हक़ीकत के आईने में फ़सानों का कारोबार
पिछले साल दलित लेखक मुसाफिर बैठा ने फॉरवर्ड प्रेस पर यह आरोप लगाया था कि फॉरवर्ड प्रेस, फॉरवर्ड प्रेस नहीं है बल्कि वह ‘कुशवाहा प्रेस’ है या ‘कुशवाहा दर्पण’ है। मुसाफिर ने इसके पीछे जो तर्क दिया था वह यह था कि फॉरवर्ड प्रेस में छपने वाले अधिकांश लेखक (दो-तिहाई) एक ही जाति यानी कुशवाहा जाति के होते हैं।
फॉरवर्ड प्रेस में नौकरी करते हुए मैंने एक बात पर और गौर किया था कि इसमें छपने वाले अधिकांश लेखक न सिर्फ एक ही जाति के होते हैं बल्कि पत्रिका में उन्हीं घटनाओं और स्टोरीज़ को प्रकाशन के योग्य समझा जाता है जो किसी न किसी रूप में कुशवाहा जाति से संबंधित होती हैं। फॉरवर्ड प्रेस का यह करप्शन कुशवाहा जाति में पैदा होने वाले शहीद जगदेव प्रसाद, जगदीश मास्टर, रामस्वरूप वर्मा और शहीद चंद्रशेखर जैसी विभूतियों की महान परंपरा को एक ही झटके में बदनाम करने का काम कर जाता है।
पंकज चौधरी
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मठों और गढ़ों को तोड़ने की आड़ में हम अपना मठ और गढ़ बनाते चले और इसे दलित-बहुजन का नाम देकर अभिव्यक्ति की आजादी चाहें तो यह कैसे हो सकता है। और तब हम फिर किस मुंह से ब्राह़मण संपादकों पर यह आरोप लगाने का अधिकार रखते हैं कि उनकी पत्र-पत्रिकाओं में छपने वाले नब्बे फीसदी से ज्यादा लेखक उन्हीं की जाति के होते हैं।
फॉरवर्ड प्रेस के मालिकान ईसाई धर्मावलम्बी हैं इससे मुझे कोई उज्र नहीं हुई, क्योंकि मैं न तो खुद हिन्दू धर्मावलम्बी हूं और न ही कोई अन्य धर्मावलम्बी। दिक्कत मुझे तब होती थी जब किसी के पेट में दर्द हुआ और सबको प्रार्थना करने का फरमान जारी कर दिया गया। चपरासी का मल नहीं उतर रहा है तो प्रार्थना करो। बाइबिल का मौका-बेमौका वहां पारायण शुरू कर दिया जाता था। मालिकान भर-भर दिन झूठ बोलते अपने कर्मचारियों को नसीहत बांचते कि उन्हें झूठ से सख्त नफरत है। बात-बात में प्रभु, प्रभु की रट लगाते और कर्मचारियों को करुणा, क्षमा, दया, सहनशीलता, नैतिकता का पाठ पढ़ाते और कर्म बिलकुल उसके विपरीत करते।
यहीं मुझे ज्ञान हुआ कि धर्म कोई भी हो, कर्मकांड और पाखंड के मामले में सारे धर्म लगभग एक समान हैं। और इसीलिए भारतीय संविधान के निर्माता और दलित-बहुजन के महान योद्धा डॉ. भीमराव रामजी आम्बेडकर ने हिन्दू धर्म का त्याग करते हुए बौद्ध धर्म नहीं बल्कि बौद्ध धम्म को अंगीकार किया था।
फॉरवर्ड प्रेस में नौकरी करते हुए मैंने एक बात पर और गौर किया था कि वहां आम्बेडकर की तुलना में जोतिबा फुले को ज्यादा तवज्जो दी जाती है और यह मैसेज देने की कोशिश की जाती है कि फुले की महत्ता और काम आम्बेडकर से कहीं बड़ा है। इसके पीछे मुझे जो कारण नजर आता है वह यह है कि फुले ने आम्बेडकर की तुलना में ईसाई मिशनरियों के प्रति ज्यादा सहानुभूति दिखाई है। और सबसे बड़ी सच्चाई तो यह है कि फॉरवर्ड प्रेस जैसी संस्थाओं के ऐसा करने के पीछे दलितों और पिछड़ों में दूरियां बढ़ाने की मंशा काम कर रही होती है।
सामाजिक न्याय के महान योद्धाओं के काम की व्याख्या या भाष्य करते हुए फॉरवर्ड प्रेस की रुचि तब और बढ़ जाती है जब उनका कोई न कोई कन्सर्न ईसाई धर्म से मिल जाता है।
(समाप्त)
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धम्म पाली का शब्द है उसका अर्थ धर्म ही होता है. बाबा साहेब ने बौद्ध धर्म ही स्वीकार किया था लेकिन उसमे बुनियादी बदलाव के साथ. उन्होंने बुद्ध धर्म के चार आर्यों सत्यों को अस्वीकार कर दिया था. उन्होंने बुद्ध के महापरिनिर्वाण के प्रसंग को भी अस्वीकार कर दिया था. (हालांकि मैं उनके इस सुविधावादी व्याख्याओं से मेरी असहमति है)
फारवर्ड प्रेस ने अपनी शुरुआत में ही विलियम केैरी को आधुनिक भारत का जन्मदाता बताकर अपना एजेंडा साफ़ कर दिया था. क्योंकि कैरी इससे पहले तक भारतीय में ईसाई मिशनरियों के अगुआ के रूप में जाने जाते थे.