कोरोना का दौर पत्रकारों पर बहुत भारी पड़ रहा है। पिछले तीन चार दिनों में पत्रकारों और पत्रकारिता जगत के बारे में जो ख़बरें निकलकर सामने आयी हैं वे दहलाने वाली हैं। इनमें मौत से लेकर बीमारी, छंटनी, वेतन कटौती और ख़ुदकुशी तक की ख़बरें हैं।
आगरा में दैनिक जागरण के पत्रकार पंकज कुलश्रेष्ठ की कोरोना से मौत हो गयी है। इससे पहले बनारस में स्वतंत्र पत्रकार रिज़वाना तबस्सुम ने ख़ुदकुशी कर ली थी। आगरा से पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत की ख़बर आयी ही थी कि दिल्ली में वरिष्ठ पत्रकार और कहानीकार शशिभूषण द्विवेदी की दिल का दौरा पड़ने से मौत हो गयी। इससे एक दिन पहले पंजाब केसरी के पत्रकार कमल शर्मा का देहांत हो गया, जो पहले ही कैंसर से पीड़ित थे। इधर वेब पत्रिका स्त्रीकाल के संपादक संजीव चंदन किडनी की डायलिसिस पर दिल्ली के राम मनोहर लोहिया अस्पताल में भर्ती हैं।
पंकज कुलश्रेष्ठ की मौत कोरोना से होने वाली देश में पहले पत्रकार की मौत है। कोरोना महामारी के चक्कर में जिस तरीके से दूसरी बीमारियों और पुराने रोगों की उपेक्षा की जा रही है, उसके चलते मौतें ज्यादा हो रही हैं। फिलहाल दैनिक जागरण और पंजाब केसरी में बड़ी संख्या में मीडियाकर्मी कोरोना से पीड़िता हैं। न्यूज़18 के मीडियाकर्मी भी कोरोना से पीड़ित मिले हैं।
इस बीच कोरोना से भी ज्यादा ख़तरनाक हो गया है मीडिया संस्थानों में काम करना, जहां स्थितियां पूरी तरह पत्रकारों के खिलाफ़ बना दी गयी हैं। राजस्थान पत्रिका ने इस महीने से पंद्रह हज़ार वेतन वाले पत्रकारों पर भी कैंची चला दी है और संपादकों तक को मात्र 15000 का भुगतान किया है। अख़बार के कर्मियों को भेजे एक ताज़ा सर्कुलर में सामने आया है कि अख़बार अब पत्रकारों के वेतन का एक हिस्सा पीएलआइ यानी परफॉरमेंस लिंक्ड इनसेंटिव के बतौर भुगतान करेगा।
इसका मतलब ये नहीं होगा कि पत्रकारों के काम के प्रदर्शन के हिसाब से ही यह रकम दी जाएगी। साफ़ साफ़ लिखा है कि कंपनी को होने वाले मुनाफ़े और नुकसान के हिसाब से तय किया जाएगा कि पीएलआइ के तहत कितनी रकम का भुगतान हो।
इससे पहले न्यूज़ नेशन में छंटनी की गयी थी और इंडिया न्यूज़ चैनल में दो महीने का वेतन बकाया था। अब सकाल टाइम्स ने भी आधी वेतन कटौती कर दी है। बताया जाता है कि 20 से 50 हज़ार रुपये तक वेतन पाने वालों के पेमेंट में 40 फीसद की कटौती होगी और 50 हज़ार से ऊपर वालों को आधा वेतन मिलेगा। इंडियन एक्सप्रेस में पहले ही तीस फीसद वेतन कम किया जा चुका है। दि हिंदू में भी वेतन कटौती से सम्बंधित एक सर्कुलर सामने आया है।
न्यूज़ चैनल नेशन वॉयस और चैनल वन में वेतन कटौती को लेकर हुए विवाद की ख़बर पहले से आती रही है, लेकिन सबसे बुरी हालत न्यूज़ एजेंसी यूएनआइ की है जहां के पत्रकारों को बीते चार साल से वेतन नहीं मिला है। कोरोना के इस दुष्काल में यूएनआइ के पत्रकार अपना घर कैसे चला रहे हैं, यह कल्पना करना भी मुश्किल है। बीते महीने ही यूएनआइ की वरिष्ठ पत्रकार नीलिमा जी का दिल्ली में देहान्त हुआ है। वे ब्रेन ट्यूमर से लड़ रही थीं और धरमशिला कैंसर अस्पताल में भर्ती थीं।
इस बीच वेतन कटौती और छंटनी को लेकर पांच पत्रकार यूनियनों ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका भी लगायी है, लेकिन इस पर केंद्र सरकार, आइएनएस और एनबीए को नोटिस थमाने के बाद कोर्ट की ओर से आगे की कार्यवाही नहीं की गयी है।
कोरोना के बहाने मीडिया में छंटनी और वेतन कटौती के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में PIL दाखिल
पत्रकारों की छंटनी और वेतन कटौती पर सुप्रीम कोर्ट में PIL मंजूर, केंद्र सहित INS-NBA को नोटिस
इस याचिका से काफी पहले कोरोना महामारी के शुरुआती दिनों में उत्तर प्रदेश सरकार के श्रमायुक्त की ओर से एक चिट्ठी सभी क्षेत्रीय, अपर एवं उप श्रमायुक्तों को जारी की गयी थी जिसका विषय थाः “लॉकडाउन के दौरान मीडिया संस्थानों द्वारा मीडियाकर्मियों के वेतन कटौती एवं नौकरी से निकाले जाने के संदर्भ में”।
बीते 22 अप्रैल को श्रमायुक्त, उत्तर प्रदेश सुधीर एम. बोबडे द्वारा जारी पत्र संख्या 69 की प्रतिलिपि प्रमुख सचिव, श्रम एवं सेवायोजन विभाग को भी भेजी गयी थी। इस पत्र में प्रिंट/डिजिटल माध्यमों में कुछ पत्रकारों की सेवा समाप्त किये जाने और देय वेतन का भुगतान नहीं किये जाने तथा बिना वेतन बलात् छुट्टी पर भेजे जाने के सम्बंध में “अपने स्तर से नियमानुसार तत्काल आवश्यक कार्यवाही सुनिश्चित करते हुए कृत कार्यवाही से शासन को अवगत कराने हेतु निर्देशित किया गया” था।
इसके बावजूद एक ओर मीडिया संस्थान बेरोकटोक पत्रकारों का वेतन रोकते और काटते रहे, तो दूसरी ओर उत्तर प्रदेश सरकार ने अगले तीन साल के लिए तीन श्रम कानूनों को छोड़ बाकी सभी श्रम कानूनों को ही राज्य में निलंबित कर डाला। इसके कारण न केवल अखबारों में काम करने वाले और श्रमजीवी पत्रकार अधिनियम के तहत आने वाले पत्रकारों पर कुठाराघात हुआ, बल्कि समूचे श्रमिक वर्ग का भविष्य संकट में पड़ गया है।
पूरे देश में क्षेत्रीय और स्थानीय स्तर के पत्रकारों की बीते दो साल से आजीविका का इकलौता स्रोत रहे सर्किल मोबाइल एप्लिकेशन ने जिस तरीके से श्रमिक विरोधी कदम उठाया, उससे बहुतों के घर के चूल्हे पर ख़तरा मंडरा रहा है। भड़ास4मीडिया की एक ख़बर कहती हैः
“सर्कल वालों ने एक ही झटके में अपने सभी जिलों के सिटी लीड और रिपोर्टर्स को सड़क पर ला दिया है। शुरुआत में अच्छी सेलरी देने वाला सर्कल अब कंगाल हो चुका है और इसी कारण सर्कल के सीईओ शशांक शेखर ने सभी को व्हाट्सएप पर एक सूचना देते हुये सैलरी बंद करने का आदेश सुना दिया। इससे नाराज होकर सभी संवाददाताओं ने सर्कल के खिलाफ बगावत शुरू कर दी है। सर्कल पर खबरें पोस्ट करना बंद कर दिया है जिससे सर्कल में हड़कंप मचा हुआ है। इसकी खुद पुष्टि सर्कल एप के सीईओ शशांक शेखर ने की। उन्होंने एक सूचना जारी करते हुए सभी संवाददाताओं को बताया कि सर्कल ने अप्रैल माह तक का सभी को पेमेंट कर दिया है और वह मई माह से किसी को भी सेलरी नहीं देगा। 6 मई को उत्तर प्रदेश राजस्थान के कई जनपदों से खबरें भी पोस्ट नहीं की गई हैं।”
कुछ जगहों से एक और ख़बर आ रही है कि संक्रमण के भय से पत्रकारों के प्रवेश पर पाबंदी लगायी जा रही है। बिहार के मुंगेर में एक शासनादेश जारी किया गया है जिसमें क्वारंटीन केंद्रों में पत्रकारों के घुसने पर पाबंदी लगा दी गयी है।
इस बीच पंकज कुलश्रेष्ठ की कोरोना से मौत के बाद उत्तर प्रदेश मान्यता प्राप्त संवाददाता समिति ने प्रदेश सरकार से कुलश्रेष्ठ के परिवार को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने की मांग की है। उधर श्रम कानूनों को तीन साल तक के लिए खत्म किये जाने के खिलाफ़ कुछ लोग अदालत का दरवाज़ा खटखटाने की योजना बना रहे हैं।
वर्कर्स फ्रंट के नेता दिनकर कपूर ने एक प्रेस विज्ञप्ति में कहा है कि इस काले अध्यादेश के खिलाफ सोशल मीडिया के जरिये मुख्यमंत्री को पत्र भेजने का अभियान चलाया जाएगा और समान विचार वाले संगठनों के साथ व्यापक मंच तैयार कर सरकार को इसे वापस लेने के लिए बाध्य किया जाएगा। उन्होंने कहा है कि यदि सरकार इस अध्यादेश को वापस नहीं लेती है तो इसके खिलाफ हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया जाएगा।