मुजफ्फरनगर दंगा: जहां सरकार खुद मुद्दई भी हो और मुंसिफ भी, वहां जनता को न्याय कौन दिलाएगा?


भाकपा (माले) की राज्य इकाई ने 2013 के कुख्यात मुजफ्फरनगर दंगे में सरधना के बीजेपी विधायक संगीत सोम के खिलाफ दर्ज मामले में पुलिस एसआईटी की क्लोजर रिपोर्ट को एक विशेष न्यायालय द्वारा स्वीकार लेने को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। उन्‍होंने पूछा है कि एक ऐसी सरकार में, जो मुद्दई भी खुद हो और मुंसिफ भी खुद, पीड़ित जनता को न्याय आखिर कौन दिलाएगा?

भाकपा (माले) के राज्य सचिव सुधाकर यादव ने बुधवार को जारी एक बयान में कहा कि पहले तो मुख्यमंत्री योगी ने आते ही अपने खिलाफ पूर्व में दर्ज आपराधिक मामलों को खुद ही जज बन वापस करा लिया था। अब वह दंगे के अभियुक्त भाजपा नेताओं के खिलाफ भी मामले अपनी पुलिस से वापस करा रहे हैं। इस तरह योगी सरकार अपने अधिकारों का संविधान और कानून के खिलाफ जाकर दुरुपयोग कर रही है।

उन्होंने कहा कि एक तरफ वह जनता के लोकतांत्रिक अधिकारों में कटौती कर रही है, अभिव्यक्ति की आजादी पर हमले कर रही है, डॉ. कफील जैसे निर्दोषों, सीएए-विरोधी आंदोलनकारियों और सरकार से असहमत लोगों के खिलाफ झूठे मुकदमे लगा रही है, वहीं अपनी पार्टी के नामजद अभियुक्तों पर से बिना उचित जांच कराए मुकदमे हटा रही है। यह भला कौन सा जनहित है?

कामरेड सुधाकर ने कहा कि विशेष अदालत में एसआईटी की उक्त क्लोजर रिपोर्ट का विरोध इसलिए नहीं हो पाया क्योंकि यह काम भी सरकार को ही करना था। जिस पुलिस अधिकारी (मुजफ्फरनगर कोतवाली में तैनात तत्कालीन एसआई सुबोध कुमार) ने संगीत सोम व अन्य के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई थी, उनकी बाद में बुलंदशहर जिले की स्याना कोतवाली में प्रभारी निरीक्षक पद पर रहने के दौरान 2018 में गोकशी का मामला बनाकर भगवा संगठन से जुड़े दंगाइयों द्वारा हत्या कर दी या करा दी गई थी।

माले नेता ने कहा मुजफ्फरनगर दंगा कोई मामूली घटना नहीं थी। इसमें पांच दर्जन से ऊपर लोगों की हत्या हुई थी और हजारों परिवारों को पलायन करना पड़ा था। संगीत सोम समेत भाजपा से जुड़े लोगों द्वारा 2013 में झूठा वीडियो वायरल करने, गैरकानूनी महापंचायत कर लोगों को दंगे के लिए उकसाने जैसा घृणित व आपराधिक कृत्य किया गया था, जिसकी पुष्टि कराने में पुलिस जांच एजेंसी द्वारा न तो रुचि दिखाई गई न ही विश्वसनीय जांच की गई।

अन्ततः योगी सरकार के इशारे पर एसआईटी ने क्लोजर रिपोर्ट लगा दी और विशेष अदालत ने सोमवार को आदेश जारी कर इसे स्वीकृति प्रदान कर दी। ऐसे में दंगा-पीड़ितों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए मामले को ‘क्लोज’ करने के बजाय इसकी न्यायिक जांच कराई जाए। पीड़ितों के अभिभावक के बतौर यह जिम्मेदारी भी राज्य सरकार की ही है। 

अरुण कुमार
राज्य कार्यालय सचिव


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *