ओडिशा: पर्यावरण दिवस पर धारा 144, दमन और गिरफ्तारी, माली पर्वत के लोगों का बयान


जोहार! विश्व पर्यावरण दिवस की सभी को शुभकामनाए!

हम तिजिमाली, कुटुरूमाली और मझिंगिमाली के आदिवासी और दलित, अपनी पहाड़ियों, जंगलों और झरनों को बड़ी कॉर्पोरेट कंपनियों द्वारा की जा रही बॉक्साइट खनन योजनाओं से बचाने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम छोटे किसान, जंगलों में रहने वाले, मजदूरी करने वाले और अपनी रोजी-रोटी के लिए काम करने वाले लोग विश्व पर्यावरण दिवस को एक आम नागरिक के रूप में मनाते हैं क्योंकि यह दिन हमें दुनिया भर के संघर्षशील लोगों के साथ एकजुट होने और ताकत महसूस करने की खुशी देता है। तमाम सारी सरकारें भी विश्व पर्यावरण दिवस मनाती हैं और वे यह करने के लिए कटिबद्ध हैं।

इसलिए, हम बहुत गहरे दुख और शर्म साथ यह बात साझा करते हैं कि हमारी मुख्य अतिथि प्रतिष्ठित और विख्यात पर्यावरण कार्यकर्ता मेधा पाटकर को 5 जून 2025 ओडिशा पुलिस द्वारा रायगड़ा स्टेशन पर रोक दिया गया। एक देश के नागरिक होने के नाते, क्या हमें यह अधिकार नहीं है कि हम पर्यावरण दिवस मनाएं और उसके लिए एक प्रेरणादायी शख्सियत को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करें?

हमने मेधा पाटकर को खबरों में देखा है और उनके बारे में पढ़ा है। हम जानते हैं कि उन्होंने अपना पूरा जीवन पर्यावरण संरक्षण और देशभर में चल रहे जन आंदोलनों के लिए एकजुटता प्रदर्शित करते हुए बिताया है। हम आप सभी से यह सवाल पूछते हैं कि क्यों तिजिमाली के लोगों को जिला प्रशासन और ओडिशा सरकार द्वारा मेधा पाटकर की उपस्थिति से वंचित कर दिया गया?

यह सब इसलिए है क्योंकि हमने अपनी जमीन और पर्यावरण को वेदान्ता और उसकी अनुबंधित कंपनी  मैत्री इन्फ्रास्ट्रक्चर की बाक्साइट खनन योजनाओं से बचाने के लिए दो वर्षों की लम्बी लड़ाई लड़ी है। 5 जून के कार्यक्रम की तैयारियों के दौरान जो गिरफ्तारी और दमन हुआ, वह उल्लेखनीय है।

  • 31 मई की सुबह शायद सुबह 4 या 5 बजे, प्रशासन के कुछ अधिकारी सगाबाड़ी से खदान क्षेत्र की ओर जाने वाली सड़क पर जाने की कोशिश कर रहे थे लेकिन मालिपदर गांव की औरतों ने रोक दिया। जब वे नीचे लौट रहे थे, तो रास्ते के बीच में दोबारा उनका सामना गुस्साए ग्रामीणों से हुआ, जिन्होंने पूछा कि वे इतनी चोरी-छिपे खदान इलाके में क्यों जा रहे हैं। अंततः, बंटेज गांव के पास तीसरी बार टकराव हुआ, जहां दो बोलेरो गाड़ियां पहुंच गईं जिनमें पुलिस और अर्धसैनिक बल सवार थे।
  • लगता है, 31 मई के इस टकराव में जो ग्रामीण सबसे आगे थे उन्हें निशाना बनाया जा रहा है। हमें लगता है कि प्रशासन और पुलिस ने जान-बूझ कर उस सुबह इलाके में घुसने की कोशिश की ताकि हम उकसावे में आ जाएं और 5 जून के कार्यक्रम को रद्द कर दें। यह पहली बार नहीं है जब प्रशासन और पुलिस ने असमय चोरी छिपे खदान क्षेत्र में प्रवेश करने की कोशिश की और हमेशा ग्रामीणों ने उन्हें रोक दिया।
  • हमारे संगठन ‘माँ माटी माली सुरक्षा मंच’ के प्रमुख सदस्यों में से एक जलेश्वर नायक 3 जून 2025 को लापता हो गए। वे बंटेज गांव के जीतेन्द्र नायक के साथ दोपहर लगभग 4 बजे अपनी बहन के घर बराकौड़ी गांव (ग्राम पंचायत: डूमरपदार, थुआमुल रामपुर) जा रहे थे। रास्ते में, उन्हें 15 से अधिक गुंडों ने घेर लिया, उनके साथ गाली-गलौज की, उनके साथ मारपीट की, उनके कपड़े फाड़ दिए और उनका चश्मा तोड़ दिया। इसके बाद उन गुंडों ने पुलिस बुला ली (काशीपुर और थुआमुल रामपुर थानों की) और उन्हें पुलिस के हवाले कर दिया। पुलिस जलेश्वर को किसी अज्ञात स्थान पर ले गई और वहां भी जातिसूचक गालियां देते हुए उनके साथ मारपीट की गई। रात तकरीबन 8 बजे, जलेश्वर के बहनोई ने उनके परिवार और बंटेज गांव के अन्य लोगों को सूचित किया कि जलेश्वर को गिरफ्तार कर काशीपुर थाने में रखा गया है।
  • वकील के अनुसार काशीपुर पुलिस ने जलेश्वर नायक को 3 जून की रात 1 बजे काशीपुर के जेएमएफसी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया और पुलिस हिरासत में ले लिया। इसके बाद 4 जून 2025 की सुबह जलेश्वर को रायगढ़ा उप-जेल भेज दिया गया। जब जलेश्वर के भाई और चचेरे भाई उनसे जेल में मिलने और उनके लिए कुछ कपड़े देने पहुंचे, तो पुलिस ने उन्हें मिलने की अनुमति नहीं दी और धमकी दी कि उन्हें भी गिरफ्तार कर लिया जाएगा। जलेश्वर नायक पर लगाए गए विशेष आरोपों का विवरण अभी तक प्राप्त नहीं हुआ।
  • 4 जून को सुबह लगभग 10 बजे, लगभग 150 ग्रामीणों ने दो पिक-अप ट्रक किराए पर लेकर काशीपुर जाने की तैयारी की, ताकि जलेश्वर नायक के अचानक ग़ायब होने और उनकी गिरफ्तारी के बारे में जानकारी ली जा सके। जब ये ग्रामीण नकटी घाटी (जो काशीपुर की सीमा पर स्थित है) पहुँचे, तो उन्हें करीब 250 पुलिस और अर्धसैनिक बलों ने जबरन रोक लिया। इसके बाद पुलिस बल ने हमारे समुदाय के नेताओं की तलाश शुरू कर दी।
  • जलेश्वर के पिता ने साहसपूर्वक पुलिस का सामना किया और कहा कि वे और अन्य ग्रामीण शांतिपूर्ण ढंग से जा रहे हैं ताकि जलेश्वर की गिरफ्तारी की जानकारी ली जा सके और उसकी अवैध गिरफ्तारी के खिलाफ शिकायत दर्ज कराई जा सके। ग्रामीणों और पुलिस के बीच तीखी बहस शुरू हो गई। इस पर पुलिस ने सवाल उठाया कि इतने सारे लोग क्यों आ रहे हैं। एक पुलिस अधिकारी ने रामकांत नायक की कमीज़ का कॉलर पकड़ कर खींचा, तो औरतों ने उन्हें घेर लिया, ताकि उनकी गिरफ्तारी को रोका जा सके। औरतों ने जब अन्य पुरुष नेताओं को बचाने की कोशिश की, तो पुलिस ने औरतों पर लाठियां बरसाईं।
  • इस पुलिस हमले में दो औरतों की हड्डियां टूट गईं। बोंडेल गांव की नारंगी देई को तुरंत काशीपुर सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र (CHC) ले जाया गया, जहां चिकित्सा अधिकारी ने उनकी कलाई में गंभीर फ्रैक्चर की पुष्टि की। कंटामाल गांव की नार्गी देई की हड्डी भी टूट गई थी, वह घबराहट और डर के कारण बिना किसी उपचार के ही अपने गांव लौट गईं। पुलिस द्वारा की गई इस बर्बर लाठीचार्ज में कई औरतें घायल हुईं।
  • ग्रामीणों ने अपनी आंखों से देखा कि रमाकांत नायक (उम्र 30 वर्ष) को पुलिस की बस में चढ़ाते वक्त बुरी तरह पीटा गया।
  • वकील के अनुसार, पुलिस ने रमाकांत नायक (पुरुष, उम्र 30 वर्ष, गांव- बंटेज) और सुंदरसिंह माझी (पुरुष, उम्र 26 वर्ष, गांव- कांतमाल) को 4 जून की शाम को जेएमएफसी मजिस्ट्रेट के समक्ष पेश किया। इसके बाद दोनों को रायगढ़ा उप-जेल भेज दिया गया। उन दोनों पर लगाए गए विशेष आरोपों का विवरण अब तक प्राप्त नहीं हो सका है।
  • 4 जून की शाम को, पुलिस ने वाहनों में गांवो में जाकर घोषणा की कि क्षेत्र में धारा 144 लागू कर दी गई है, और किसी भी प्रकार की सभा या जमावड़ा नहीं हो सकता।
  • रमाकांत नायक के बहनोई, जो कल सुबह उनसे मिलने कोर्ट गए थे, को चार घंटे तक कोर्ट परिसर में हिरासत में रखा गया और उन्हें रमाकांत से मिलने की अनुमति नहीं दी गई।
  • एक साथी ग्रामीण, जो रायगढ़ा उप-जेल में उस समय मौजूद थे, ने देखा कि जलेश्वर और रमाकांत लंगड़ाते हुए चल रहे थे और बिना सहारे के चल पाने में असमर्थ थे। दोनों को पुलिस वाले बोलेरो तक ले गए और उन्हें इलाज के लिए रायगढ़ा जिला अस्पताल ले जाया गया।

सिजीमाली को कभी चुप नहीं कराया जा सकता। हमारे लोगों ने अपनी आवाज, अपने चलने-फिरने के अधिकारों पर कभी कोई पाबंदी नहीं देखी। 5 जून का दिन सभी के लिए उत्सव जैसा था। कुछ भ्रम ज़रूर था पर यह एक खुशियों भरा मौका था। फिर भी सैकड़ों की संख्या में लोग सुन्गेरहाट की ओर पैदल चलते रहे। हर गांव से बड़ी संख्या में औरतें और बच्चे निकल पड़े। कंटामाल में एक विशाल सभा हुई।  ऐसे दमनात्मक हालातों के बावजूद उमड़े जनसैलाब को देखकर हमें पूरा विश्वास है कि अगर प्रशासन ने ऐसी दमनकारी कार्रवाई नहीं की होती, तो कम से कम 10,000 लोग इस आयोजन में शामिल होते।

जब पूरी दुनिया में बढ़ते हुए जलवायु परिवर्तन संकट को देखते हुए प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा के लिए हर स्तर पर प्रयास किए जा रहे हैं, तब यह अत्यंत हैरान करने वाली बात है कि ओडिशा सरकार ने धारा 144 लागू कर हमें विश्व पर्यावरण दिवस मनाने से रोक दिया। इससे भी अधिक निंदनीय यह है कि रायगड़ा प्रशासन ने शांति भंग और कानून व्यवस्था के बिगड़ने की आशंका के नाम पर हमारे उन साथियों और समर्थकों को, जो जनता और पर्यावरण के लिए काम करते हैं, दो महीनों के लिए ज़िले में प्रवेश करने से प्रतिबंधित कर दिया है जबकि वेदांता और उसकी अनुबंधित कंपनियों को संरक्षण दिया जा रहा है, जिनकी गतिविधियों ने इस क्षेत्र में भारी संकट और संघर्ष को जन्म दिया है!

सुभासिंह माझी, लखन माझी, लाई माझी
(माँ माटी माली सुरक्षा मंच की ओर से)
maamatimalisurakhyamancha@gmail।com


[प्रेस विज्ञप्ति]

माँ, माटी, माली सुरख्या (सुरक्षा) मंच (तिजमाली-कुतुरुमाली-मझिन्गिमाली)
रायगडा और कालाहांडी ज़िला
ओडिशा


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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