कॉर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ जनसंघर्षों का सम्मेलन नौ प्रस्तावों के साथ सम्पन्न


रायपुर के पेस्टोरल सेंटर में भूमि अधिकार आंदोलन एवं छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के बैनर तले जल-जंगल-ज़मीन की कॉर्पोरेट लूट, दमन और विस्थापन के खिलाफ जनसंघर्षों के एकदिवसीय राज्य सम्मेलन का उद्घाटन पूर्व सांसद हनन मोल्लाह की अध्यक्षता में संपन्न हुआ। सम्मेलन में आए वक्ताओं ने देश में जल-जंगल-ज़मीन और जनतंत्र की कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ एकजुट होने की अपील की।

सम्मेलन में देश भर के 15 राज्यों (छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओड़िशा, जम्मू एंड कश्मीर, दिल्ली, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पं. बंगाल, हिमाचल प्रदेश, बिहार, गुजरात, तमिलनाडु और उत्तराखंड) से 500 से ज्यादा प्रतिनिधियों ने हिस्सेदारी की। सम्मेलन की शुरुआत में अखिल भारतीय किसान सभा से संजय पराते ने प्रतिनिधियों का स्वागत करते हुए कहा कि आज देश में राज्य व्यवस्था जहां एक तरफ सांप्रदायिकता, धार्मिक विभेदीकरण जैसे मुद्दे पर चुप्पी लगाए हुए है, वहीं दूसरी तरफ कॉर्पोरेट लूट को सुगम बनाने के लिए निरंतर प्रयास कर रही है। ऐसे समय में जनांदोलनों के ऐसे सम्मेलन का महत्व और भी बढ़ जाता है।

अखिल भारतीय किसान सभा के महासचिव हनन मुल्ला ने भूमि अधिकार आंदोलन की पृष्ठभूमि पर बात करते हुए कहा कि भूमि अधिग्रहण अध्यादेश के खिलाफ शुरू किए गए भूमि अधिकार आंदोलन को और तेज़ करने की ज़रूरत है। उन्होंने कहा कि भूमि अधिग्रहण कानून 2013 को लेकर आज भ्रम की स्थिति फैलाई जा रही है। केंद्र में अध्यादेश वापस लेने के बावजूद आज भी राज्यों में भूमि अधिग्रहण कानून 2013 के प्रावधान लागू नहीं हो रहे हैं। राज्य सरकारें मनमाने ढंग से भूमि अधिग्रहण कर रही हैं। इन्हीं सरकारी नीतियों के खिलाफ इस आंदोलन की शुरुआत की गई है। उन्होंने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए कहा कि इस राज्य सम्मेलन के बाद अगस्त में दिल्ली में भूमि अधिकार आंदोलन के एक राष्ट्रीय सम्मेलन का आयोजन किया जाएगा, जिसमें देश भर के आंदोलनों पर बात कर आगे की रणनीति तय की जाएगी।

सम्मेलन के उद्घाटन सत्र के बाद  छत्तीसगढ़ राज्य में चल रहे जनसंघर्षों से आए प्रतिनिधियों ने अपने-अपने क्षेत्र में चल रहे आंदोलनों का विस्तृत ब्यौरा रखा। इस सत्र का संचालन छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से आलोक शुक्ला ने किया। इस सत्र में हसदेव अरण्य बचाओ संघर्ष समिति से मुनेश्वर पोर्ते, रावघाट संघर्ष समिति से नरसिंह मंडावे, दलित आदिवासी मंच से राजिम केतवास, छत्तीसगढ़ मुक्ति मोर्चा से जनक लाल ठाकुर, किसान आंदोलन, ऑल इंडिया किसान महासभा से नरोत्तम शर्मा, नया रायपुर से परमानंद तथा जनांदोलनों के तमाम प्रतिनिधियों ने अपनी बात रखते हुए आपसी एकता कायम करने पर बल दिया।

सम्मेलन की अध्यक्षता ऑल इंडिया किसान सभा से हनन मोल्ला, एनएपीएम से प्रफुल सामंतराय, नर्मदा बचाओ आंदोलन से मेधा पाटकर, सर्वहारा जन आंदोलन से उल्का महाजन, ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन से मनीष श्रीवास्तव, ऑल इंडिया किसान महासभा से नरोत्तम शर्मा, किसान संघर्ष समिति से डॉक्टर सुनीलम, लोक संघर्ष मोर्चा से प्रतिभा शिंदे, छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन से शालिनी गेरा, भारत जन आंदोलन से बिजय पांडा, अखिल भारतीय आदिवासी महासभा से मनीष कुंजाम और पूर्व सांसद अरविंद नेताम ने की।  

छत्तीसगढ़ राज्य के आंदोलनों की प्रस्तुतियों के बाद बाहर के राज्यों से आये जनसंघर्षों के प्रतिनिधियों ने अपने-अपने प्रदेशों में जन आंदोलनों की स्थिति पर ब्यौरा रखा।

इस सत्र में सबसे पहले ओड़िशा में प्राकृतिक संसाधनों की कॉर्पोरेट लूट और राज्य दमन की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए लोकशक्ति अभियान के प्रफुल्ल सामंतराय ने बताया कि आज देश में संवैधानिक प्रावधानों की धज्जियां उड़ाई जा रही हैं, जो लोग हक़ अधिकारों की वकालत कर रहे हैं उन्हें जेल में डाला जा रहा है तथा जो लोग विभाजनकारी कार्य में लगे हैं उनका सम्मान किया जा रहा है। जिस तरह के हालात छत्तीसगढ़ में हैं, उसी तरह के हालात ओड़िशा में बने हुए हैं व ज़मीन पर भी आंदोलनों का दमन किया जा रहा है- पोस्को, हिडाल्को बॉक्साइट, सुंदरगढ़ और खंडवामाली पर्वत को बचाने के आन्दोलनों में हम इसे देख सकते हैं। उड़ीसा सरकार ने परियोजना समर्थकों को भी पुलिस-प्रशासन के साथ मिला कर प्राकृतिक संसाधनों की लड़ाई लड़ रहे लोगों के सामने खड़ा कर दिया है, जो कि एक चिंताजनक बात है। इन स्थितियों से निपटने के लिए हमें व्यापक एकता की ज़रुरत है नहीं तो राज सत्ता, जन आवाज़ को कुचलने में सफल हो जाएगी। 

भूमि अधिकार आंदोलन गुजरात के मुजाहिद नफीस ने बताया कि देश की तमाम सरकारें नागरिकों के मूलभूत अधिकारों के मुकाबले कॉर्पोरेट हितों को प्राथमिकता दे रही हैं, जिसके चलते देश के जल, जंगल, ज़मीन, पर्यावरण को खुले आम कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए बेचा जा रहा है। गुजरात में पूरा समुद्र तट, स्टेचू ऑफ यूनिटी में पर्यटन के लिए पांचवीं अनुसूची की ज़मीन, हाई वे के नाम पर खेती की ज़मीन की ज़बरदस्ती की लूट सबके सामने है। सभी को मिलकर कॉर्पोरेट लूट के खिलाफ, जनतंत्र को बचाने के लिए सड़कों पर आना होगा, तभी सही मायनों में संविधान का सपना साकार होगा।

अगले वक्ता के रूप में भारत जन आंदोलन से बिजय पांडा ने अपने संबोधन में कहा कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ग्राम सभाओं के प्रस्तावों की अवहेलना करते हुए सरकार द्वारा आदिवासियों के जल-जंगल-ज़मीन पर कार्पोरेट घरानों को कब्ज़ा कराया जा रहा है। संविधान में मिले पांचवीं अनुसूची क्षेत्र के अधिकारों को कुचल कर देश के संसाधनों को कॉर्पोरेट घरानों को मुनाफा कमाने की इजाजत सरकार द्वारा दी जा रही है। पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में ज़मीन संबधी सारे निर्णय ग्राम सभा के अधिकार में है तो राज्य और केंद्र सरकार ज़मीन संबंधी निर्णय किस अधिकार के तहत ले रही है। यह संविधान का खुला उल्‍लंघन है। उन्होंने आगे कहा कि पांचवीं अनुसूची क्षेत्र में आने वाले सभी राज्यों में सभी कानून पेसा के अनुरूप बनाये जाएं; पांचवीं अनुसूची क्षेत्रों में छठी अनुसूची तथा छठी अनुसूची में पांचवीं अनुसूची लागू की जाय; देश के सामान्य क्षेत्रों में भी पेसा कानून लागू किया जाय और जो अनुसूचित क्षेत्र पांचवीं अनुसूची में नहीं शामिल किये गये हैं उनको भी तुरंत पांचवीं अनुसूची में शामिल किया जाय। सभी राज्य में आंध्र प्रदेश के लैंड कंसोलिडेशन फंड के हिसाब से नियम बनाये बिना जल-जंगल-ज़मीन को नहीं बचाया जा सकता है। इसके लिए देश के सभी आदिवासी संगठनों को एकजुट हो कर ताकतवर आंदोलन खड़ा करना होगा।

ऑल इंडिया किसान खेत मजदूर संगठन के मनीष श्रीवास्तव ने कॉर्पोरेट हितों के साथ खड़ी सरकारों के बरक्स साझा संघर्षों को साथ लाने के प्रयासों को आगे बढ़ाने और भूमि अधिकार पर पुरज़ोर संघर्षों को मज़बूत करने पर ज़ोर दिया।  

लोक मोर्चा, महाराष्ट्र से प्रतिभा शिंदे ने अपनी बात रखते हुए कहा कि अभी तक स्थानीय वक्ताओं ने जो अपनी बात रखी है, उससे लगा कि प्रदेश में भाजपा की सरकार जाने के बाद कांग्रेस के आने से कुछ बदलाव होगा, लेकिन कोई भी बदलाव नहीं आया है। आज देश की सभी सरकारें कॉर्पोरेट घरानों की गुलामी में लगी हुई हैं। वह छत्तीसगढ़, झारखण्ड, मध्य प्रदेश, ओड़िशा या कोई भी प्रांत हो। 2014 से अडानी-अम्बानी के दोस्त जब से प्रधानमंत्री बने हैं, तब से प्राकृतिक संसाधनों की लूट बेतहाशा बढ़ गयी है। 

मध्य प्रदेश में पुनर्वास की स्थिति पर प्रकाश डालते हुए किसान संघर्ष समिति के डॉ. सुनीलम ने बताया कि मध्य प्रदेश में भी जबरन लोगों को विस्थापित किया गया है और किया जा रहा है। पुनर्वास संबंधी कोई भी नीति या उच्च न्यायालय के किसी भी आदेश का मध्य प्रदेश में पालन नहीं किया जा रहा है। किसान आंदोलन में सक्रिय नेताओं को पुलिस मुकदमों के माध्यम से डराया जा रहा है। इस सम्मेलन का उद्देश्य छत्तीसगढ़ में चल रहे संघर्षों को मजबूती देना है तथा उन्हें यह आश्वस्त करना है कि उनके ज़मीनी संघर्ष में देश भर के जनसंघर्षों के साथी साथ देंगे। उन्होंने यह भी अपील की कि छत्तीसगढ़ के जनसंघर्षों के साथी समय निकाल कर देश भर में होने वाले जनसंगठनों के कार्यक्रमों में हिस्सा लें ताकि व्यापक समर्थन हासिल कर सके।

अगले वक्ता के रूप में नर्मदा बचाओ आंदोलन तथा जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय से मेधा पाटकर ने अपनी बात की शुरुआत करते हुए कहा कि छत्तीसगढ़ में असंवैधानिक रूप से ज़मीन हड़पने की कोशिश हो रही है जिसका विरोध समाज का एक व्यापक हिस्सा कर रहा है। आज आधुनिकता के नाम पर देश ही नहीं बल्कि दुनिया भर में प्राकृतिक संसाधनों को मुनाफे के लिए लूटा जा रहा है। यह आर्थिक शोषण का दौर है जो जीवन के अधिकार का हनन कर रहा है। जिस विकास मॉडल की बात नरेंद्र मोदी कर रहे हैं, उसका स्पष्ट उदाहरण आज देश के हर राज्य में जंगलों के विनाश, खेती की ज़मीन को बांध बना कर डुबो देने, विस्थापन के मध्यम से लोगों उजाड़ने के रुप में देखने को मिल रहा है। मेधा ने भूमि अधिग्रहण की स्थिति पर बोलते हुए कहा कि आज राज्य सरकारें एक कागज़ के नोट के आधार पर कंपनियों को जमीनें दे रही हैं। विशेष कर छत्तीसगढ़, झारखण्ड और ओड़िशा में आदिवासियों के प्राकृतिक संसाधनों पर हमले तेज़ हुए हैं। हम सब लोग मिल कर नहीं लड़ेंगे तो न हम बचेंगे और न समाज बचेगा। इस संदेश को गाँव-गाँव तक पहुँचाना होगा। 

पाटकर ने आगे कहा कि हमें इस बात पर सोचने की ज़रूरत है कि आज जिस विकास की चर्चा हो रही है उसमें सड़क, शहर, पत्थरों का विकास हो रहा है किंतु इस विकास की दौड़ में इंसान कहीं पीछे छूटता जा रहा है। विकास का लाभ पांच प्रतिशत लोगों को मिला है तथा इसकी कीमत 95 प्रतिशत आबादी को चुकानी पड़ रही है। हमें विकास की वैकल्पिक नीति को देश के सामने रखना होगा।

सर्वहारा जन आंदोलन, महाराष्ट्र से उल्का महाजन ने अपनी बात रखते हुए कहा कि हसदेव अरण्य की लड़ाई किसी एक प्रदेश या  किसी एक समुदाय की लड़ाई नहीं है। यह पूरे देश की आबोहवा और पर्यावरण बचाने की लड़ाई है, जिसे हर हाल में जीतना ही होगा। आज बाज़ार का दौर है इसलिए हमें यह घोषणा करनी होगी कि हमारे जंगल, हमारी ज़मीन, हमारा पानी बिकाऊ नहीं है। इस पर हमारा अस्तित्व टिका हुआ है, इसलिए यह मुनाफे की वस्तु  नहीं है, हम इसे आजीविका के साधन के तौर पर देखते है। आज सरकारें भय, भूख और भ्रम को हथियार के रूप में प्रयोग कर रही है। इसके खिलाफ भी हमें ताकतवर तरीके से लड़ना होगा। 

सम्मेलन के अंत में छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन के अलोक शुक्ला ने एक प्रस्ताव पेश किया गया, जिसे प्रतिनिधियों ने सर्वसहमति से पास कर दिया। प्रस्ताव जो पारित हुआ- 

1. छत्तीसगढ़ में, पाँचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पेसा कानून के प्रावधानों सहित पाँचवीं अनुसूची के संरक्षात्मक प्रावधानों का अक्षरश: पालन करते हुए कॉर्पोरेट मुनाफे के लिए भू-हस्तांतरण पर रोक लगाई जाय;

2. हसदेव, सिलगेर, बस्तर और कोरबा सहित पूरे प्रदेश में विकास के नाम पर हो रहे आदिवासियों के विस्थापन व ज़मीनों के डायवर्जन पर पूरी तरह रोक लगाओ। 

3. भूमि-अधिग्रहण कानून, 2013 का शब्दश: पालन करो। बिना इस कानून को लागू किए जो भूमि अधिग्रहित की गयी है उसे मूल किसानों को वापिस किया जाये। 

4. बस्तर में हुए जनसंहार की जांच रिपोर्टों पर तत्काल कार्यवाई करो ताकि दोषियों को उचित सज़ा दी जा सके। बस्तर में हो रहे सैन्यकरण पर रोक लगाओ व फर्जी मामलों में जेल में बंद निर्दोष आदिवासियों की तत्काल रिहाई तय की जाए।   

5. शांतिमय और लोकतान्त्रिक जनवादी आंदोलनों के आयोजनों पर थोपी गईं गैर कानूनी पाबंदियों को वापिस करो और जनअधिकार व मानवाधिकार के लिए आवाज उठाने वाले कार्यकर्ताओं के खिलाफ दर्ज फर्जी मुकदमे वापस लिए जाए। 

6. विकास के नाम पर विस्थापन व पर्यावरण विनाश की योजनाएँ तुरंत रद्द हों और विकास जनवादी अवधारणाओं पर आधारित हो। 

7. संविदा कर्मियों का नियमितीकरण किया जाये और ठेका पद्धति द्वारा मजदूरों के शोषण की परिपाटी को खत्म किया जाये। 

8. छत्तीसगढ़ के किसानों को खाद की उपलब्धता सुनिश्चित की जाये और समर्थन मूल्य की गारंटी कानून पारित किया जाये।

9. इन मुद्दों को लेते हुए छत्तीसगढ़ बचाओ आंदोलन हर जिले स्तर पर सम्मेलन और अक्तूबर माह में राज्यव्यापी आंदोलन करेगा।

कार्यक्रम के अंत में भूमि अधिकार आंदोलन की ओर से 17-18 अगस्त को भोपाल, मध्य प्रदेश में जल, जंगल, ज़मीन की लूट के खिलाफ राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित करने की घोषणा की गई।



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