‘सभ्यताओं के विकास के साथ धर्मग्रंथों के शाब्दिक नहीं, संवेदनात्मक विवेचन की आवश्यकता’!

कसया, कुशीनगर। बुद्ध स्नातकोत्तर महाविद्यालय कुशीनगर के भन्ते सभागर में सर्व धर्म भाईचारा एवं राष्ट्रीय एकता विषयक आयोजित संगोष्ठी में वक्ताओं ने आपसी प्रेम, बन्धुत्व व राष्ट्रीय एकता का संदेश …

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क्या भारत सभ्यता के संकट से गुजर रहा है?

2014 में सिर्फ सत्ता नहीं बदली थी बल्कि तख्तापलट हुआ था। यह तख्तापलट आजादी के आन्दोलन के गर्भ से निकले भारत का था जहां धर्म, जाति, नस्ल, रंग, लिंग किसी भी भेदभाव के बगैर शासन चलाना सुनिश्चित किया गया था और एक राष्ट्र के रूप में भारत का बुनियादी विचार और ढांचा धर्मनिरपेक्ष था।

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भारत जोड़ो यात्रा: बौद्धिकों के समझने के लिए तीन जरूरी पहलू

धर्मनिरपेक्ष ताकतों ने साम्प्रदायिकता, जातिवाद आदि के विरुद्ध राष्ट्र्वादी परिप्रेक्ष्य से संघर्ष नहीं किया। भारत जोड़ो यात्रा वह जरूरी व ऐतिहासिक कार्य कर रही है।

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आजादी के बाद नेहरू ने खुश्क जमीन पर आधुनिक भारत के निर्माण की नींव रखी थी: प्रो. दीपक मलिक

इंडियन सोशल इंस्टीट्यूट, सेंटर फार हार्मोनी एंड पीस एवं राइज एंड एक्ट के तत्वावधान में आयोजित कार्यक्रम में प्रो. दीपक मलिक ने कहा कि साल 1952 में फूलपुर लोकसभा चुनाव के दौरान ही नेहरू ने कहा था कि तानाशाही बहुसंख्यकवाद के जरिये आएगी। आज देश न सिर्फ़ वह दौर देख रहा बल्कि महसूस भी कर रहा है।

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‘संविधान की प्रस्तावना को आत्मसात कर उसे सुदूर ग्रामीण अंचलों तक पहुंचाना होगा’!

वरिष्ठ पत्रकार ए के लारी ने कहा कि सदियों से भारतीय समाज मेल-जोल से रहने का हामी रहा है। हमने पूरी दुनिया को सिखाया है कि विभिन्नता हमारी कमजोरी नहीं बल्कि ताकत है। आज दुनिया भर में पत्रकारिता के आयाम बदले हैं, हमारा मुल्क भी उससे प्रभावित हुआ है। बावजूद इसके यह सोच लेना कि सभी पत्रकार सरकार की सोच के साथ हैं ठीक नहीं है।

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भारतीय आधुनिकता, स्वधर्म और लोक-संस्कृति के एक राजनीतिक मुहावरे की तलाश

इस कड़वे सच को स्वीकार करना होगा कि पिछले 25-30 साल की हार, खासतौर से राम जन्मभूमि के आंदोलन के बाद की हार, सिर्फ चुनाव की हार नहीं है, सत्ता की हार नहीं है, बल्कि संस्कृति की हार है। हम अपनी सांस्कृतिक राजनीति की कमजोरियों की वजह से हारे हैं।

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