सोनभद्र के आदिवासी नरसंहार तक जाती हैं बनारस के मुसहरों के अंकरी कांड की जड़ें


बनारस के कोइरीपुर में मुसहर समुदाय की भूख के सवाल पर सरकार की खूब छीछालेदर हुई। लॉकडाउन के दौरान अंकरी प्रकरण को लेकर जिस वक्त विपक्ष, सत्तारूढ़ दल को घेरने में जुटा था, उस समय बनारस में नौकरशाही घास को दाल बताने और अपनी दाल गलाने में जुटी हुई थी। खूब बखेड़ा हुआ। बड़ा सवाल यह है कि आखिर किसने और क्यों रचा अंकरी पुराण?

कोइरीपुर मुसहर बस्ती पिंडरा इलाके में है। इलाके के कस्टोडियन पिंडरा के उपजिलाधिकारी (एसडीएम) ए. मणिकंदन रहे। लॉकडाउन के शुरुआती पांच दिनों तक मुसहर समुदाय के लोग भूखे रह गये। लाचारी में लोगों को घास खानी पड़ी। वनवासी मुसहर समुदाय को राशन-भोजन पहुंचाने की जिम्मेदारी ए. मणिकंदन की ही थी। इन्होंने अपना फर्ज सही ढंग से नहीं निभाया। बारीकी से भूख के सवाल को हज़म कर गये। 25 मार्च 2020 को कोइरीपुर मुसहर बस्ती में आधी रात को अफसरों की जो टीम अंकरी घास उखड़वाने पहुंची थी, उसका नेतृत्व खुद उपजिलाधिकारी मणिकंदन कर रहे थे।

क्यों खेला गया खेल?

ए. मणिकंदन आइएएस अफसर हैं। पहले सोनभद्र जिले की घोरावल तहसील में उपजिलाधिकारी पद पर तैनात थे। इसी तहसील के अधीन था उभ्भा गांव। ये वही गांव है जहां 17 जुलाई 2019 को इलाके के दबंग भू-माफिया यज्ञदत्त भूर्तिया ने 11 गोंड आदिवासियों को मौत के घाट उतार दिया था। सोनभद्र नरसंहार कांड इसलिए सुर्खियों में आया था क्योंकि सबसे पहले इसकी पड़ताल हमने की थी। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की रिपोर्ट में भी इस बात का साफ-साफ उल्लेख किया गया है कि घटना के बाद सबसे पहले मौके पर जनसंदेश टाइम्स की टीम पहुंची थी। इस टीम का नेतृत्व मैं खुद कर रहा था। हमने परत-दर-परत नरसंहार कांड को खोला। हमने जिन अफसरों पर सवाल खड़ा किया, उन्हें योगी सरकार के जांच दल ने भी दोषी माना। मुख्यमंत्री ने आदिवासियों को न सिर्फ भारी-भरकम मुआवजा दिया, बल्कि उनकी जमीनें भी लौटवाईं। आदिवासियों के लिए स्कूल भी दिया। साथ ही समेत ढेर सारी सुविधाएं भी।

नरसंहार कांड के पीछे की कहानी

योगी सरकार की एसआइटी ने अपनी पड़ताल में यह साफ कर दिया है कि नरसंहार कांड की पटकथा ए. मणिकंदन ने लिखी थी। कौड़ियों के दाम पर हथियायी गयी आदिवासियों की जमीन पर कब्जा दिलाने के लिए अभियुक्त ग्राम प्रधान यज्ञदत्त भूर्तिया के भाई कोमल सिंह ने तत्कालीन कलेक्टर अमित कुमार को अर्जी दी थी। कलेक्टर को घोरावल के तत्कालीन एसडीएम ए. मणिकंदन ने जो जांच आख्या भेजी उसमें साफ-साफ लिख दिया था कि वो ज़मीन ग्राम प्रधान और उनके कुनबे की है। यहां तक संस्तुति दी कि वो ज़मीन विवादित नहीं है। उस पर कब्जा दिलाया जाना बेहद जरूरी है।

आदिवासियों के अधिवक्ता नित्यानंद द्विवेदी बताते हैं कि पत्रांक संख्या-1004-2019 में ए. मणिकंदन ने यह भी लिख दिया था कि प्रधान यज्ञदत्त भूरिया, कोमल सिंह वगैरह को कब्जा दिलाने में किसी तरह कोई कानूनी बाधा नहीं है। हैरान करने वाली बात यह है जिस समय ए. मणिकंदन ने अपनी जांच रिपोर्ट तत्कालीन कलेक्टर को भेजी थी उस समय तक खतौनी जारी ही नहीं हुई थी। द्विवेदी यहां तक कहते हैं कि तत्कालीन एसडीएम मणिकंदन की संस्तुति के बाद नरसंहार का मुल्जिम यज्ञदत्त भर्तिया ने जमीन पर कब्जा दिलाने और फोर्स मुहैया कराने के लिए एक लाख बयालीस हजार रुपये जमा कराये थे।

सोनभद्र नरसंहार कांड तब सुर्खियों में आया था जब कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी को वहां जाते समय रास्ते में रोक लिया गया था। बाद में उन्हें मीरजापुर के चुनार किले के गेस्ट हाउस में नज़रबंद कर दिया गया था। काफी दिनों तक चले सियासी ड्रामे के बाद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और प्रियंका गांधी भी गोंड आदिवासियों से मिलने उभ्भा पहुंचे। बाद में फर्जी तरीके से हड़पी गयी ज़मीन आदिवासियों को सौंपी गयीं।

शुरुआती चरण में हमारी रिपोर्ट्स को आधार बनाकर एसआइटी आगे बढ़ी। बाद में गहन जांच-पड़ताल में पुलिस के ईमानदार अफसरों ने दूध का दूध, पानी का पानी कर दिया। फरवरी 2020  के आखिरी हफ्ते में एसआइटी ने शासन को अपनी जांच रिपोर्ट सौंप दी। रिपोर्ट में सोनभद्र के तत्कालीन डीएम अंकित अग्रवाल और घोरावल के तत्कालीन उपजिलाधिकारी मणिकंदन समेत 21 अधिकारियों के खिलाफ विभागीय कार्रवाई की सिफारिश की गयी है। इसके अलावा मामले में शामिल 22 लोगों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल करने की भी संस्तुति की गयी है। करीब 350 पन्नों की रिपोर्ट में एसआइटी ने राजस्व, प्रशासन और पुलिस के अफसरों के खिलाफ तमाम साक्ष्यों का जिक्र किया है। ज़मीन के ‘खेल’ में तत्कालीन उपजिलाधिकारी, डिप्टी एसपी, इलाके के थानेदार व राजस्व से जुड़े अफसरों को जिम्मेदार माना गया है। साथ ही इनके खिलाफ आरोप-पत्र दाखिल करने के लिए योगी सरकार से अनुमति मांगी है।

एसआइटी की पड़ताल में पता चला है कि आइएएस अफसर की पत्नी आशा मिश्रा व विनिता शर्मा ने ज़मीन के बदले मिली रकम में से 50 लाख रुपये शिरडी स्थित साईं बाबा के मंदिर में दान कर दिये थे। एसआइटी ने उन्हें जमीन बेचने के एवज में मिले एक करोड़ नौ लाख रुपये ब्याज समेत लौटाने की सिफारिश की है।

क्यों रंज मान गए हुजूर?

बनारस के कोइरीपुर के मुहसरों की भूख के मामले की तह में जाएंगे तो साफ हो जाएगा कि लॉकडाउन में अंकरी घास को दाल बताने की पटकथा भी पिंडरा के एसडीएम ए. मणिकंदन ने ही लिखी। पिंडरा तहसील क्षेत्र का कस्टोडियन होने के नाते मुसहर समुदाय के लोगों के घर भोजन-राशन पहुंचाने की जिम्मेदारी उनकी ही थी। कलेक्टर कौशल राज शर्मा ने तो इनके ऊपर सिर्फ भरोसा किया और अपने पुत्र के साथ घास खाकर वे विवादों में घिर गये। एसडीएम ए. मणिकंदन से आज तक यह नहीं पूछा गया कि अगर भूख से मुहसरों का मौतें हो गयी होतीं तो जिम्मेदारी किसके माथे पर मढ़ी जाती?

कम नहीं हुई खुन्नस

पिंडरा के एसडीएम ए. मणिकंदन ने लॉकडाउन में एक और बड़ा खेल खेला। हरहुआ इलाके के गोकुलधाम मैरिज लान में प्रवासी श्रमिकों के लिए बनाया गया था जांच केंद्र। हमारे साथी पत्रकार मोम्मद इरफान वहां गये थे स्थिति की पड़ताल करने। एसडीएम मणिकंदन को पता चला तो अकारण इरफान को गिरफ्तार करा लिया और थाने भेजवा दिया। यह घटना 14 मई 2020 की है। एसडीएम ने पुलिस पर जबरिया दबाव डाला और फर्जी धारा लगवाकर कार्रवाई करवा दी। कलेक्टर कौशल राज शर्मा को खबर मिली तो उन्होंने बड़ागांव के थानाध्यक्ष को निर्देश देकर पत्रकार साथी को रिहा कराया। मामला अभी विचाराधीन है।

एसडीएम मणिकंडन का दर्द यह है कि जनसंदेश टाइम्स में छपी हमारी खबरों के चलते सोनभद्र नरसंहार कांड की जांच की आंच उन तक पहुंची। एसआइटी ने गहन पड़ताल की तो तत्कालीन कलेक्टर अंकित अग्रवाल के साथ ही उन्हें भी जिम्मेदार माना। जांच रिपोर्ट योगी सरकार के टेबल पर है। एसआइटी की रिपोर्ट पर शासन कार्रवाई करती है तो मणिकंदन ही सबसे पहले नपेंगे। कोइरीपुर में पांच दिनों तक मुसहरों को भूख से तड़पाये जाने की जांच ईमानदारी से होगी, तब भी मणिकंदन ही शिकंजे में आएंगे।

मुसहरों के बीच काम करने वाले बनारस के जाने-माने एक्टिविस्ट डॉ. लेनिन रघुवंशी कहते हैं कि अब तो इस बात की भी जांच होनी चाहिए कि मुसहर समुदाय के लिए दिल खोलकर काम करने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को बदनाम करने के लिए कहीं यह प्रशासनिक अफसर का बड़ा खेल तो नहीं था? बड़ागांव ब्लाक मुख्यालय से सटे होने के बावजूद मुसहर बस्ती के लोग कैसे भूखे रह गये? भूख का सवाल क्यों दबा दिया गया? अंकरी घास को दाल बताकर जिला प्रशासन और सरकार को बदनाम करने की क्यों कोशिश की गयी, इसकी सीबीआइ जांच होनी चाहिए। 


विजय विनीत वाराणसी में जनसंदेश टाइम्स दैनिक के संपादक हैं


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11 Comments on “सोनभद्र के आदिवासी नरसंहार तक जाती हैं बनारस के मुसहरों के अंकरी कांड की जड़ें”

  1. Aap ki lekhni jb …..chalti hai to सर श्रद्धा से झुक जाता है।आप समाज के एक सजग प्रहरी है।
    सादर प्रणाम
    श्री विजय विनीत जी
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