विजाग गैस लीक पीड़ित मजदूरों के लिए पांच मांगें


आंध्र प्रदेश राज्य के विशाखापत्तनम (विजाग) शहर के केमिकल फैक्ट्री में गैस रिसाव की घटना काफी भयानक और डरावनी है। गैस रिसाव के वजह से अब तक 13 लोगों की मौत हो चुकी है और हजारों लोग इससे प्रभावित हैं। यह घटना हमें भोपाल गैस त्रासदी की याद दिलाती है। 

विजाग भारी उद्योगों का हब रहा है। यहाँ 140 से ज्यादा भारी उद्योग हैं जिसमें एक से सवा लाख मजदूर अपना श्रम बेचते हैं, और लगभग 13,500 छोटे-मँझले उद्यम हैं जिसमें 2 लाख से ज्यादा मजदूर कार्यरत हैं (आंकड़े : आंध्र प्रदेश सरकार)। विजाग के औद्योगिक हब होने के कई कारण हैं जिसमें महत्वपूर्ण कारण विजाग शहर का समुद्रतट पर होना है जिससे उत्पादों का निर्यात और आयात आसानी से हो सके। अगर हम गौर करें तो विजाग कार्गो (big container) की मात्रा के हिसाब से भारत का दूसरा सबसे बड़ा बंदरगाह है, पहले स्थान पर चेन्नई है। विजाग का नाम भारत के दस सबसे अमीर शहरों में गिना जाता है।

जिस कंपनी में ये दुर्घटना हुई है उसका नाम LG POLYMERS है, इस कारखाने की स्थापना 1961 में हुई थी लेकिन तब इसे ‘हिंदुस्तान पॉलिमर’ कहा जाता था। 1978 में कंपनी का UB group के स्वामित्व वाली मैकडॉवेल एंड कंपनी के साथ विलय हो गया। फिर 1990 के बाद कांग्रेस द्वारा नव-उदारवादी नीति लायी गयी जिसके तहत राष्ट्रीय संपदा का पूरी दुनिया में निजीकरण किया जाने लगा। यानी, देश की अर्थव्यवस्था अब सरकार के हाँथों से निकलकर पूंजीपतियों के हाथों में जाने लगी।

1997 में साउथ कोरिया की कंपनी LG chemical, जो भारत में प्रवेश के लिए लगातार अपनी आंखें जमाये बैठी थी, उसने ‘हिंदुस्तान पॉलीमर’ को नवउदारवादी नीति के तहत अपने कब्जे में ले लिया, उसके बाद ही कंपनी का नाम बदलकर LG Polymers कर दिया गया। LG पॉलीमर की वेबसाइट यह कहती है “एलजी केमिकल ने भारत को एक महत्वपूर्ण बाजार माना है और इसमें आक्रामक वैश्विक विकास योजना ने हिंदुस्तान पॉलिमर को 100% अधिग्रहण के माध्यम से भारतीय बाजार में प्रवेश करने के लिए एक उपयुक्त कंपनी के रूप में पहचाना है।”

गैस रिसाव में ‘स्टाइरीन’ केमिकल की मात्रा सबसे ज्यादा है। स्टाइरीन का उपयोग प्लास्टिक के सामान बनाने में किया जाता है। स्टाइरीन एक मोनोमर है जिसको एक दूसरे से जोड़कर पॉलीमर बनाया जाता है, जो अन्ततः प्लास्टिक का रूप लेता है। जैसे एक धागा (मोनोमर), जिसको और कई धागों के साथ जोड़कर आप कपड़े (पॉलीमर) का निर्माण करते हैं। 2018 का आंकड़ा यह कहता है कि पूरी दुनिया में 35 मिलियन टन स्टाइरीन का उत्पादन किया गया था। (1 मिलियन= 10 लाख;1 टन = 1000 किलो)

क्या स्टाइरीन हमारे स्वास्थ्य के लिए हानिकारक है? जी हाँ, तमाम रिसर्च कहती हैं कि स्टाइरीन हमारे स्वास्थ्य को बहुत बड़ा नुकसान  पहुँचा सकता है। स्टाइरीन को एक “ज्ञात कार्सिनोजेन” (कार्सिनोजेन- कैंसर पैदा करने की क्षमता का होना) के रूप में माना जाता है, विशेष रूप से आंखों के संपर्क के मामले में। यानी, अगर आप स्टाइरीन के संपर्क में हैं तो आपको कैंसर होने का खतरा भी है। 

स्टाइरीन केमिकल जब मनुष्य के शरीर के अंदर प्रवेश करता है तब वह ‘स्टाइरीन ऑक्साइड’ में बदल जाता है, स्टाइरीन ऑक्साइड बहुत ही विषाक्त होता है जो आपके gene में बदलाव कर सकता है और आपके शरीर में ट्यूमर पैदा कर सकता है। यानी, इसका प्रभाव संक्रमित हुए लोगों के आने वाले बच्चों पर भी पड़ सकता है।

अमेरिकी पर्यावरण संरक्षण एजेंसी (ईपीए) ने स्टाइरीन को “gastrointestinal (पेट और नली संबंधी), किडनी और श्वसन प्रणाली के लिए एक संदिग्ध विषाक्त” के रूप में वर्णित किया है। 10 जून 2011 को यूएस नेशनल टॉक्सिकोलॉजी प्रोग्राम ने स्टाइरीन को “मानव कैंसर के लिए उचित रूप से प्रत्याशित” के रूप में वर्णित किया है।

‘ethylbenzene’ स्टाइरीन बनाने के लिए उपयोग होता है। ethylbenzene को इंटरनेशनल एजेंसी फ़ॉर रिसर्च ऑन कैंसर (IARC) द्वारा एक संभावित ‘कार्सिनोजन’ के रूप में वर्गीकृत किया गया है। ऐसे और कई रिसर्च हैं जो यह दावा करते हैं कि स्टाइरीन कैंसर पैदा कर सकता है।

विजाग में मजदूरों की हालात बहुत दयनीय है। कई भारी उद्योगों के द्वारा उनके श्रम का शोषण लगातार जारी है। आप इस बात से अंदाजा लगा सकते हैं कि जुलाई, 2013 में विजाग के असंगठित क्षेत्र के ठेका मजदूर अपनी कई बेहद बुनियादी मांगों को लेकर आंदोलन करने पर मजबूर हुए थे, जिसका नेतृत्व CITU कर रही थी। उनकी कुछ मांगें निम्न थींः

1. सैलरी को बढ़ा कर ₹12,500 किया जाए।
2. स्वास्थ्य सेवाओं की गारंटी की जाए।
3. हर माह की 10 तारीख तक उनके सैलरी का भुगतान कर दिया जाए।
4.  सफाईकर्मियों को हर रविवार छुट्टी दी जाए।

ये कुछ माँगे हैं जो 2013 में वहां के मजदूर अपने मालिकों से कर रहे थे। गौरतलब है कि विजाग की जीडीपी 10 बिलियन डॉलर की है और मजदूरों की एक माह की सैलरी मात्र 12000 रुपये। (स्रोत: the hindu, 23 जुलाई 2013)

हम निजी क्षेत्रों के असंगठित मजदूरों की स्थिति का अंदाजा बखूबी लगा सकते हैं। ANI की आज की ही रिपोर्ट है कि विजाग के HPCL रिफाइनरी के मजदूरों को अप्रैल माह के वेतन का भुगतान कंपनी द्वारा नहीं किया गया है जिससे उनके खाने-पीने की सामग्री पर आफत आ पड़ी है। ऐसे में वहां के मजदूरों ने अपने बकाया वेतन के भुगतान लिए कंपनी व सरकार के प्रति विरोध दर्ज किया है।

ऐसे समय में जब इस तरह की भयावह दुर्घटना घटती है तो मजदूरों की हालत क्या होगी? COVID-19 की वजह से सरकारी अस्पतालों में लोगों की भीड़ लगी है, उसके बाद इस दुर्घटना के पीड़ितों के गुणवत्तापूर्ण इलाज की जिम्मेवारी कौन लेगा? क्या सरकारी अस्पतालों में संसाधन पर्याप्त हैं?

ज्ञात हो की भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था विश्व रैंकिंग में 140वें स्थान के बाद आती है जबकि सरकार अपने बजट का ज्यादातर हिस्सा हथियार खरीदने और बनाने में खर्च देती है। तो लाजिम है कि देश की स्वास्थ्य और शिक्षा की व्यवस्था कैसी होगी? जबकि देश के राष्ट्रीय सम्पत्ति का बहुत तेजी से निजीकरण किया जा रहा है। जिसके पास पैसे हैं वो गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य और शिक्षा ले सकता है, बाकी लोग बस सरकार के खजाने में टैक्स और पूंजीपतियों को अपना श्रम देते रहें।

ऐसे समय में PSO-progressive students organisation मजदूरों व पीड़ितों के साथ खड़ा है और सरकार से यह निम्नलिखित मांग करता है:

1. सरकार गैस रिसाव से पीड़ित व्यक्ति के स्वास्थ्य की गारंटी करे।
2. सरकार विजाग में चल रहे गैर ज़रूरी उद्योगों को बंद करे।
3. सरकार गैर ज़रूरी उद्योगों में काम कर रहे मजदूरों को पूरा वेतन दिलवाने की गारंटी करे। 
4. सरकार पीड़ितों को उनके उम्र भर मुफ्त-गुणवत्तापूर्ण चिकित्सा की गारंटी करे।
5. सरकार मृत व पीड़ित व्यक्ति के परिवारों को उचित मुआवजा और नौकरी की गारंटी करे।

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