पंजाब: जहां मंडियों के सहारे चलती है जीवन की गाड़ी

पंजाब के किसानों का कहना है कि पूरे प्रदेश में व्याप्त मंडियों का विशाल और सुलभ नेटवर्क उनके अनुकूल है और न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) व दूसरी अन्य भरोसेमंद प्रक्रियाओं के साथ-साथ व्यापार के लिहाज़ से उन्हें तनिक सुरक्षित माहौल उपलब्ध कराता है। अब किसानों को इस बात का डर लगातार सता रहा है कि नए कृषि कानूनों के लागू होने का सीधा असर इस नेटवर्क पर पड़ेगा।

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केरल के बारे में PM की टिप्पणी उनकी अज्ञानता को दर्शाती है: किसान सभा

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक सवाल उठाया है कि केरल में एपीएमसी और मंडियां नहीं हैं, तो केरल में कोई विरोध क्यों नहीं हो रहे हैं? वे वहां आंदोलन क्यों नहीं शुरू करते?

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MP: मंडियों के लिए मौत का फरमान बना APMC कानून, बड़े वित्तीय संकट की आहट

केंद्र सरकार द्वारा लाए गए तीन कृषि कानूनों को लागू करने के बाद खासकर क‍ृषि उत्‍पाद विपणन से जुड़े एपीएमसी के बारे में आशंका जतायी जा रही थी कि अब मंडियां बंद हो जाएंगी। इस आशंका को लेकर देश भर के किसान एक तरफ दिल्‍ली को घेरे बैठे हैं तो दूसरी ओर मुख्‍यमंत्री शिवराज से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को जोर लगाकर आश्‍वासन और पैसा दोनों बांटना पड़ रहा है। फिर भी प्रदेश की मंडियों की किस्‍मत में मौत ही लिखी है, लोगों के अनुभव और आंकड़े इसकी गवाही देते हैं।

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राग दरबारी: खुद को ‘किसान’ कहने वाले 25% से ज्यादा सांसदों की हैसियत क्या कुछ भी नहीं?

किसानों के पास किसी तरह की कोई आर्थिक ताकत नहीं रह गयी है जबकि संसद में सिर्फ 25 (2.73 फीसदी) सांसद ऐसे हैं जो अपने को उद्योगपति कहते हैं, लेकिन इनके हितों को लाभ पहुंचाने के लिए पूरा देश तैयार है।

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पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी यूपी के किसान आंदोलन क्‍यों कर रहे हैं? बुनियादी सवाल का आसान जवाब

मीडिया आपको बताएगा कि सरकार एमएसपी को खत्‍म करने नहीं जा रही। किसान कह रहे हैं कि ठीक है, एक काम करो कि कानून में ये डाल दो कि एमएसपी से नीचे की खरीद दंडनीय अपराध होगी। सरकार ये करने से मना कर रही है।

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तीनों कृषि विधेयक केवल किसानों पर ही नहीं, हमारी थाली पर भी सीधा हमला हैं!

विधेयक में स्पष्ट कहा गया है कि जब तक अनाज व तेल के दाम पिछले साल के औसत मूल्य की तुलना में डेढ़ गुना व आलू-प्याज, सब्जी-फलों के दाम दोगुने से ज्यादा नहीं बढ़ेंगे, तब तक सरकार कोई हस्तक्षेप नहीं करेगी। इसका अर्थ है कि खाद्य वस्तुओं में महंगाई को 50-100% की दर से और अनियंत्रित ढंग से बढ़ाने की कानूनी इजाज़त दी जा रही है

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