नेपाल चुनाव: इस बार कत्‍ल हुआ और खून भी नहीं बहा


आनन्द स्वरूप वर्मा नरेश ज्ञवाली

काठमांडो, 21 नवम्बर


नेपाल में, जहां राजतन्त्र का विस्थापन कर गणतन्त्र स्थापित हुए महज 5 वर्ष हुए हैं, दो बार संविधान सभा का चुनाव संपन्न हो चुका है। पहले संविधान सभा चुनाव की तुलना में मतदाताओं का प्रतिशत ज्यादा होने के आंकडों के बीच नेपाल में अघोषित सैन्य कू’ (तख्‍़तापलट) कर दिया गया है। इस बात को लेकर नेपाल में शान्ति प्रक्रिया में शामिल मुख्य पार्टी तथा हाल में पहली पार्टी के रूप में स्थापित एकीकृत नेकपा (माओवादी) ने अपने को चुनावी प्रक्रिया से अलग कर लिया है और इस पूरी प्रक्रिया की निष्पक्ष छानबीन की मांग की है।
21 नवम्बर बृहस्पतिवार की सुबह 3 बजे एक प्रेस विज्ञप्ति जारी कर मतगणना में शामिल देश भर के अपने नेताकार्यकर्ताओं को माओवादी पार्टी ने चुनावी प्रक्रिया से अलग होने को कहा है। पार्टी के प्रवक्ता अग्नि सापकोटा द्धारा जारी विज्ञप्ति में चुनाव में गम्भीर किस्म की धांधलीहोने की बातों पर जोर देते हुए समग्र मतगणना प्रक्रिया को बीच में ही रोकने के लिए इलेक्शन कमीशन को कहा है। विज्ञप्ति जारी करने से पहले सुबह 2 बजकर 30 मिनट पर माओवादी के अध्यक्ष प्रचण्ड के निवास में पदाधिकारियों की बैठक हुई थी।
19 तारीख को चुनाव शान्तिपूर्ण ढंग से होने तक बात ठीकठाक थी लेकिन मतदान के बाद मुल्क भर से संकलन की गई सारी की सारी मतपेटिकाओं को सेना के बैरक में ले जाया गया। मतपेटिकाओं को सेना के बैरक में 12 घण्टों से अधिक समय तक रखा गया, जिसके बाद दूसरे दिन (20 नवम्बर) को ही मतपेटिकाओं को खोल कर मतगणना शुरू हुई। इस बार के संविधान सभा के चुनाव से पहले मतदान के दिन से ही मतगणना का काम शुरू हो जाता था, लेकिन इस बार ऐसा नहीं हुआ।
माओवादी हेडक्वार्टर में देश भर की रिपोर्ट जमा होते-होते रात के 12 बज चुके थे जिसमें अधिकांश जिलों से माओवादी की कम्प्लेन आनी शुरू हो गई थी। माओवादियों का मानना है कि इस पूरी प्रक्रिया में नेपाली सेना के साथ अंतरराष्‍ट्रीय शक्तियों की संलग्नता है। उन्‍हें यह भी आशंका है कि सेना की बैरक में ही मतपेटिकाओं और मतपत्रों के साथ छेडछाड की गई है। माओवादी वह पार्टी है जिसके नेतृत्व में दस वर्ष तक नेपाल में हथियारबंद जनयुद्ध हुआ तथा जिसने शान्तिपूर्ण राजनीति में प्रवेश कर अपनी राजनीति को आगे बढाया। यहां यह बताना भी प्रासंगिक होगा कि माओवादी पार्टी ने ही नेपाल में सबसे ज्यादा संविधान सभा के चुनाव की मांग की थी और इसके खिलाफ अनेक शक्तिकेन्द्रों ने माओवादियों के खिलाफ संसदीय दलों को मजबूत करने के लिए समयसमय पर अपनी सक्रियता भी दिखाई है।
चुनाव सम्पन्न होने तक विभिन्न स्तर पर यह आकलन किया जा रहा था कि माओवादी पहली पार्टी के रूप में उभर कर सामने आएगी, यद्यपि माओवादियों के प्रति जनता का रुख 2008 के संविधान सभा की तुलना में काफी घट चुका था। परिवर्तन के पक्ष में जनता ने माओवादियों को पहले संविधान सभा में भारी मतों के साथ समर्थन दिया तथा उनके एजेण्डा के पक्ष में अपने को खडा किया। चुनावी प्रक्रिया में बडे पैमाने पर धांधली अथवा यह कहें कि राज्य के अंगों की संलग्नता द्धारा षडयन्त्रपूर्ण रूप से समूची मतदान प्रक्रिया में माओवादियों को तीसरी तथा चौथी पार्टी के रूप में खडा किया गया है, जिसका अनुमान किसी ने नहीं लगाया था। इस पूरी प्रक्रिया को बिना समझे यह कहना आम लोगों के लिए मुश्किल है कि हाँ यहाँ राज्य के स्तर पर धाँधली को सर्वसंम्मत चुनावी जामा पहनाया गया है

माओवादियों के आलोचित होने पर भी वे अन्य संसदवादी दलों की तुलना में राजनीतिक एजेण्डा, आर्थिक मॉडल, सरकार संचालन के विषय में ज्यादा जनता के करीब दिखाई दिए तथा शान्ति प्रक्रिया को संपन्न करने का श्रेय भी उनको ही मिला। हां, यह बात और है कि सभी राजनीतिक दलों द्धारा अपनाए गए रवैये को जनता सहजता से पचा नहीं पा रही थी, जिसमें माओवादी भी एक थे। लेकिन 19 नवम्बर के दिन हुए दूसरे संविधान सभा के चुनाव के बाद की स्थिति में माओवादियों को नहीं के बराबर सीटें मिलने की संभावना हैं,  हालांकि अभी तक चुनावी मतगणना पूरी नहीं हुई है। अभी के नतीजों से पता चलता है कि वही ताकतें उभर कर आ रही हैं जो राजतन्त्र को पसन्द करती हैं और नेपाल के हिन्दू राष्ट्रकी हैसियत समाप्त होने से चिन्तित हैं। क्या भारत में नरेन्द्र मोदी का उभार और नेपाल में कमल थापा की राप्रपा (राष्ट्रीय प्रजातन्त्र पार्टी) का उभार एक संयोग मात्र है?
लम्बे समय से जारी राजनीतिक गतिरोध का अन्त करते हुए सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के नेतृत्व में बनाई गई गैर राजनीतिक सरकार को चुनाव कराने की जिम्मेदारी सौंपी गई थी, जिसके तहत निर्धारित 19 नवम्बर के दिन संविधान सभा का चुनाव होना था। चुनाव शान्तिपूर्ण और भयरहित वातावरण में ही संपन्न हुआ लेकिन सरकारी आंकडों के बावजूद चुनावी प्रक्रिया में भाग लेने वाले मतदाताओं की भागीदारी पिछले संविधान सभा से कम थी। यहां यह उल्लेख करना उचित होगा कि चुनाव के विरोध में एकीकृत माओवादी से अलग हो कर बना मोहन वैद्य के नेतृत्व वाला नेकपामाओवादी चीफ जस्टिस के नेतृत्व की गैर राजनीतिक सरकार के खिलाफ था और चुनावी प्रक्रिया से बाहर था। राजनीतिक दलों के बीच हुए बारबार की बहस तथा वार्ताओं के जरिए वह एक सूत्री मांग को पूरा कराने के साथ ही चुनाव में आने को तैयार था, जिसमें मुख्य रूप से इस बात पर जोर दिया गया था कि शक्ति पृथकीकरण के सिद्धान्त को ध्यान में रखते हुए चीफ जस्टिस को अपने उस पद से इस्तीफा देना होगा।
इस पूरी प्रक्रिया में चीफ जस्टिस खिलराज रेग्मी के आगमन के साथ ही भारतीय खुफिया एजेन्सी रॉके साथ अन्य अंतरराष्‍ट्रीय ताकतों के हाथ होने की आशंका है। इस पूरी घटना के बाद माओवादी अध्यक्ष प्रचण्ड ने पत्रकार सम्मेलन कर मतगणना को रोकने को कहा है। प्रचण्ड ने कहा– ‘मैं आज गम्भीरतापूर्वक सभी राजनीतिक दलों को तथा निर्वाचन आयोग को मतगणना रोक कर समग्र प्रक्रिया की छानबीन कराने के लिए आग्रह करता हूं।
अतीत में भी नेपाल कई हादसों से गुजरा है। इस बार कत्ल भी हुआ और खून भी नहीं बहा। इन तमाम त्रासद घटनाओं के बीच एक सुखद स्थिति यह नजर आ रही है कि एक बार फिर प्रचण्ड और किरण के कैडरों के बीच बिखरी ताकतों को एकजुट करने की ललक तेज हो गई है और तीव्रता के साथ यह अहसास पैदा हो गया है कि प्रतिगामी ताकतों की सैन्य शक्ति का मुकाबला करने के लिए हमें भी खुद को तैयार करना है।

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4 Comments on “नेपाल चुनाव: इस बार कत्‍ल हुआ और खून भी नहीं बहा”

  1. plz stop doing any kind of analysis or generalization without knowing emperical realities of Nepal. This analysis is based on wrong data which were given by maoist leaders to their indian friends..situtaion is completely different and this kind of grand design is not possible anywhere in the world…

  2. ये बिल्कुल सही हें । प्रतिकृयावादीको षडयन्त्रको माअोवादी ने नहिं समझ पाया । संबिधानसभाके माग रखनेवाले हजारों न्यायप्रेमी जनताका कत्ल करनेवाले उन्ही पार्टीको जिताया गया, सैनिक, पुलिसके इस्तेमाल, दुरूपयोग से

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