विमन अगेन्स्ट सेक्शुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन (डब्लूएसएस) कोलकाता में 9 अगस्त को इलीना सेन के निधन पर अपना गहरा क्षोभ व्यक्त करती है. 69-वर्षीय इलीना एक नारीवादी कार्यकर्ता होने के साथ-साथ एक शिक्षक, शोधार्थी और लेखिका भी थीं, जो देश भर के महिला आंदोलन के साथ दिलो-जान से जुड़ी थीं. चाहे वह बतौर सामाजिक-राजनीतिक कार्यकर्ता के रूप में हो या शिक्षाकर्मी होने के नाते. इलीना के मध्यप्रदेश तथा छत्तीसगढ़ के आंदोलनों एवं अन्य राज्यों के जनआंदोलनों से गहरे जुड़ाव और अपने सक्रिय समर्थन के कारण राज्य, पितृसत्ता और पूंजी के ख़तरों के खिलाफ संघर्षरत महिलाओं और अन्य कमज़ोर तबक़ों को निर्णायक प्रोत्साहन मिला.
अस्सी के दशक के शुरुआती वर्षों में इलीना अपने जीवन-साथी बिनायक सेन के साथ आदिवासी क्षेत्र के लोगों और मज़दूर नेता शंकर गुहा नियोगी की अगुवाई में चल रहे आंदोलनों के साथ काम करने के लिए छत्तीसगढ़ आ गईं. यहां एक डॉक्टर के रूप में बिनायक सेन ने बच्चों और उनके परिवार के साथ काम किया. आगे चलकर वे छत्तीसगढ़ खदान श्रमिक संघ (सीएमएसएस) के सदस्यों द्वारा निर्मित और संचालित शहीद अस्पताल में काम करने लगे. शुरू में, इलीना राज्य द्वारा प्रोत्साहित उग्र कृषि तकनीक से नष्ट हो रही धान की किस्मों और बीज संरक्षण वाले ‘सस्टेनेबल डेवेलप्मेंट’ के काम में डॉक्टर आर.आर. रिछारिया के साथ जुट गईं. शंकर गुहा नियोगी द्वारा गठित दल्ली राजहरा में शुरू की गई ट्रेड यूनियन में काम करते हुए, इलीना को महिला श्रम और उनके अधिकारों के लिए संगठित करने की अंतर्दृष्टि मिली. स्वायत्त महिला आंदोलनों के सम्मेलनों में वे अक्सर सीएमएसएस का छत्तीसगढ़ी गीत, ‘अनुसूया बाई, लाल सलाम’ गाया करती थीं.
यहीं पर उन्होंने अपनी महत्वपूर्ण पुस्तक, “संघर्षों के बीज, संघर्षों के बीच” [अ स्पेस विदइन द स्ट्रगल] पर काम किया, जो 1990 में प्रकाशित हुई. बड़े शहरों के आंदोलनों के प्रमुख सरोकारों से हटकर, जो बेशक अपने संदर्भों में महत्वपूर्ण हो सकते हैं, उनका यह निबंध संग्रह जमीनी स्तर पर काम करने वाले महिला आंदोलनों के कम दृष्टिगोचर पहलुओं को सामने लाने वाली नायाब पुस्तक है. इस पुस्तक में ईंट भट्ठा मजदूरों, खेतिहर मजदूरों, मछुआरों, पर्यावरण संरक्षकों के संघर्षों को लिपिबद्ध किया गया है, जो प्रायः जेंडर का अध्ययन करने वाले शोधार्थियों को भी नज़र नहीं आते. अपने अंतिम समय में, अपने इसी काम को देश के अनेक हिस्सों में उभर रहे नए-नए आंदोलनों को शामिल कर, समसामयिक बनाने का वे प्रयास कर रही थीं.
दुर्भाग्यवश, 2011 में इलीना को अपने कैंसर का पता चला, छत्तीसगढ़ पीयूसीएल में सक्रिय बिनायक सेन की सुप्रीम कोर्ट से जमानत के तुरंत बाद. दोनों ने साथ में मिलकर रायपुर में ‘रूपांतर’ नामक एक स्वयंसेवी संस्था की भी स्थापना की थी. आज जब हम पीछे मुड़कर इन वर्षों को देखते हैं तो पता चलता है कि 2007 में छत्तीसगढ़ पुलिस द्वारा बिनायक सेन की बर्बर कानून UAPA के तहत गिरफ्तारी (नक्सलवादियों से संबंध रखने के आरोप में) से लेकर अपनी आखिरी सांस लेने तक, इलीना ने इसकी भारी कीमत चुकाई है. बिनायक की गिरफ्तारी के तुरंत बाद, इलीना ने उनकी रिहाई के लिए कोई कसर नहीं छोड़ी और इस मुहिम में ख़ुद को पूरी तरह झोंक दिया. निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक लड़ी जाने वाली क़ानूनी लड़ाइयों में वे हर समय साथ रहतीं. साथ-साथ वे बिनायक और अपनी दो बेटियों का भी संबल बनी रहीं. देश-दुनिया से रिहाई की इस मुहिम को जबरदस्त समर्थन भी मिला.
इस दौरान इलीना ने देश-विदेश में बहुत से समर्थक और कार्यकर्ताओं का ध्यान आकर्षित किया और छत्तीसगढ़ की जेलों में बंद असंख्य आदिवासियों की ओर व्यापक लोगों का ध्यान खींचा. ये सभी क़ैदी नए-नए बने राज्य के शिकार थे, जो कि नवउदारवादी अर्थव्यवस्था को गले लगाने के दौर में अस्तित्व में आया था, जब राष्ट्रीय और वैश्विक कंपनियां राज्य के खनिज और जंगलों के दोहन के लिए सरकार की चौखट पर कतारबद्ध खड़ी थीं. यह आश्चर्य की बात नहीं कि सन् 2000 में राज्य का दर्जा प्राप्त करने के दो साल के भीतर छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ को स्थायी रूप से तैनात कर दिया गया था. पीयूसीएल के उपाध्यक्ष की गिरफ़्तारी के बाद के दौर में शायद राजनीतिक कार्यकर्ताओं की एक पूरी पीढ़ी सामने आई, जब उसने अपनी आँखों से ऑपरेशन ग्रीन हंट को बर्बरता का नंगा नाच करते देखा. ऑपरेशन ग्रीन हंट उन लोगों को अपना निशाना बनाता था, जो विकास के नाम पर वैश्विक तिजोरी भरने वालों पर सवाल उठाते थे.
एक ओर इलीना जीवनपर्यन्त पितृसत्तात्मक दमन और अधीनता को संबोधित करती रहीं; और, दूसरी ओर प्राकृतिक संसाधनों और जीविका के स्रोतों को बचाने में लगे जन आंदोलनों को समर्थन देती रहीं.
इसीलिए जब डब्लूएसएस की स्थापना के लिए हुई पहली दो बैठकें मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में संपन्न हुईं तो इलीना उमंग और आशा से भर उठीं. अदालतों के धक्के खाते हुए और शिक्षण कार्य में उलझे होने के बावजूद भी वे दिसंबर 2009 में डब्लूएसएस के दूसरे सम्मेलन के बाद हर क़दम पर लगातार इसके संपर्क में बनी रहीं. उन्होंने डब्लूएसएस को असीम संभावनाएँ लिए देखा और वे इसके साथ ज़्यादा से ज़्यादा जुड़ने के लिए बेचैन रहती थीं.
2004 से इलीना ने जब से वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी विश्वविद्यालय में पढ़ाना शुरू किया, वे जेंडर अध्ययन करने वाले नौजवान छात्रों के नजदीकी संपर्क में आईं. 2007 में बतौर प्राध्यापक कार्यभार संभालने के बाद और वहां कुछ समर्पित साल बिताने के पश्चात 2011 में वे मुंबई के टाटा इन्स्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस में चली गईं. वर्धा में रहते हुए, वे 2011 में संपन्न हुए इंडियन एसोसिएशन फ़ॉर वूमेंस स्टडीज़ (आईएडब्लूएस) के सम्मेलन की संगठन सचिव रहीं. उनकी मौजूदगी और रचनात्मकता ने वर्धा सम्मेलन को, पिछले कुछ दशकों के आईएडब्लूएस आयोजित सम्मेलनों में ख़ास बना दिया था. फ़रवरी 2014 में गुवाहाटी में आयोजित आईएडब्लूएस सम्मेलन में उन्होंने उर्दू शायर मजाज़ की नज़्म का नारीवादी रूपांतरण सभी के सामने गाया:
इरादे कर बुलंद तू कहना शुरू करती तो अच्छा था तू सहना छोड़कर, कहना शुरू करती तो अच्छा था तेरे माथे पे यह आँचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन तू इस आँचल का एक परचम बना लेती तो अच्छा था
संघर्षों के सीधे अनुभव और सामूहिक एवं व्यक्तिगत राजनीतिक जुड़ाव से ही उनका ज्ञान और अंतर्दृष्टि आती थी, जो उनके पाठ्यक्रम को, जहां कहीं भी उन्होंने पढ़ाया, जीवंत बनाती थी. एक तरफ़ वे नौजवानों को प्रेरित करती रहीं; दूसरी तरफ़ उन्होंने अपना शोधकार्य भी जारी रखा. जुलाई 2013 से जुलाई 2015 तक नेहरू मेमोरियल लाइब्रेरी में सीनियर फेलो के तौर पर काम करते हुए इलीना अपनी बीमारी और इलाज में तालमेल बैठाते हुए जनांदोलनों में महिलाओं की भागीदारी पर जानकारियाँ एकत्रित करती रहीं. इसके साथ उन्होंने दंडकारण्य में विभाजन-शरणार्थियों की कहानियों को भी संग्रहित किया. वे अपने इस काम के प्रति इतनी समर्पित थीं कि उन्हें हमेशा इनके अधूरे रह जाने का डर सताता रहता.
अपने सामाजिक कामों से अपने लेखन तक और अदालतों में याचिकाओं से लेकर नौजवान छात्रों से संवाद तक, इलीना जीवन के प्रति लगाव से लबरेज़ थीं. जीवन की समग्रता से इस लगाव को वे आपस में गूंथना चाहतीं थीं, जहां व्यक्तिगत अभिव्यक्ति सामाजिक एवं राजनीतिक अभिव्यक्ति से अविभाज्य रूप से जुड़ी होती है. इसमें आश्चर्य नहीं कि कानूनी दस्तावेजों से भरे बस्तों के साथ देश भर में यात्रा करते और कैंसर से जूझते हुए ही उन्होंने छत्तीसगढ़ को लेकर अपने राजनीतिक संस्मरण [इन्साइड छत्तीसगढ़ — अ पोलिटिकल मेमोयर] को पूरा किया, जो बिनायक सेन और अन्य मित्रों की गिरफ़्तारी और कारावास को रोकने के प्रयासों को लेकर अदालतों में उनके कड़वे अनुभवों का यादगार दस्तावेज़ है.
कष्ट भरे दिनों में भी इलीना दिल खोलकर हंसती थीं. इस दौरान भी उनका मज़ाक़ियापन बरक़रार रहा. लोगों के जीवन में गहरी दिलचस्पी रखना और उनका राजनीतिक संघर्ष कभी नहीं डगमगाया. अपनी इस दृढ़ता के कारण ही, इलीना सेन ने महिला और मजदूर आंदोलन पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है.
WSS के बारे में:
नवम्बर 2009 में गठित ‘विमन अगेन्स्ट सेक्शुअल वायलेंस एंड स्टेट रिप्रेशन’ (WSS) एक गैर-अनुदान प्राप्त ज़मीनी प्रयास है. इस अभियान का मकसद हमारी देह व समाज पर की जा रही हिंसा को खत्म करना है. हमारा यह अभियान देशव्यापी है और इसमें शामिल हम महिलाएं अनेकों नारी, छात्र, जन व युवा एवं नागरिक अधिकार संगठनों तथा व्यक्तिगत स्तर पर हिंसा व दमन के खिलाफ सक्रिय हैं. हम हर प्रकार के राजकीय दमन और औरतों व लड़कियों के विरुद्ध की जाने वाली हिंसा के खिलाफ हैं.
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