मौत के ‘तांडव’ के बीच शासकों का निर्मम चुनावी स्नान?

कोरोना महामारी का प्रकोप शुरू होने के साल भर बाद भी देश उसी जगह और बदतर हालत में खड़ा कर दिया गया है जहां से आगे बढ़ते हुए महाभारत जैसे इस युद्ध पर तीन सप्ताह में ही जीत हासिल कर लेने का दम्भ भरा गया था।

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लाइट की चकाचौंध और दीवारों के रंगरोगन के पीछे बिलखता हरिद्वार का कुम्भ

मेला प्रशासन जब सभी कामों को करने में नाकाम हो गया तो साधू संतों के पैर पकड़ कर गिड़गिड़ाया और मेले को 2022 में करने की गुहार करने लगा. लेकिन संतों के ना मानने पर सूक्ष्म में मेले को सम्पूर्ण करने की बात साम, दाम, दंड, भेद से मनवा ली गयी!

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