हाल ही में वित्तीय वर्ष 2018-19 की कैग रिपोर्ट जारी हुई है। कैग रिपोर्ट ने प्रदेश सरकार की कमजोरियों को उजागर किया है जिसमें साफ पता चलता है कि हिमाचल प्रदेश का आत्मनिर्भर बनाना अभी दूर की कौड़ी है क्योंकि प्रदेश सरकार गले तक कर्ज में डूब चुकी है और केंद्र के अनुदान और अन्य संस्थानों से मिलने वाले कर्ज पर टिकी हुई है।
खुद प्रदेश सरकार अपने संसाधनों से इतना भी हासिल नहीं कर पाती कि वह अपने कर्माचारियों का वेतन दे सके। यहां तक कि आदिवासी व अनुसूचित जाति सब-प्लान, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि मदों से भी बजट का पैसा बचाया जा रहा है। विकास कार्यों पर जितना पैसा खर्च किया जाता है लगभग उतना ही पैसा सरकार का ब्याज चुकाने में चला जाता है।
राज्य की आर्थिक स्थिति
2018-19 में राज्य राजस्व प्राप्तियां 30950 करोड़ हैं जो पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में 13 प्रतिशत अधिक है लेकिन चिंताजनक बात यह है कि अब भी राज्य अपने संसाधनों से मात्र 33 प्रतिशत राजस्व ही प्राप्त कर पाता है। बाकी के लिए उसको केंद्र सरकार पर निर्भर रहना पड़ता है। इस राजस्व में 67 प्रतिशत हिस्सा केंद्र से आता है।
हिमाचल को केंद्रीय टैक्स और ड्यूटी में से 18 प्रतिशत हिस्सा और अनुदान के रूप में 49 प्रतिशत हिस्सा प्राप्त हुआ। हिमाचल सरकार द्वारा टैक्स के रूप में 7533 करोड़ रुपये और गैर टैक्स राजस्व के रूप में 2830 करोड़ रुपये जुटाये गए हैं वहीं केंद्र से उसे 15117 करोड़ का अनुदान मिला और 5430 करोड़ रुपये उसे केंद्रीय टैक्स में से हिस्सेदारी के रूप में मिले। केंद्र से मिले अनुदानों में केंद्र प्रायोजित योजनाओं के लिए 4010 करोड़ रुपये, वितीय आयोग अनुदान 8831 करोड़ रुपये और व अन्य स्थानांतरण, राज्य अनुदान आदि के रूप में 2276 करोड़ रुपये प्राप्त हुए।
हिमाचल पूरी तरह से केंद्र के सहारे टिका हुआ प्रदेश है अगर यह खुद के संसाधनों से अपने संसाधनों से संपूर्ण राजस्व प्राप्त नहीं कर सकता तो आत्मनिर्भरता की बात करना बेईमानी है।
2018-19 में राज्य सरकार ने 34,493 करोड़ रुपये खर्च किये जो कि पहले की तुलना में 10 प्रतिशत अधिक है। राजस्व में वृद्धि मात्र 6 प्रतिशत और खर्च में 10 प्रतिशत! क्या राज्य सरकार कर्ज लेकर घी नहीं पी रही है? कुल खर्च का 85.3 प्रतिशत राजस्व खर्च होता है। कुल खर्च का 73 प्रतिशत वेतन, भत्ते, ब्याज और सब्सिडी चुकाने में चला जाता है। बचे हुए 27 प्रतिशत से कितना विकास होता होगा आप आंदाजा लगा सकते हैं। राज्य सरकार ने ब्याज चुकाने में ही 4673 करोड़ रुपये खर्च दिए!
राज्य द्वारा वित्तीय वर्ष 2018-19 में मात्र 4583 करोड़ रुपये का पूंजीगत व्यय किया है जो कि कुल खर्च का मात्र 13.29 प्रतिशत है। ज्ञात रहे कि पूंजीगत व्यय का मतलब होता है वह खर्च जो सरकार विकास कार्यों, स्थाई संपत्तियों जैसे स्कूल, कालेज, सड़क, रेलवे, बांध, अस्पताल आदि बनाने के लिए खर्च करती है। हिमाचल सरकार ने पिछले साल जल आपूर्ति, स्वच्छता, हाउसिंग व शहरी विकास पर 492 करोड़ रुपये, स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर 346 करोड़ रुपये, शिक्षा, खेल, कला व संस्कृति पर 327 करोड़ रपुये और आर्थिक सेवाओं के तहत परिवहन पर 2085 करोड़, सिंचाई व बाढ़ नियंत्रण पर 465 करोड़ व बिजली परियोजनाओं पर 250 करोड़ रुपये खर्च किए हैं। सरकार द्वारा मात्र 1283 करोड़ रुपये सब्सिडी के रूप में दिए गये हैं जबकि इसका बहुत ढोल पीटा जाता है। बिजली के लिए 574 करोड़ रुपये, खाद्य और आपूर्ति के लिए 300 करोड़ रुपये और परिवहन के लिए 160 करोड़ रुपये, खेती के लिए मात्र 87 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी जाती है।
कैग ने राज्य सरकार को कहा है कि विशेष श्रेणी के राज्यों की तुलना में शिक्षा पर उसका खर्च घट रहा है। राज्य सरकार को शिक्षा के क्षेत्र को अधिक प्राथमिकता देते हुए पूंजीगत व्यय को बढ़ाना चाहिए। हिमाचल सरकार शिक्षा पर 17.97 प्रतिशत खर्च करती है जबकि विशेष राज्य श्रेणी के राज्य 18.21 प्रतिशत खर्च करते हैं।
कर्जदार हिमाचल सरकार
कर्ज के मामले में हिमाचल की स्थिति बहुत ही खतरनाक बन गयी है। आने वाले समय में इस कर्ज की वजह से हिमाचल के संसाधन लगातार निजी व विदेशी कंपनियों, संस्थाओं व कार्पोरेट्स के हाथों गिरवी रखे जाने की पूरी संभावनाएं बनाती जा रही हैं। राज्य पर 2019 तक 54,299 करोड़ रुपये की देनदारियां (fiscal liabilities) थीं यानी इसको आधार बनाकर देखें तो हिमाचल के हर व्यक्ति पर 79,215 रुपये का कर्ज लदा हुआ है। वहीं पूरे भारत में प्रतिव्यक्ति सरकारी कर्ज के हिसाब से सरकार ने इतना कर्ज लिया हुआ है कि प्रतिव्यक्ति लगभग 58000 रुपये का कर्ज सिर पर है। इस वर्ष हिमाचल में देनदारियां लगभग 60,000 करोड़ तक पहुंच गयी हैं। पिछले साल की तुलना में कर्ज में 6.41 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई है। यह कर्ज राज्य सकल घरेलू उत्पाद (SGDP) का 36 प्रतिशत बैठता है। और कुल राजस्य प्राप्तियों से 1.75 गुणा अधिक है।
इसके अलावा सार्वजनिक कर्ज की बात करें तो यह 2014-15 में 25729 करोड़ था जो कि 2018-19 में बढ़ कर 36,425 करोड़ पहुंच गया है। यह लगातार 9.60 प्रतिशत वार्षिक दर से बढ़ रहा है। बाजार से उठाए गया कर्ज 59 प्रतिशत से बढ़ कर अब 65 प्रतिशत हो गया है।
आने वाले दस सालों में सरकार को बाजार व UDAY के बांड्स के रूप में 26,573 करोड़ रुपये का कर्ज चुकाना होगा यानी सरकार को 25005 का मूल धन के साथ 12,521 करोड़ रुपये का ब्याज भी चुकाना है।
ब्याज चुकाने में 4673 करोड़ रुपये और ढांचागत विकास कार्यों के लिए 4583 करोड़ रुपये सरकार द्वारा खर्च किये गए हैं, इनकी तुलना से आप समझ सकते हैं कि ब्याज हिमाचल के लिए कितनी बड़ी समस्या है।
उपयोग प्रमाण-पत्र देने में समस्याएं
सरकार को कुल 5758 utilisation certificates (उपयोग प्रमाणपत्र) जारी करने था ताकि वह धनराशि खर्च हो सके लेकिन सरकार ने कुल 5128 करोड़ रुपये के 2407 उपयोग प्रमाणपत्र ही जारी किये। वहीं 1898 करोड़ रुपये के प्रमाण पत्र जारी नहीं हुए जो कुल उपयोग प्रमाणपत्रों का 37 प्रतिशत बनते हैं। कैग ने कहा है कि उपयोगी प्रमाणपत्र जारी नहीं करने से फंड के दुरुपयोग व भ्रष्टाचार का जोखिम है। राज्य सरकार को समय पर पत्र जारी करना सुनिश्चित करना चाहिए और जिस संस्थान को फंड दिया जा रहा है उसकी समीक्षा की जानी चाहिए।
कुल 14 स्वायत संस्थानों में से मात्र 3 संस्थानों ने ही 2018-19 में अपने अकाउंट जमा करवाए हैं। बाकी 11 इकाइयों ने एक साल तक अकाउंट लटकाए रखे।
भवन व अन्य निर्माण कामगार कल्याण बोर्ड ने नहीं किये बजट के पैसे खर्च
प्रदेश में भवन व अन्य निर्माण कामगार मजदूरों के कल्याण के लिए 2009 में एक बोर्ड का गठन किया गया था जिसको केंद्र व राज्य सरकार से अनुदान प्राप्त होता है। वहीं सेस के जरिये भी बहुत सारा पैसा उसके पास आता है, लेकिन राज्य का बोर्ड सफेद हाथी साबित हुआ है। पर्याप्त बजट व अनुदान होने के बावजूद श्रमिकों के लिए जारी योजनाओं में न केवल कोताही बरता जा रही है बल्कि नई योजनाएं भी नहीं बनायी जा रही हैं।
कैग ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है बोर्ड के पास 31 मार्च 2018 तक 515.76 करोड़ रुपये थे। बोर्ड को वर्ष 2018-19 में ब्याज व सेस आदि के रुप में 102 करोड़ रुपये प्राप्त हुए, लेकिन बोर्ड द्वारा मात्र 27.03 करोड़ रुपये ही खर्च किए गये हैं। बोर्ड के पास मार्च 2019 तक 590.97 करोड़ रुपये पड़ा हुआ है।
कैग ने सीधे रूप से लिखा है कि इतने बड़े पैमाने पर फंड होने के बावजूद इतनी कम मात्रा में खर्च करना इस बात की और इशारा करता है कि मजदूरों के कल्याण के लिए जारी योजनाओं में बोर्ड उचित रूप से पैसा नहीं खर्च कर रहा है और न ही नई उनके लिए नयी योजनाएं बना रहा है।