नर्मदा नव निर्माण अभियान पर फर्जी मुकदमे के खिलाफ जनसंघर्ष समन्वय समिति का वक्तव्य


मेधा पाटकर और नर्मदा नव निर्माण अभियान के संघर्षशील साथियों के खिलाफ एक फर्जी मुकदमा दायर किया गया है जिसकी जन संघर्ष समन्वय समिति कड़े शब्दों में निंदा करता है और इस मुकदमें को तत्काल निरस्त करने की मांग करता है। देशभर में जाने माने बुद्धिजीवियों, पत्रकारों, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को झूठे आरोपों में फँसाने की यह मुकदमा अगली कड़ी है और समाज में एक भय और आतंक का माहौल पैदा किया जा रहा है।

9 जुलाई 2022 को प्रीतम राज बडोले ने बड़वानी (मध्य प्रदेश) थाने में नर्मदा बचाओ आंदोलन की नेत्री और नर्मदा नव निर्माण ट्रस्ट की ट्रस्टी मेधा पाटेकर सहित 11 लोगों पर एक एफआईआर दर्ज कराई है। इनमें से आशीष मंडलोई का 2012 में निधन हो गया है और नूर जी पदवी वर्तमान में ट्रस्टी नहीं है। प्रीतम राज बडोले राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ का कार्यकर्ता और अखिल भारतीय विधार्थी परिषद का नेता भी है। एफआईआर  में आरोप लगाया गया है कि नर्मदा नव निर्माण ट्रस्ट जो सरदार सरोवर बांध में डूबे परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करता  है, उसने दान के पैसों (19.25 लाख) से विकास परियोजनाओं के खिलाफ विरोध-प्रदर्शनों और आयोजनों के लिए खर्च किया है, जो जनता के साथ धोखा तो है ही राष्ट्र विरोधी भी है।

ऐसा ही आरोप मेधा पाटेकर के ऊपर पहले भी लगाया जा चुका है। 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने उनके ऊपर लगाए गए सभी आरोपों को फर्जी पाया और उसे निरस्त कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतकर्ता के ऊपर फर्जी मुकदमा दायर करने के अपराध में जुर्माना भी लगाया था।

नर्मदा नव निर्माण ट्रस्ट सरदार सरोवर बांध के डूब प्रभावित परिवारों के बच्चों को शिक्षा देने का काम करता है। अभी तक ट्रस्ट से लगभग 5000 बच्चे शिक्षा प्राप्त कर निकल चुके हैं। यह कार्य तो राज्य और केंद्र की भाजपा सरकार का था कि डूब से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास, आजीविका के साधन, रोजगार आदि उपलब्ध कराएं और उनके बच्चों को बेहतर शिक्षा के अवसर मुहैया कराए। अगर यह कार्य भाजपा सरकार करती तो किसी संस्था को पीड़ित परिवारों को शिक्षा देने की जरूरत ही नहीं पड़ती।

आज देश में राजसत्ता द्वारा शोषित और पीड़ित समुदाय के लिए जो भी आवाज उठा रहा है, उसे तमाम तरह के फर्जी मुकदमों में फंसाया जा रहा है, उनके ऊपर देशद्रोह का मुकदमा कर दिया गया है। गुजरात दंगों के खिलाफ न्यायिक लड़ाई लड़ने वाले तीस्ता सीतलवाड, पूर्व डीजीपी आर बी कुमार, मोहम्मद जुबेर, मानवाधिकार कार्यकर्ता आकार पटेल, संजीव भट्ट, गौतम नवलखा, प्रो. आनंद तुलतुंबडे,  जनकवि वरवरा राव, आदि अभी भी जेल में है, उनको अदालत जमानत भी नहीं दे रही है। इतना ही नहीं कलबुर्गी, पानसरे, दाभोलकर व गौरी लंकेश की तो हत्या ही कर दी गई। यह सब सुनियोजित तरीके से किया जा रहा है, जिससे कोई भी भाजपा की नीतियों का विरोध ना कर सके।

हम निम्न मांगें करते हैं-

1. प्रीतम राज बड़ोले द्वारा दर्ज किया गया मुकदमा निरस्त किया जाए।

2. देशभर में सामाजिक और मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को फर्जी मुकदमों में फसाना बंद किया जाए।

3. भीमा कोरेगांव और दिल्ली दंगों, तीस्ता सीतलवाड़, आर बी श्रीकुमार, सिद्दीक कप्पन, संजीव भट्ट, मोहम्मद ज़ुबैर इत्यादि मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को तत्काल रिहा किया जाए।

भवदीय
संयोजक मंडल सदस्य

कुमार चन्द्र मार्डी, रामाश्रय यादव, राजेंद्र मिश्रा, राघवेन्द्र कुमार, अरुण कुमार, प्रेम नाथ गुप्ता, बलवंत यादव, सत्या महार, कल्याण आनंद, श्री चंद डुंडी, दुलम सिंह, रमेश

विस्थापन विरोधी एकता मंच, गांव गणराज्य परिषद, जमीन बचाओ आंदोलन (झारखंड), नियमगिरी सुरक्षा समिति, सचेतन नागरिक मंच (ओड़िसा), भूमि अधिग्रहण विरोधी संघर्ष समिति, नवलगढ़ (राजस्थान), कृषि भूमि बचाओ मोर्चा, गांव बचाओ आंदोलन (उत्तर प्रदेश), मातृ भूमि रक्षा मंच (हिमाचल प्रदेश), परमाणु प्लांट विरोधी आंदोलन (हरियाणा)


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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