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| विमल कुमार | 
क्या तुम्हें सोनी सोरी की तनिक याद नहीं आयी 
जब तुम बोल रही थी उनके सामने 
नहीं याद आयी 
कि कितने मासूम लोग भी मारे गए हैं 
भूख से बेहाल लोगों ने
कितनी तकलीफ से उठाई होंगी बन्दूकें 
तुम्हें कुछ याद नहीं आया 
स्त्री होकर भी
मर्द तो नशे में रहते हैं ही 
तुम भी भूल गयी उस वक़्त 
अपने दर्द को लेकर कितना लिखा तुमने 
लड़ी लड़ाइयां भी बहुत 
लेकिन उस स्त्री को भूल गयी 
जब तुम्हें अपनी तस्वीर खिंचवाने का मौका मिला 
जब तुमने हाथ मिलाया उनसे 
जिन पर एक मस्जिद गिराने के अपराध से बरी नहीं किया जा सकता इतिहास में 
तुम्हें तनिक भी याद नहीं आयी 
क्योंकि तुम्हें चाहिए हर वक़्त शोहरत 
लम्बी सीढियां चढ़नी हैं तुमको 
जाना है बहुत दूर 
पाना है जीवन में बहुत कुछ
फिर तो भूलना भी लाजिमी है 
मेरे समय की वीरांगनाओं 
मैं तुम्हें कभी नहीं भूल पाऊंगा 
अपने जीवन में
कि कभी तुम्हारे साथ मैं कुछ दूर तक चला था 
एक जुलूस में! 
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बहुत सुंदर और प्रासंगिक कविता. महत्वपूर्ण सवाल खड़े करती है, जिनसे लोग बच कर निकल रहे हैं…