समाज के सवालों का हल आंदोलन तय करेंगे: मुहम्मद शुऐब


निज़ामाबाद, आज़मगढ़ के किरन मैरेज हॉल में ‘हमारा समाज, हमारा सवाल’ विषय पर एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया। सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ताओं के साथ क्षेत्रवासियों ने भी अपनी बात रखी।

मुख्य अतिथि रिहाई मंच के अध्यक्ष एडवोकेट मुहम्मद शुऐब ने कहा कि आज समाज के सवालों का मुख्य कारण मुनाफाखोर पूंजीपतियों की लूट है। इस लूट को राजनीतिक संरक्षण प्राप्त है। देश को बेहतर दिशा युवा दे सकता है। युवा नेतृत्व को बढ़ाने और सामाजिक आंदोलनों को तेज करना देश के लोकतंत्र के लिए बहुत जरूरी है।

सामाजिक कार्यकर्ता एकता शेखर ने कहा कि सामाजिक आंदोलनों में महिलाओं की भागीदारी के बगैर सामाजिक परिवर्तन संभव नहीं।

किसान नेता बलवंत यादव ने कहा कि देश का जवान-किसान संकट में है। आज इलाहाबाद में छात्र आत्महत्या करने को मजबूर है। नौजवानों के अरमान फांसी के फंदों पर झूल रहे हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता रवि शेखर ने कहा कि आज पूरी दुनिया पर्यावरण संकट से जूझ रही है जिसका सीधा असर आम जनता पर पड़ रहा है। किसानी के संकट ने देश की किसानों-नौजवानों के सामने जीवन का संकट खड़ा कर दिया है।

स्वराज अभियान के नेता रामजनम यादव ने कहा कि किसान आंदोलन ने देश को नई दिशा दी है। आज लोकतंत्र खतरे में है। अग्निवीर जैसी भर्तियां नौजवानों के सामने रोजगार ही नहीं बल्कि सेना को कमजोर करने की साजिश है।

हरियाणा से आए किसान नेता राजकुमार भारत ने कहा कि जिस तरह से पंजाब-हरियाणा का किसान खड़ा हुआ ठीक उसी तरह से पूर्वांचल के मजदूरों-किसानों को खड़ा होने की जरूरत है।

संतोष धरकार ने कहा कि उत्पीड़न के शिकार दलित-वंचित समाज के हक-हुक़ूक़ के बगैर समाज मजबूत नहीं हो सकता।

संगोष्ठी को रिहाई मंच नेता मसीहुद्दीन संजरी, सामाजिक न्याय आंदोलन के राजेन्द्र यादव, संदीप यादव, किसान नेता राजनेत यादव, शाहआलम शेरवानी, अल फलाह फ्रंट के जाकिर, हवलदार भारती, राजेश कुमार, बृजेन्द्र यादव, आलम ने संबोधित किया।

लोकगीत कलाकार काशीनाथ यादव ने लोकगीत प्रस्तुत किया। अध्यक्षता चंद्रकेश यादव ने की।


द्वारा
राजीव यादव
महासचिव, रिहाई मंच


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *