लखनऊ, 6 फरवरी 2024: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पेश किया गया बजट मजदूर वर्ग के लिए छलावा है और यह पूंजीपतियों की सेवा के लिए बनाया गया है। इस बजट में मजदूरों के लिए कुछ भी नहीं दिया गया, वहीं इज ऑफ डूइंग बिजनेस के नाम पूंजीपतियों को रियायतें प्रदान की गई है। यह प्रतिक्रिया यू.पी. वर्कर्स फ्रंट के प्रदेश अध्यक्ष दिनकर कपूर ने प्रेस को जारी अपने बयान में दी।
उन्होंने कहा कि बजट में ई-श्रम पोर्टल पर पंजीकृत 8 करोड़ 32 लाख मजदूरों का जिक्र तो किया गया है और उनके पंजीकरण को सरकार की बड़ी उपलब्धि बताया है लेकिन उन मजदूरों की सामाजिक सुरक्षा के लिए आयुष्मान कार्ड, पेंशन, आवास, दुर्घटना मृत्यु लाभ, पुत्री विवाह अनुदान जैसी योजनाओं की पर कुछ भी नहीं कहा गया जबकि मजदूरों की तरफ से इस मांग को लगातार श्रम मंत्री समेत शासन प्रशासन के संज्ञान में लाया गया।
बजट में 2019 से लंबित पड़े हुए न्यूनतम मजदूरी के वेज रिवीजन के बारे में भी कुछ कहना सरकार ने गंवारा नहीं समझा। उत्तर प्रदेश में वेज रिवीजन ना होने के कारण केंद्र सरकार की तुलना में न्यूनतम मजदूरी बेहद कम है और इस महंगाई में अपने परिवार का पेट पालना मजदूरों के लिए कठिन होता जा रहा है। योगी सरकार ने आंगनवाड़ी, आशा और मिड डे मील रसोईया जैसे कर्मियों से चुनाव में वादा किया था कि उन्हें सम्मानजनक मानदेय दिया जाएगा। इसमें से मिड डे मील रसोईया के बारे में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि इन्हें न्यूनतम मजदूरी का भुगतान किया जाए।
आंगनबाड़ी के संदर्भ में भी उन्हें ग्रेच्युटी देने और सरकारी कर्मचारी के न्यूनतम वेतन को देने की बात इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कही है। बावजूद इसके सरकार ने अपने वादे को पूरा नहीं किया और हाई कोर्ट के आदेशों को भी मानने से इनकार कर दिया। 16 फरवरी को आयोजित राष्ट्रव्यापी विरोध दिवस में सरकार की इन मजदूर विरोधी नीतियों का प्रतिवाद किया जाएगा।