दिल्ली के जंतर-मंतर पर ऐक्टू(AICCTU) समेत एटक (AITUC), सीटू (CITU), इंटक(INTUC), एच.एम.एस (HMS), ए.आई.यू.टी.यू .सी (AIUTUC), यू.टी.यू.सी (UTUC), सेवा (SEWA), एल.पी.एफ (LPF) व अन्य संगठनों ने संसद सत्र में पेश होनेवाले श्रम संहिता विधेयकों के खिलाफ प्रदर्शन किया.
मोदी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने 44 महत्वपूर्ण श्रम कानूनों को रद्द करके श्रमिकों के अधिकारों को छीनने के अपने प्रयासों को तेज कर दिया है। संसद का मानसून सत्र, जो एक लंबे अंतराल के बाद हो रहा है, उसे इस तरह सूत्रबद्ध किया गया है कि लाखों श्रमिकों और किसानों से जुड़े महत्वपूर्ण मसलों पर चर्चा ही ना हो। जिस तरह से व्यापक विरोध के बावजूद मोदी सरकार तमाम मजदूर व किसान विरोधी क़ानून बना रही है, वह साफ़ तौर पर सरकार के मज़दूर-विरोधी और कारपोरेट-समर्थक रुख को दर्शाता है। संसद के वर्तमान सत्र में किसी भी तरह के बहस-विचार की गुंजाइश खत्म कर तीन अत्यंत ही श्रमिक विरोधी विधेयकों को लोकसभा व राज्यसभा में पास करा दिया गया – जिनमें ‘लेबर कोड ऑन सोशल सिक्यूरिटी’, ‘कोड ऑन इंडस्ट्रियल रिलेशंस’ व ‘लेबर कोड ऑन ओक्युपेश्नल सेफ्टी, हेल्थ एंड वर्किंग कंडीशंस’ शामिल हैं। मोदी सरकार के श्रम मंत्री संतोष गंगवार के बयानों में अब ये बात खुल कर सामने आ रही है कि श्रम कानूनों में होनेवाले बदलाव मालिकों के पक्ष में हो रहे हैं और इन बदलावों से मजदूरों के ट्रेड यूनियन बनाने, स्ट्राइक करने व अन्य अधिकार छीन लिए जाएंगे.
देशभर में आन्दोलन कर रहे किसानों की अनदेखी करने के तुरंत बाद, श्रम कानूनों पर हो रहे हमलों से एक बात साफ़ हो चुकी है कि सरकार के पास आम जनता को देने के लिए ‘काले-कानूनों’ के अलावे कुछ भी नहीं. मोदी सरकार कहीं आन्दोलन कर रहे किसानों पर लाठियां चला रही है तो कहीं प्रदर्शनकारी मजदूरों पर केस लाद रही है.
आज जब मोदी सरकार पूरे देश को बता रही है कि ‘लॉक-डाउन’ में मारे गए मजदूरों का उसके पास कोई आंकड़ा नहीं है, तब मजदूर-हितों के लिए बने श्रम कानूनों को खत्म करना, मजदूरों के ऊपर दोहरी मार के समान है । संघ-भाजपा से जुड़ी ट्रेड यूनियन ऐसे समय में भी लगातार मजदूरों को सरकार के पक्ष में खड़ा करने की कोशिश कर रही है, जो मजदूरों के साथ बहुत बड़ी गद्दारी है. ‘ईज़ ऑफ डूइंग बिज़नस’ को बढ़ावा देने के नाम पर अमीरों को लूट की छूट दी जा रही है और गरीब-मेहनतकश आबादी और गरीब होते जा रही है.
सभी मौजूद ट्रेड यूनियन संगठनों के नेताओं ने सरकार की मजदूर-किसान विरोधी नीतियों की आलोचना की और 25 सितम्बर को किसान संगठनों द्वारा आहूत विरोध व चक्का जाम के साथ एकजुटता जाहिर की। प्रदर्शनकारियों ने तीनों श्रम संहिता विधेयकों की प्रतियाँ फाड़ी और जंतर मंतर पर ही विरोध सभा का आयोजन भी किया। प्रदर्शनकारियों को संबोधित करते हुए ऐक्टू महासचिव राजीव डिमरी ने कहा, “देश के श्रम मंत्री और प्रधानमंत्री ये बताने में असमर्थ हैं कि कितने कामगारों की मौत हुई या कितने स्वास्थ्य कर्मचारी मारे गए, पर इस बात का उन्हें पूरा भरोसा है कि सभी श्रम कानूनों को खत्म कर देने से ही श्रमिकों का कल्याण होगा. ये सरकार मजदूरों के खून की कीमत पर पूंजीपतियों के मुनाफे का रास्ता खोलना चाहती है. पहले से ही महंगाई-बेरोज़गारी-छंटनी की मार झेल रहे कर्मचारियों के लिए ये बिल आज़ाद देश में गुलाम हो जाने के आदेश के समान हैं.”
उन्होंने आगे कहा , “हम मोदी द्वारा थोपी जा रही गुलामी से लड़ने के लिए तैयार हैं. संसद के अन्दर बहस को रोका जा रहा है और बाहर धरना-प्रदर्शन पर प्रतिबन्ध है. अगर संघ-भाजपा संसद पर पूर्ण बहुमत से कब्ज़ा कर ही चुके हैं तो सभी लोकतांत्रिक ताकतों को सड़कों की ओर ही रुख करना ही पड़ेगा.”