तन मन जन: कोरोना की तीसरी लहर के लिए कितना तैयार हैं हम?

सवाल है कि इस महामारी से जूझते हुए लगभग डेढ़ वर्ष के तजुर्बे के बाद भी क्या हम देश की जनता को यह आश्वासन दे सकते हैं कि हमारी सरकार एवं यहां की चिकित्सा व्यवस्था महामारी से जनता को बचाने एवं निबटने में सक्षम है?

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बनारस: जान जोखिम में डाल के लोगों को बचाने वाले ग्रामीण चिकित्सकों और पत्रकारों का सम्मान

जब सरकारी अस्पतालों और बड़े अस्पतालों में बेड और आक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ था उस समय दूरदराज के गाँवों में चिकित्सकजन ने बड़े ही जिम्मेदारी से पीड़ित और संक्रमित लोगों को चिकित्सा सुलभ करायी। इन चिकित्सकों के पास प्रायः बड़ी डिग्री नहीं होती लेकिन इनका विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज करने का अनुभव कहीं बहुत ज्यादा है और यही कारण था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इन चिकित्सकों ने ग्रामीण क्षेत्र में हजारों लोगों की जान बचायी।

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जलवायु, कोविड और प्रकृति के पतन के तिहरे संकट से निपटने में G7 देशों की तैयारी नाकाफ़ी

यदि ये नेतागण अक्टूबर में होने वाली G20 बैठक तक एकजुट नहीं होते हैं, तो COP26 बैठक का विफल होना तय है। फ़िलहाल सितंबर में होने वाली संयुक्त राष्ट्र महासभा अब COP26 से पहले G7 नेताओं के लिए महत्वपूर्ण तारीख के रूप में निर्धारित की गयी है।

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तन मन जन: महामारी का राजनीतिक अर्थशास्त्र और असमानता का वायरस

जब लॉकडाउन में सभी जगह का उत्पादन बन्द था, पेट्रोल, डीजल की बिक्री भी बाधित थी, दुकानें बन्द थीं, गोदामों में तैयार माल डम्प थे, जीडीपी का ग्राफ नीचे जा रहा था तब इन अरबपतियों की सम्पत्ति दिन दूनी रात चौगुनी कैसे बढ़ रही थी? यह सवाल हर किसी की जिज्ञासा है।

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क्या तीसरी लहर से पहले खुल पाएंगे ग्रामीण PHC और CHC में लटके ताले?

सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों में डॉक्टर नहीं है, वहां मरीजों को ठीक से इलाज नहीं मिल रहा है। जो लोग गरीब हैं वो शहरों में जाकर इलाज नहीं करवा पा रहे हैं। ऐसे में उनके पास एक ही चारा है झोलाझाप डॉक्टर। गांव के गरीब परिवारों का इलाज तो इन्हीं के भरोसे है। कोरोना के दौरान गांव में जैसे हालात बन रहे हैं, उसके दबाव में कोई इन झोलाझाप डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई भी नहीं कर सकता।

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क्या UP में कोविड मौतों की वास्तविक संख्या छुपायी गयी? कांग्रेस ने जारी किये चौंकाने वाले आँकड़े!

विशेषज्ञों का मानना है कि पहली लहर के दौरान आंकड़ों को सार्वजनिक न करना दूसरी लहर में इतनी भयावह स्थिति पैदा होने का एक बड़ा कारण था। जागरूकता का साधन बनाने की बजाय सरकार ने आँकड़ों को बाज़ीगरी का माध्यम बना डाला।

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अवसाद की महामारी: पहले बीमारी का डर, बाद में इलाज के खर्च का दोतरफा तनाव

लोग यह सोच-सोच कर परेशान और अवसादग्रस्त हो रहे हैं कि अगर लाख सावधानी के बावजूद भी उनको कोविड-19 हो गया तो क्या समय पर उनके इलाज के लिए साधन उपलब्ध हो पाएंगे और क्या वह इससे निजात पा सकेंगे।

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जिन्हें दफना दिया गया, वे कौन से हिन्दू थे?

राम की विशालता और करूणा को इससे समझा जा सकता है कि राम ने एक गिद्ध को भी पिता का दर्जा दिया लेकिन बेहिसाब संपत्ति के मालिक मंदिर और मठों में बैठे धर्माधिकारी अपने ही धर्मावलम्बि‍यों के मरने और फिर उन्हें दफनाते हुए देखकर भी बहरे और अंधे बने रहे।

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इंदौर का एक चोर और उन लहरों का शोर, जिनका ‘पीक’ शायद कभी न आए!

जिन लहरों से हम अब मुख़ातिब होने वाले हैं उनका ‘पीक’ कभी भी शायद इसलिए नहीं आएगा कि वह नागरिक को नागरिक के ख़िलाफ़ खड़ा करने वाली साबित हो सकती है। जो नागरिक अभी व्यवस्था के ख़िलाफ़ खड़ा है वही महामारी का संकट ख़त्म हो जाने के बाद अपने आपको उन नागरिकों से लड़ता हुआ पा सकता है जिनके पास खोने के लिए अपने जिस्म के अलावा कुछ नहीं बचा है।

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आखिर कब तक कोरोना से जंग लड़ते रहेंगे सरकारी योजना की राह देखते स्वास्थ्यकर्मी?

हज़ार से ज़्यादा डॉक्टर दूसरों की जान बचाते हुए अपनी जान कुर्बान कर चुके हैं। उनमें से कितने बालासुब्रमण्यम होंगे और कितने उनके बेटे जैसे होंगे जो अपने किसी ख़ास की जान की कीमत माँग रहे होंगे। इसमें आशा कर्मियों और नर्सों को तो अभी हमने गिना ही नहीं है!

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