घर जा रहे मजदूरों से रेलवे द्वारा लिए जा रहे किराये का जनसंगठनों ने किया विरोध


भारतीय  रेल घर-वापसी के लिए मजदूरों से ही वसूल रहा खर्च!

तथाकथित तौर पर उद्यमों को फिर से शुरू करने हेतु मजदूरों को रोकने के लिए राज्य सरकारें जबरन वसूल रही पैसा!

यातायात का खर्च मजदूरों पर ही डालने के लिए जन-संगठन करते हैं केंद्र सरकार की भर्त्सना!

मजदूरों की घर-वापसी का पूरा खर्च केंद्र सरकार द्वारा वहन किए जाने की उठाई मांग! सभी कामगार जनता को 3 महीने की मूलभूत न्यूनतम आय भी दिये जाने की मांग की!

मजदूर, युवा, महिला संगठन तथा ट्रेड यूनियन केंद्र सरकार की मजदूरों को उनके घर पहुंचाने के लिए खर्च वसूलने पर कड़ी भर्त्सना करते हैं| ज्ञात हो कि 1 मई को केंद्र सरकार को मजदूरों के देश-भर में हो रहे विरोधों और संघर्षों के दबाव में उन्हें घर जाने की अनुमति देने को मजबूर होना पड़ा था| इन मजदूरों के लिए अब स्पेशल श्रमिक ट्रेनें चलायी जा रही है, लेकिन भारतीय रेल बेहद ही शर्मनाक ढंग से जबरन मजदूरों से ही उनकी घर-वापसी का खर्च वसूल रही है|

ज्ञात हो कि न सिर्फ प्रवासी मजदूरों से खर्च वसूला जा रहा है, बल्कि भारतीय रेल जिसको भारत सरकार चलाती है, वो उनसे बढ़ाकर पैसे वसूल रही है| केंद्र सरकार द्वारा अब तक इन प्रवासी मजदूरों की अवहेलना ही की गयी है, मगर इस कदम से उसका मजदूर-विरोधी चेहरा साफ नज़र आता है| पिछले 40 दिनों में मजदूरों को बेहद ही गंदे और भीड़-भरे शेल्टरों में रोका गया था, जहां रहने और खाने का कोई सही प्रबंध नहीं था| इन असहनीय परिस्थितियों से बिलकुल परेशान मजदूरों के भारत-भर में विरोध हुए| साथ ही, विभिन्न राज्य सरकारों ने पिछले दिनों कोटा से संभ्रांत वर्ग के छात्रों को बिना यातायात-खर्च लिए वापस बुलाया है, लेकिन मजदूरों के लिए ऐसी कोई भी सुविधा नहीं है| शर्मनाक तौर पर, कई कई राज्य सरकारें मजदूरों से जबरन खर्च इसलिए वसूल रही ताकि ज्यादातर को रोककर उनको आर्थिक गतिविधियों को शुरू करने के लिए फिर से लगाया जा सके|  

अब जब केंद्र सरकार को मज़दूरों के दबाव में उनकी घर वापसी की मांग माननी पड़ी है, तब यह जानते हुए भी कि उनके पास पैसे नहीं, फिर भी उनसे खर्च वसूला जा रहा है| हम केंद्र सरकार के इस कदम की भर्त्सना करते हैं और मांग करते हैं कि मजदूरों को उनके घर पहुंचाने का सारा खर्च केंद्र सरकार द्वारा वहन किया जाये| साथ ही, लॉकडाउन से उबरने के लिए सभी कामगारों और मेहनतकश जनता को 3 महीने के बुनियादी न्यूनतम आय प्रदान किया जाना चाहिए।

1. भीम

क्रांतिकारी युवा संगठन (केवाईएस)

2. दिनेश कुमार

मजदूर एकता केंद्र (डबल्यू.यू.सी.आई.)

3. हरीश गौतम

सफाई कामगार यूनियन (एस.के.यू.)

4. फातिमा चौधरी

संघर्षशील महिला केंद्र (सी.एस.डबल्यू.)

5. रामनाथ सिंह

ब्लाइंड वर्कर्स यूनियन (बी.डबल्यूयू.)

6. आरती कुशवाहा

घरेलू कामगार यूनियन (जी.के.यू.)

7. चिंगलेन खुमुकचम

नॉर्थ-ईस्ट फोरम फॉर इंटरनेशनल सोलीडेरिटी (नेफिस)

8. ललित

आनंद पर्वत डेली हॉकर्स एसोसिएशन (ए.पी.डी.एच.ए.)

9. सचिन सिंह भंडारी

दिल्ली मेट्रो कम्यूटर्स एसोसिएशन (डी.एम.सी.ए.)

10. रोहित सिंह

घर बचाओ मोर्चा

11. डॉ. माया जॉन

यूनाइटेड नर्सेज़ ऑफ इंडिया

12. विक्रम

अनाज मंडी पल्लेदार एवं कामगार संघ

लॉकडाउन के समय में प्रतिरोध के बैनर तले

फेसबुक: https://www.facebook.com/LockdownSolidarity/

संपर्क: 9953132396, 9313343753, 9540716048


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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7 Comments on “घर जा रहे मजदूरों से रेलवे द्वारा लिए जा रहे किराये का जनसंगठनों ने किया विरोध”

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