पंजाब के स्थानीय चुनाव में जनता ने भाजपा को माकूल जवाब दिया है: डॉ. सुनीलम


किसान संघर्ष समिति के अध्यक्ष, जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय के राष्ट्रीय संयोजक मंडल के सदस्य, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति के वर्किंग ग्रुप के सदस्य एवं पूर्व विधायक डॉ सुनीलम ने मुजफ्फरपुर में खुदीराम बोस के स्मारक पर धरना दे रहे किसानों पर विश्व हिंदू परिषद के गुंडों द्वारा हमला करने पर आक्रोश व्यक्त करते हुए हमलावरों पर तत्काल कार्यवाही की मांग की है।

डॉ सुनीलम ने कहा कि-

आरएसएस और भाजपा के गुंडों द्वारा पहले भी दिल्ली में कई बॉर्डरों पर तथा ग्वालियर में आंदोलनकारी किसानों पर हमले किए जा चुके हैं जिससे पता चलता है कि केंद्र एवं तमाम राज्यों में सत्ता में काबिज होने के बावजूद भाजपा किसान आंदोलन से बौखला गई है तथा वह किसानों के आंदोलन को कुचलने और बदनाम करने के लिए एक तरफ हमले करवा रही है तथा दूसरी तरफ दिशा रवि, निकिता जैकब ,शांतनु को टूल किट को लेकर एफआईआर कर फर्जी मुकदमों में फंसा कर युवाओं की किसान आंदोलन में भागीदारी रोकने का प्रयास कर रही है।

डॉ सुनीलम ने कहा-

भारत का संविधान अभिव्यक्ति की आजादी देश के हर नागरिक को देता है तथा कोई भी सरकार इस संवैधानिक अधिकार को नहीं छीन सकती। मोदी, भाजपा और कोई भी सरकार भारत नहीं है। न ही सरकार की नीतियों के विरोध को राष्ट्रविरोधी माना जा सकता है। यह सर्वोच्च न्यायालय भी कई बार स्प्ष्ट कर चुका है। एक समय में इंदिरा गांधी को ‘इंदिरा इज इंडिया’ कहकर संबोधित किया गया था, इसका माकूल जवाब भारत की जनता ने दिया था। वही जवाब आज पंजाब के स्थानीय चुनावों में पंजाब की जनता ने भाजपा को दिया है।

डॉ सुनीलम ने बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से अपील की है कि वे फासिस्ट ताकतों की कठपुतली बन कर कार्य ना करें तथा राज्य के मुख्यमंत्री होने के नाते बिहार के हर नागरिक की सुरक्षा तथा संवैधानिक अधिकारों की रक्षा के लिए कार्य करें।
डॉ सुनीलम ने संविधान में विश्वास रखने वाले संगठनों और नागरिकों से अपील की है कि वे मुजफ्फरपुर में हुए हमले तथा टूल किट पर एफआईआर कर फर्जी मामलों में फँसाए गए युवाओं की गिरफ्तारी का हर स्तर पर विरोध करें।


भागवत परिहार
कार्यालय सचिव
9752922320


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *