उत्तराखंड के आंदोलनकारी लेखक त्रेपन सिंह चौहान का निधन, उपपा ने दी श्रद्धांजलि


उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने प्रखर राज्य आंदोलनकारी, साहित्यकार, श्रमिक नेता त्रेपन सिंह चौहान के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया है। उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी. सी. तिवारी ने कहा कि त्रेपन के निधन से उत्तराखंड ने एक प्रबुद्ध, बहुआयामी संघर्षशील नेतृत्व हमेशा के लिए खो दिया है।

उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी द्वारा आयोजित शोक सभा में पार्टी के केंद्रीय अध्यक्ष पी. सी. तिवारी ने कहा कि त्रेपन ने विकास कार्यों में भ्रष्टाचार के ख़िलाफ़ चमियाल (टिहरी) से चेतना आंदोलन शुरू किया जो काफी सफल रहा। उनके नेतृत्व में फलिंडा (टिहरी) में जल विद्युत परियोजनाओं की मनमानी के ख़िलाफ़ लंबा आंदोलन चला जिसमें बड़ी संख्या में लोगों पर मुकदमे लगाए गए, जेल भेजा गया। वे उत्तराखंड आंदोलन में बहुत सक्रिय रहे। इस आंदोलन पर लिखे उनके दो उपन्यास यमुना एवं हे ब्वारी काफी चर्चित रहे। नानीसर (अल्मोड़ा) में, ज़मीन की लूट के ख़िलाफ़ चले आंदोलन में भी वे सक्रिय रहे। देहरादून क्षेत्र में असंगठित क्षेत्र के श्रमिकों को एकजुट करने एवं कृषि, पशुपालन से जुड़ी ग्रामीण महिलाओं के सम्मान के लिए उन्होंने चर्चित घस्यारी प्रतियोगिताएं आयोजित की। त्रेपन भाई का पूरा परिवार व इलाका उनके इन संघर्षों में शामिल रहता था। पिछले चार वर्षों से वे लाईलाज बीमारी के कारण परेशानी झेल रहे थे लेकिन इस दौरान भी वे लिखने के साथ जन सरोकारों से वास्ता रखते थे।

त्रेपन के निधन से हमने एक सच्चा, ईमानदार, संघर्षशील, जीवट साथी खो दिया है किन्तु उनकी जीवटता और साहित्य राज्य का मार्गदर्शन करते रहेंगे।

उपपा कार्यालय में आयोजित शोक सभा में पार्टी की केंद्रीय सचिव आनंदी वर्मा, गोपाल, धीरेन मोहन पंत, राजू गिरी, किरण, स्निग्धा तिवारी, हीरा, चंपा, नारायण राम आदि उपस्थित थे। शोक सभा के अंत में दो मिनट का मौन रखकर त्रेपन भाई को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *