प्रवासी श्रमिकों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेशाें पर तत्काल अमल करे सरकार: NAPM


29 मई, 2020: सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश न्यायमूर्ति अशोक भूषण, संजय किशन कौल, एम. आर. शाह की खंडपीठ ने स्थलांतरित मजदूरों के सवालों पर सुनवायी की। स्थलांतरित मजदूरों के जीने के अधिकार पर हमला है, इस दावे के साथ संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत ’जन आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय’ के समन्वयक मेधा पाटकर और आशीष रंजन (बिहार), सुनीता रानी (दिल्ली), विमल भाई, बिलाल खान (मुंबई) की ओर से प्रस्तुत याचिका को, अन्य याचिकाओं के साथ सर्वोच्च अदालत ने suo moto ली गई उनकी याचिका के साथ जोड़ दिया। जन आंदोलनों की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता एडवोकेट संजय पारीख ने पैरवी की। उनके अलावा एडवोकेट कपिल सिबल, अभिषेक मनु सिंघवी और कोलिन गोन्साल्विस ने भी बात रखी।

स्थलांतरित मजदूरों के लॉकडाउन के चलते वापसी की यात्रा, उसमें भुगत रहे अन्याय और अत्याचार, उनका रजिस्ट्रेशन, उनके भोजन, पानी, निवारा की व्यवस्था तथा गाव/घर वापस लौटने के बाद उनकी भुखमरी, कुपोषण, बेरोजगारी के मुद्दों पर शासनकर्ताओं की जिम्मेदारी एवं सर्वोच्च अदालत की ओर से निगरानी संबंधी यह विशेष याचिका 20.05.2020  को प्रस्तुत की गयी। उसके कुछ दिन बाद ही सर्वोच्च अदालत ने स्वयं इस ‍मुद्दे की दखल लेते हुए केंद्र शासन तथा सभी राज्य सरकारों को नोटिस पारित  करके जवाब प्रस्तुत करने को कहा। केंद्र शासन से आज तक जवाबी हलफ़नामा प्रस्तुत नहीं किया और आज भी अगली तारीख याने कुछ दिनों की मोहल्लत मांग ली।

अदालतने आज की सुनवाई के बाद (para 18, 19 of diary no. 113944/2020) याचिकाओं में दी जानकारी, विश्लेषण और सुझाव जो अधिवक्ता पारीखजी ने प्रस्तुत किये, उनकी विशेष दखल लेते हुए निम्नलिखित अंतरिम निर्देश दिए हैं:

1. प्रवासी मजदूरों का वापसी के लिए रजिस्ट्रीकरण वे जहाँ हैं, वही विशेष केंद्र स्थापित करके किया जाए।

2.  प्रवासी मजदूरों का रेल या बस से सफ़र पूर्णतः मुफ़्त होनी चाहिए। राज्य सरकारों को उसका पूरा खर्च उठाना होगा।

3. प्रवासी मजदूरों को वे जहाँ अटके हैं, वही मुफ़्त भोजन राज्य सरकारों को तथा राष्ट्रपति शासन को उपलब्ध कराना चाहिए।

4. रेल से सफ़र करने वाले प्रवासी मजदूरों को रेल में चढ़ने के पूर्व राज्य शासन से भोजन, पानी उपलब्ध करना होगा तथा रेलके दौरान केंद्रीय रेल मंत्रालय उन्हें खाना, पानी उपलब्ध करे। बस से सफ़र करते वक्त भी यही सुविधा उपलब्ध की जाए जो कि बस में या रास्तों में थांबे पर रुककर दी जाए।

5. राज्य शासनने प्रवासी मजदूरों के रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया गतिमान व सरल हो और उसके लिए ’हेल्पडेस्क’ उन्हीं जगहों पर उपलब्ध किया जाए, जहाँ मजदूर रुके है।

6. शासन ने हर प्रकार के प्रयास से यह देखना जरूरी है कि रजिस्ट्रेशन के बाद श्रमिकों को जल्द से जल्द रेल या बस उपलब्ध की जाए और उसके सफ़र के साधन संबंध में पूरी जानकारी सभी संबंधितों को प्राप्त हो।

7. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी आदेश दिया है कि जो प्रवासी मजदूर हाइवे या रास्ते पर पैदल चलते हुए पाए जाएंगे, उन्हें तत्काल राज्य शासन/ राष्ट्रपति शासन हर सेवा उपलब्ध करे और उन्हें उनके गन्तव्य तक पहुंचाने के लिए वाहन व्यवस्था त्वरित उपलब्ध की जाए। रास्ते पर पाये सभी श्रमिकों को भोजन, पानी की सुविधा उपलब्ध की जाए।

8. उनके अपने राज्यों में पहुंचने पर हर श्रमिक को सफ़र के लिए वाहन, स्वास्थ की जाँच व अन्य सुविधाएँ मुफ़्त में उपलब्ध की जाएं।

आज तक समाजिक संगठनों, संस्थाओं ने, कार्यकर्ता समूहों ने उठाए मुद्दों की दखल उच्चतम न्यायालय ने ली है। इन निर्देशों का स्वागत करते हुए जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय आग्रह से अपेक्षा करता है कि केंद्र तथा राज्य सरकार उपरोक्त आदेशों का पूर्ण पालन करे। इस अनियोजित लॉकडाउन के लिये जिम्मेदार केंद्र सरकार भी उसकी वजह से राज्य सरकार के भुगत रहे आर्थिक बोझ का कुछ जिम्मा उठाये, ऐसी हमारी मांग है।

अगली सुनवाई 5 जून 2020 को होगी। उच्चतम न्यायालय का आदेश संलग्न है।

SC-Order-28thMay-2020-Migrant-Workers


अधिक जानकारी के लिये संपर्क – 9174181216/9423571784 या ई-मेल: napmindia@gmail.com

महेंद्र यादव, आनंद माझगांवकर, संजय मं.गो., सुनीती सु.र. और साथी

जन आंदोलनों का राष्ट्रीय समन्वय


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