शंभू और खनौरी बॉर्डर पर 10 महीने से जारी गतिरोध खत्म किया जाए, PM से अपील


पीयूसीएल इस बात से स्तब्ध है कि भारत सरकार ने पंजाब की खनौरी और शंभू सीमाओं पर बैठे किसानों के 10 महीने लंबे विरोध प्रदर्शन का जवाब देने से इनकार कर दिया है। इससे भी बुरी बात यह है कि एसकेएम (गैर-राजनीतिक) के नेता, 73 वर्षीय जगजीत सिंह दल्लेवाल के आमरण अनशन के प्रति पूरी तरह से उपेक्षा और संवेदनहीन रवैया अपनाया गया है, जो कि डॉक्टरों के अनुसार अनशन के 27वें दिन (22दिसंबर, 2024), बहुत गंभीर है और अगर उपवास वापस नहीं लिया गया तो कार्डियक अरेस्ट और मल्टीपल ऑर्गन फेल्योर का बहुत अधिक खतरा है। फिर भी सरकार के किसी भी प्रतिनिधि को जगजीत सिंह दल्लेवाल या सीमाओं पर बैठे प्रदर्शनकारी किसानों के समूह से बातचीत करने या सुनने के लिए नहीं भेजा गया है।

लोकतंत्र लोगों की आवाज सुनने के बारे में है और जब किसान अपना दर्द, गुस्सा और असंतोष व्यक्त कर रहे हैं, तो यह जरूरी है कि सरकार उनकी बात सुने। विरोध प्रदर्शनों को नजरअंदाज करने से यह संदेश जाता है कि सरकार किसानों जो कि देश की जीवनरेखा हैं,की चिंताओं पर प्रतिक्रिया नहीं दे रही है। भारत सरकार द्वारा अपनाया गया असहमति को नजरअंदाज करने और कुचलने का यह सत्तावादी रास्ता,भारत की दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र होने की छवि के साथ कोई न्याय नहीं करता है।

यह भी याद किया जाना चाहिए कि दिल्ली की सीमाओं पर साल भर चलने वाले किसानों के आंदोलन (नवंबर, 2021 से दिसंबर, 2022) को आंदोलनरत किसान समूहों ने भारत सरकार द्वारा अन्य मांगों के साथ सभी फसलों के लिए एमएसपी की कानूनी गारंटी सुनिश्चित करने के वादे के बाद हटा दिया था। वादे के चौदह महीने सरकार की बिना किसी प्रतिक्रिया के बीत जाने के बाद किसानों का उत्तेजित हो जाना स्वाभाविक है।



काफी सोच-विचार के बाद ही 13 फरवरी, 2023 को सैकड़ों यूनियनों और समूहों वाले किसानों के दो मंचों, संयुक्त किसान मोर्चा (गैर-राजनीतिक) और किसान मजदूर मोर्चा ने सरकार पर दबाव बनाने के लिए हजारों की संख्या में दिल्ली तक मार्च करने का फैसला किया। भारत सरकार की 2022 में दिल्ली सीमा पर लाखों प्रदर्शनकारी किसानों से किए गए वादों को पूरा करने की जवाबदेही है। जैसा कि अपेक्षित था, सरकार ने किसानों को पंजाब में पंजाब-हरियाणा सीमा के दोनों गांवों खनौरी और शंभू में पुनःरोक दिया गया। गौरतलब है कि किसानों पर गोलियां और पैलेट गन से हमला किया गया, जिसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई और कई घायल हो गए। कुछ युवा किसानों पर पुलिस अत्याचार हुआ, जिन्हें बाद में अस्पताल में भर्ती कराया गया (किसानों के विरोध पर पीयूसीएलh प्रेस नोट का लिंक)।

शुरुआती दौर में केंद्र सरकार के कुछ मंत्रियों ने आकर किसान नेताओं से बात की थी और उनसे दिल्ली कूच न करने का आग्रह किया था।.हालाँकि, जब किसानों ने अपनी योजना वापस नहीं ली तो भारत सरकार ने उनसे मिलने से भी इनकार कर दिया और उनकी अनदेखी करने का फैसला किया। किसानों की ओर से कई प्रयास किए गए, लेकिन भारत सरकार ने पिछले 10 महीनों में किसानों की बात सुनने से इनकार कर दिया।

केवल सर्वोच्च न्यायालय के हस्तक्षेप के बाद ही किसानों की मांगों की व्यावहारिकता के की जांच करने के लिए भारत सरकार द्वारा अंततः एक समिति का गठन किया। भारत सरकार ने समिति की रिपोर्ट को सार्वजनिक करने से इनकार कर दिया है। जब विरोध करने वाले किसानों को सरकार ने दिल्ली में प्रवेश करने देने में पूरी तरह से इनकार कर किया गया और हरियाणा पुलिस द्वारा उनका दमन किया गया, तो अंतिम उपाय के रूप में जगजीत सिंह दलेवाल ने 26 नवंबर से आमरण अनशन शुरू कर दिया। किंतु उनकी आवाज और मांगें नहीं सुनी गईं।

भारत सरकार के अड़ियल रवैये तथा कोई सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं मिली, तो 6, 8 और 14 दिसंबर को किसानों ने सैकड़ों की संख्या में हरियाणा में प्रवेश करने और ट्रैक्टर छोड़कर निहत्थे पैदल चलकर दिल्ली की ओर मार्च करने की कोशिश की। हरियाणा पुलिस ने आंसू गैस के गोले जैसे अत्याधुनिक हथियारों, जो जीवन के लिए खतरनाक और घातक थे,का इस्तेमाल करके मार्च करने वालों को रोकने का फैसला किया। किसानों ने 18 दिसंबर को रेल रोको आंदोलन भी किया, लेकिन भारत सरकार ने विरोध को नजरअंदाज करते हुए और इसे कानून-व्यवस्था की समस्या मानकर किसी भी तरह की प्रतिक्रिया देने से इनकार कर दिया है। इस महीने की शुरुआत में किसान नेता सरवन सिंह पंधेर ने घोषणा करते हुए कहा है कि किसानों ने 30 दिसंबर को ‘पंजाब बंद’ का आह्वान किया है।



पीयूसीएल का मानना है कि सरकार को प्रदर्शनकारी किसानों की मांगों पर तत्काल ध्यान देना चाहिए। हम यह भी मांग करते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की रिपोर्ट को सार्वजनिक किया जाए और सरकार से जगजीत सिंह दल्लेवाल, सरवन सिंह पंडेर और अन्य किसान नेताओं के साथ बातचीत करने का आग्रह किया जाए। एक प्राथमिक मांग सभी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की कानूनी गारंटी है। इसके अतिरिक्त, किसान प्रस्तावित बिजली सुधारों और कृषि कनेक्शनों के लिए स्मार्ट मीटरों की चल रही स्थापना का विरोध करते हुए बिजली (संशोधन) विधेयक 2022 को वापस लेने की मांग कर रहे हैं। किसान व्यापक ऋण माफी की भी मांग करते हैं, बकाया ऋण को पूरी तरह से रद्द करने की मांग करते हैं। एक और महत्वपूर्ण मुद्दा 2021 की लखीमपुर खीरी हिंसा से जुड़े पुलिस मामलों को वापस लेना है। प्रदर्शनकारियों का तर्क है कि ये मामले राजनीति से प्रेरित हैं और इनका उद्देश्य कानूनी रूप से वैध असहमति को दबाना है। हम घटना के पीड़ितों के लिए न्याय की भी मांग करते हैं, जिसमें निष्पक्ष जांच और आरोपियों के लिए निष्पक्ष सुनवाई भी शामिल है। आगे की मांगों में भूमि अधिग्रहण अधिनियम, 2013 को बहाल करना और 2020-21 के आंदोलन के दौरान अपनी जान गंवाने वाले किसानों के परिवारों को मुआवजा प्रदान करना शामिल है।

पीयूसीएल की मांग है कि इन बिंदुओं पर सरकार प्राथमिकताओं से विचार करे तथा ऐसा करने पर ही किसानों के साथ वाजिब न्याय हो सकेगा।


कविता श्रीवास्तव (अध्यक्ष), 9351562965
वी. सुरेश (महासचिव) 9444231497
332, पटपड़गंज आनंद लोक अपार्टमेंट के सामने, गेट नंबर 2, मयूर विहार – 1, दिल्ली 110091 ईमेल: puclnat@gmail.com, www.pucl.org


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *