बात बोलेगी: सहृदय बनाने के सारे प्रशिक्षण केन्द्रों पर जबर ताले लटके हुए हैं!
मारे जीवन में राजनीति के विराट रंगमंच पर अब ऐसे सहृदय प्रेक्षकों की भारी कमी होती जा रही है। इसीलिए राजनीति के नाटक का पूरा संचालन एक निर्देशक के हाथों में आ गया है। हमने दखल लेने की अर्हताएँ खो दी हैं। अब हम केवल दर्शक हैं। जो दिखाओ, हम देख लेंगे। जो सुनाओ, हम सुन लेंगे।
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