मीडिया कितना गिर चुका है, उसे एडिटर्स गिल्‍ड की किसान आंदोलन पर जारी इस एडवायज़री से समझें


ऐसा संभवत: पहली बार है जब किसानों की कवरेज को लेकर किसी संस्‍था को मीडिया को परामर्श देना पड़ा है। संपादकों की संस्‍था एडिटर्स गिल्‍ड ऑफ इंडिया ने किसान आंदोलन की कवरेज को लेकर मीडिया संस्‍थानों के लिए एक एडवायज़री जारी की है।

मीडिया के लिए इससे ज्‍यादा शर्मनाक और कुछ नहीं हो सकता कि देश की सबसे बड़ी आबादी और अन्‍नदाताओं के प्रति पत्रकारिता कैसे की जाय, उसकी सलाह मूर्धन्‍य संपादकों को जारी करनी पड़ रही है।

संस्‍था ने कहा है कि जिस तरह से मीडिया के कुछ हिस्‍सों में दिल्‍ली में चल रहे किसान आंदोलन के लिए खालिस्‍तानी, राष्‍ट्रविरोधी शब्‍दों का इस्‍तेमाल कर के उसे बदनाम करने की कोशिश की जा रही है, उससे गिल्‍ड चिंतित है। यह जिम्‍मेदार पत्रकारिता के नैतिक मानदंडों के खिलाफ जाता है। इस तरह की हरकत से मीडिया की विश्‍वसनीयता पर असर पड़ता है।

गिल्‍ड ने मीडिया को किसान आंदोलन की रिपोर्टिंग करते वक्‍त निष्‍पक्षता बरतने, संयम और संतुलन बरतने की सलाह दी है। गिल्‍ड का कहना है कि मीडिया किसानों के विरोध करने के संवैधानिक अधिकारों में पक्षपातपूर्ण भूमिका न निभाये। न ही वह प्रदर्शनकारियों की जातीयता और पहचान परिधान आदि को निशाना बनाकर उन्‍हें बदनाम करने वाले किसी आख्‍यान में फंसे।


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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