राजनीतिक उत्प्रेरक के रूप में सांप्रदायिकता का इस्तेमाल और राष्ट्रीय आंदोलन से सबक

दुर्भाग्य से हमारे कुछ बुद्धिवादियों के पास साम्प्रदायिकता एक ऐसा बांड है जिसे वे कभी भी और कहीं भी भुना सकते हैं। साम्प्रदायिकता पर उनका इतना विशद अध्ययन है कि अब उनसे कोफ़्त होने लगी है क्योंकि पूरे भारतीय समाज की हर समस्या को वे साम्प्रदायिकता से कमतर आंकते हैं। यह भी कोई अच्छी स्थिति नहीं है।

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हिन्दू-मुसलमान के बीच बनायी गयी खाई का पुल बन रहा है किसान आंदोलन

हाल की घटनाओं पर नजर डालें तो यह कहा जा सकता है कि यह आंदोलन समाज में फैलाये जा रहे सांप्रदायिक वैमनस्य के खिलाफ स्वत: स्फूर्त एकजुट होता साफ नजर आ रहा है, जो निश्चित रूप से सत्तारूढ़ भाजपा के लिए ख़तरे की घंटी है।

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