी से ताल्लुक रखते हैं। योगी सरकार द्वारा मुठभेड़ों में सौ से ऊपर अपराधियों के मार दिये जाने के बाद यह दावा करने- कि अपराधी या तो खत्म हो गये हैं अथवा पुलिस के डर से जमानत रद्द करा के जेलों में पहुंच गये हैं- के बाद पिछले दिनों की घटनाओं पर प्रकाश डालें तो कानपुर में 22 जून को संजीत यादव का अपहरण, फिर उसके परिवारवालों के अनुसार पुलिस के सामने ही अपहरणकर्ताओं को रुपये 30 लाख दिये जाने लेकिन फिरौती की रकम मिलने से पहले ही संजीत की हत्या कर उसकी लाश पांडू नदी में फेंक दिये जाने; कानपुर के बिकरू गांव में कुख्यात विकास दूबे द्वारा 3 जुलाई को आठ पुलिस वालों की हत्या, फिर पुलिस द्वारा 11 जुलाई को विकास दूबे व कुल मिला कर उसके छह साथियों को मुठभेड़ में मार डालना; 6 अगस्त को हापुड़ में छह वर्षीय बालिका का अपहरण व बलात्कार जिसके बाद उसका इलाज मेरठ में चल रहा है; लखनऊ में 9 अगस्त को मुख्तार अंसारी के दाहिना हाथ कहे जाने वाले राकेश पाण्डेय, जिसे भाजपा विधायक कृष्णानंद राय की हत्या का आरोपी बताया गया जबकि न्यायालय से वह इस मामले में बरी हो चुका था, का मुठभेड़ में मारा जाना; 10 अगस्त को अमरीका में पढ़ रही सुदीक्षा भाटी, जो तालाबंदी के कारण अपने घर बुलंदशहर आयी हुई थी, की ग्रेटर नोएडा में परिवारजनों के मुताबिक छेड़छाड़ के दौरान मोटरसाइकिल से गिरकर मौत हो जाना; 11 अगस्त को बागपत के भूतपूर्व भाजपा जिलाध्यक्ष संजय खोखर की सुबह टहलने के समय गोली मार कर हत्या; 12 अगस्त को अलीगढ़ में विधायक राजकुमार सहयोगी द्वारा अपने समर्थकों के साथ गोण्डा पुलिस थाने में घुस कर थानाध्यक्ष को थप्पड़ मारना जिससे पुलिस के साथ हाथापाई हुई फिर सांसद सतीश गौतम के दबाव से थानाध्यक्ष को निलंबित करा देना व पुलिस अधीक्षक ग्रामीण का तबादला करवा देना; 13 अगस्त को शामली जिले के उमरपुर गांव के 12 वर्षीय कार्तिक की हत्या कर शव नग्नावस्था में खेत में पड़ा मिलना; 14 अगस्त को लखीमपुर खीरी के पकरिया गांव की 13 वर्षीय लड़की के साथ बलात्कार व हत्या कर लाश खेत में डाल देना; 14 अगस्त को ही आजमगढ़ के बांसगाँव के दलित ग्राम प्रधान पप्पू राम की सर्वणों द्वारा गोली मार कर हत्या कर देना और फिर पुलिस की जीप से कुचल जाने की वजह से एक 8 वर्षीय बच्चे की मौत; जैसी घटनाओं से साफ है कि प्रदेश में कानून व व्यवस्था की स्थिति बेकाबू है।
उत्तर प्रदेश में कानून व्यवस्था की स्थिति बिगड़ने का बड़ा कारण यह भी रहा कि सरकार अपराधियों से निपटने के बजाय अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ फर्जी कार्यवाहियां करने में लगी रही। नागरिकता संशोधन अधिनियम व राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर के खिलाफ आंदोलन में शामिल सोशलिस्ट पार्टी (इण्डिया) के प्रदेश अध्यक्ष एडवोकेट मोहम्मद शोएब, ऑल इण्डिया पीपुल्स फ्रन्ट के राष्ट्रीय प्रवक्ता व सेवानिवृत्त भारतीय पुलिस सेवा के अधिकारी एस.आर. दारापुरी, कांग्रेस कार्यकर्ती सदफ जफर व सैकड़ों अन्य सामाजिक कार्यकर्ताओं व सामान्य लोगों के खिलाफ मुकदमे दर्ज कर उन्हें जेल भेजना और बिना उनका अपराध साबित हुए उन्हें हिंसा के दौरान सार्वजनिक व निजी सम्पत्ति को हुए नुकसान की भरपाई हेतु लाखों रुपयों की वसूली के मांग पत्र भेजना; प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय कुमार लल्लू को प्रवासी मजदूरों को लाने के लिए उनकी पार्टी की तरफ से बसें उपलब्ध कराने की पेशकश में कुछ वाहनों के पंजीकरण संख्या गलत निकलने पर उन्हें जेल भेजना; कांग्रेस अल्पसंख्यक प्रकोष्ठ के अध्यक्ष शाहनवाज आलम को नागरिकता संशोधन अधिनियम के खिलाफ आंदोलन में शामिल होने के लिए बाद में जेल भेजना; वायर के संपादक सिद्धार्थ वरदराजन को योगी सरकार द्वारा तालाबंदी लागू होने के तुरंत बाद अयोध्या में रामनवमी के अवसर पर मेले को अनुमति देने पर विचार करने पर प्रश्न खड़ा करने के लिए उन्हें पुलिस द्वारा अयोध्या से दिल्ली जाकर नोटिस दिया जाना; और अब संजय सिंह के खिलाफ विभिन्न समुदायों के बीच द्वेष पैदा करने के जुर्म में मुकदमे व आम आदमी पार्टी के कार्यालय पर ताला डालना; यह सब दिखाता है कि उत्तर प्रदेश सरकार की प्राथमिकताएं क्या हैं।
अब यह भाजपा सरकारों का तरीका बन गया है। अपने राजनीतिक विरोधियों के खिलाफ बदले की भावना से कार्यवाही कर सभी किस्म की असहमति की अवाजों को दबाने हेतु उन्हें भयभीत करने की कोशिश की जाती है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को अब यह समझ लेना चाहिए कि अयोध्या में राम मंदिर बनाने से और बार-बार रामराज की बात करने से वह नहीं आने वाला। उनकी अपराधियों को ठोक दो नीति पूरी तरह से असफल साबित होने के कारण उन्हें इस बात पर समझदारीपूर्वक विचार करना होगा कि कैसे प्रदेश में व्याप्त अराजकता को खत्म कर कानून का राज स्थापित करें।