उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के अध्यक्ष और अधिवक्ता पीसी तिवारी की ओर से दाखिल वर्ष 2021 की जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए आज माननीय उच्च न्यायालय ने जोशीमठ में हो रहे प्रकरण पर बहुत महत्वपूर्ण दिशानिर्देश जारी किए हैं।
गौरतलब है कि नंदा देवी बायोस्फेयर में ही पूर्व में 7 फरवरी 2021 को ग्लेशियर के टूटने की घटना हुई थी जिसके बाद पीसी तिवारी द्वारा यह जनहित याचिका माननीय उच्च न्यायालय में योजित की गई, जिसने उनके द्वारा अर्ली वार्निंग सिस्टम, असंतुलित विकास को रोकने संबंधी दिशानिर्देश उच्च न्यायालय से चाहे गए।
इस याचिका के लंबित रहते हुए जोशीमठ के प्रकरण के उभार के आने के बाद पुनः उनकी अधिवक्ता स्निग्धा तिवारी द्वारा के अंतरिम निवेदन यह किया गया को जोशीमठ में हो रहे भूस्खलन और दरारों की वजह से 700 से ज्यादा मकान चपेट में आ गए हैं और जिस शहर को आबादी ही 23000 के करीब है, उस पर इसका एक बहुत गंभीर दुष्प्रभाव पड़ रहा है।
वहां के लोगों की पीड़ा को आवाज देते हुए स्निग्धा की और से यह तर्क दिया गया की वर्ष 1976 में ही मिश्र कमिटी की रिपोर्ट में यह बात स्पष्ट हो गई थी कि जोशीमठ शहर भूस्खलन के क्षेत्र में बना हुआ शहर है और इसीलिए प्राकृतिक रूप से संवेदनशील है। इसके उपरांत 2010 में पुनः विशेषज्ञों द्वारा यह आगाह किया गया था कि जोशीमठ क्षेत्र में बड़ी जल विद्युत परियोजनाओं का संचालन नही होना चाहिए परंतु उनकी किसी ने नहीं सुनी तथा वर्तमान में प्रभाव सबके सामने है।
सरकार की ओर से और जल विद्युत परियोजना कंपनियों की ओर से यह कहा गया कि उनके द्वारा वर्तमान में निर्माण या विस्फोट नहीं लिया जा रहा है। उनकी इस बात का नोट बनाते हुए उच्च न्यायालय ने पुनः यह स्पष्ट कर दिशानिर्देश दिए कि वहां कोई निर्माण न हो और साथ ही साथ एक स्वतंत्र विशेषज्ञों की समिति जिसमें सभी विशेषज्ञों को शामिल करने को कहा गया है और इन सभी विशेषज्ञों की रिपोर्ट को एक बंद लिफाफे में माननीय उच्च न्यायालय के समक्ष रिपोर्ट करने के लिए कहा है और मामले को अगली सुनवाई दो माह बाद लगाई है।
आम मानस को यही उम्मीद है की उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से जोशीमठ प्रकरण से सीख ली जाएगी।