भाकपा, माकपा, समाजवादी पार्टी, सोशलिस्ट पार्टी, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ, भारतीय महिला फेडरेशन (मध्य प्रदेश), आज़ादी बचाओ आंदोलन ने संभागायुक्त को दिया ज्ञापन, लॉकडाउन के बाद उपजी समस्याओं एवं मज़दूरों के लिए कीं अनेक माँगें
इंदौर, 3 जून, 2020.
कोविड 19 संक्रमण से बचाव हेतु पूरे देश में लगभग ढाई महीने का लॉकडाउन रहा, जो रेड जोन क्षेत्र में अभी भी जारी है। इतनी लंबी अवधि के लॉकडाउन में सबसे ज्यादा नुकसान व क्षति मजदूर वर्ग एवं गरीब तबके की हुई है। लाखों-करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। जाने कितने लोगों की जानें चली गईं। न तो कोविड-19 का संक्रमण रुका, न ही लोगों को उचित चिकित्सा मिल पाई और न ही राशन एवं खाने जैसी आवश्यक कार्यों एवं सेवाओं की आपूर्ति उन तक पहुँच पाई और न ही लोगों को लॉकडाउन में रोज़मर्रा की वस्तुएँ और ज़रूरी सेवाओं को सुनिश्चित किया जा सका। लॉकडाउन का जो भी उद्देश्य था, उसमे शासन-प्रशासन दोनों ही असफल एवं जिम्मेदार रहा।
सरकार द्वारा की गई घोषणाएँ केवल उनके भाषणों तक ही सीमित रहीं। जो सरकारी मदद के हकदार थे, जिन्हें इसकी जरूरत थी उन अधिकांश लोगों तक कोई मदद पहुँच ही नहीं पाई। यह बहुत ही शर्मनाक और अमानवीय है। इंदौर के जिला प्रशासन के अतार्किक फरमानों ने फल- सब्ज़ी बेचने वाले, छोटे व्यापारी, या रोज़ काम करके घर चलने वाले मज़दूर, घरों में काम करने वाली बाइयाँ, ऑटो रिक्शा चलाने वाले, रेहड़ी-पटरी लगाने वाले, छोटे किसान, छोटे दुकानदार, पंचर जोड़ने-गाड़ी सुधारने वाले मैकेनिक और ऐसे ही न जाने कितने ही तरह के लोगों का काम छीनकर उन्हें घर तो बिठा दिया लेकिन उनके लिए राशन, ज़रुरत की चीज़ें मुहैया कराने में प्रशासन नाकाम रहा। बल्कि इस त्रासदी के समय भी बड़े स्तर पर भ्रष्टाचार और मुनाफाखोरी पली-बढ़ी। इंदौर में इस वायरस को सांप्रदायिक रंग देने की कोशिश भी किसी से छिपी नहीं है।
इन मुद्दों पर शहर के अनेक राजनीतिक दलों ने शासन-प्रशासन के भ्रष्टाचारों एवं मुनाफाखोरी पर सख्त एतराज दर्ज किया एवं भ्रष्टाचार की कड़े शब्दों में भर्त्सना की तथा इस पर चिंता व्यक्त करते हुए राष्ट्रपति एवं प्रधानमंत्री के नाम ज्ञापन भेजा। यह ज्ञापन डिप्टी कमिश्नर सुश्री सपना सोलंकी ने प्राप्त किया।
इस ज्ञापन में देश के उन तमाम लोगों की समस्याओं की ओर ध्यान दिलाया गया है जिनका सबसे ज्यादा नुकसान हुआ है, जो सबसे ज्यादा परेशान हुए, जिन्हें बिना कारण अपनी जान तक गंवानी पड़ी। इस ज्ञापन में कुछ माँगें और सुझाव भी दिए गए जो इस तरह हैं:
जो परिवार आयकर नहीं भरते तथा जो कोरोना महामारी से बेरोजगार हुए एवं जिन्हें सरकार की एडवाजरी जारी होने के बाद भी उद्योगपतियों द्वारा वेतन नहीं दिया गया ऐसे तमाम लोगों को सरकार द्वारा आगामी छः माह तक 10,000/- रुपए प्रतिमाह की सहायता मुहैया करवाई जाए। मनरेगा में 150 दिन से बढ़ाकर 250 दिन का काम मिलना सुनिश्चित किया जाए। स्थानीय परिवहन सेवा बहाल की जाए। सभी स्कूलों एवं कॉलेजों को फीस माफ करने का आदेश दिया जाए। सभी दवाखाने शीघ्र चालू किए जाएँ तथा निजी अस्पतालों की फीस कम करवाने के निर्देश दिए जाएं। घर वापसी में जिन मजदूरों की मौत हुई उनके परिवारों को 5 लाख रुपये की मदद मिले, राशन वितरण में बड़े पैमाने पर हुई धांधली पर जाँच बिठायी जाए। शहर में फंसे प्रवासी मजदूरों को शासकीय खर्च पर उनके घर भेजने की व्यवस्था की जाए। पुलिस एवं प्रशासन अपना रवैया सुधारे। सोशल डिस्टेंसिंग की जगह फिजिकल डिस्टेंस शब्द का प्रयोग चलन में स्थापित किया जाए।
ज्ञापन में सभी बिंदुओं पर विस्तार से अपनी बात रखी गई और अनेक सुझाव भी दिये गए।
ज्ञापन देने वालों में भाकपा के जिला सचिव एस. के. दुबे, रुद्रपाल यादव, सत्यनारायण वर्मा, अखिल भारतीय प्रगतिशील लेखक संघ के राष्ट्रीय सचिवमण्डल के सदस्य के ही विनीत तिवारी, माकपा के कैलाश लिंबोदिया, अरुण चौहान, समाजवादी पार्टी से गोपाल कुशवाहा, सोशलिस्ट पार्टी से रामस्वरूप मंत्री, आज़ादी बचाओ आंदोलन के जयप्रकाश मुख्य रूप से शामिल थे।
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