तीनों काले कृषि कानून श्रमजीवी किसानों की MSP और मंडी को खत्म करने वाले हैं: प्रियंका गांधी


लखनऊ 10 फरवरी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा जी ने आज माँ शाकम्बरी देवी के दर्शन करने के उपरान्त सहारनपुर पहुंचकर चिलकाना में आयोजित विशाल किसान पंचायत को सम्बोधित करते हुए कहा कि- मैं माता शाकम्बरी देवी से आर्शीवाद लेके आयी हूं। आप सबको मालूम होगा कि माता शाकम्बरी देवी की कथा क्या है। एक समय दुर्गम राक्षस थे। उस समय भीषण अकाल पड़ा बारिश नहीं आयी माता शाकम्बरी देवी अपनी सौं आखों से दुनिया को देख रही थीं उनके दिल में दुनिया के लिए दया आयी और उन सौं आंखों से उन्होने आंसू बहाये जिससे नदियों में पानी आया और किसानों को बारिश मिली और आर्शीवाद मिला और उपज हुईं।

आज जो तीन कानून इस सरकार ने बनाये हैं। वह राक्षस रूपी कानून, जो किसान को मारना चाहते हैं। आप इन कानूनों के बारे में अच्छी तरह जानते होंगे।

पहला कानून, भाजपा के नेतृत्व में, भाजपा के पूंजीपति मित्रों के लिए जमाखोरी के दरवाजे खोलेगा। आपको मालूम हेागा कि 1955 में जवाहर लाल नेहरू ने जमाखोरी बंद करवायी थी, कानून बनवाया था जमाखोरी बंद होनी चाहिए। उस कानून को आज बदला गया है। यह नया कानून बड़े-बड़े खरबपतियों को मदद करेगा। आपको उपज का दाम क्या मिलना है आपसे कब खरीदा जायेगा, कैसे खरीदा जायेगा, यह वह तय करेंगे।

दूसरा कानून, एक ऐसा कानून है जो सरकारी मंडियों कोे बन्द कर खत्म कर डालेगा। क्योंकि उस कानून के तहत जो बड़े बड़े खरबपति हैं वह अपनी प्राइवेट मंडिया खोलेंगे। जबकि सरकारी मंडी में आपको टैक्स लगेगा, प्राइवेट मंडी में आपको टैक्स नहीं लगेगा। इसका मतलब है कि तमाम किसान सबसे पहले प्राइवेट मंडियों में चले जायेंगे। लेकिन आस्ते आस्ते यह होगा कि जेा बड़े बड़े खरबपति हैं वह उन मंडियों में सामान स्टाक में रखेंगे उन मंडियों में सामान इकट्ठा करके रखेंगे और जब मन चाहेगा तब आपसे खरीदेंगें। जिस दाम पर चाहेंगे आपसे खरीदेंगे केाई न्यूनतम प्राइस नहीं होगी एमएसपी नहीं होगी ऐसा कुछ कानून नहीं होगा जिसके जरिए आपको अपनी उपज का सही दाम मिल पायेगा।

तीसरा कानून यह है जिसे कहते हैं कान्ट्रैक्ट फार्मिंग का कानून। इसका मतलब है कि ठेके पर आपके साथ एक योजना बनायी जायेगी कि आपके गांव करोड़पति आ सकता है, अरबपति आ सकता है। आपके गांव में 25 किसान हैं सब गेहू उगायेंगे आपको हम 20 रूपये का दाम देंगे। बाद में जब आप गेहूं उगायेंगे तब सब उस पर निर्भर होगा कि वह आपसे गेहूं खरीदना चाहेगा 20 रूपये में दाम देगा या 10 रूपये का दाम देगा या आपसे कहता है कि आपको गेहूं ठीक नहीं है हमें गेहूं चाहिए नहीं। यह सब उसी पर निर्भर होगा। जो तीन कानून है यह तीनों कानून इस तरह बनाये गये हैं कि सरकारी मंडिया बन्द होंगी। न्यूनतम समर्थन मूल्य बंद होगा, नहीं मिलेगा आपको और पूरी तरह से जमाखोरी बढ़ेगी। इसका मतलब है कि किसान की आवाज झुकेगी और बड़े-बड़े करोड़पति और बड़े-बड़े खरबपतियों की आवाज बुलन्द होगी।

आपको प्रधानमंत्री मोदी जी ने पिछले चुनाव में कहा था कि जो गन्ने का बकाया है। खासतौर से इस पश्चिमी उत्तर प्रदेश की समस्या है उसको वह हल करेंगे। उन्होने कहा था कि सत्ता में आते ही 15 दिन बाद 15 हजार करोड़ का जो गन्ने का मूल्य बकाया है वह ब्याज सहित आपको देंगे नतीजा क्या हुआ। 15 दिन नहीं, महीने हो गये, साल निकल गये, लेकिन गन्ने का बकाया आपको नहीं मिला। 15 हजार करोड़ का आपका बकाया आपको नहीं मिला। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के दो हवाई जहाज 16 हजार करोड़ रूपये में खरीदे गये हैं इस सरकार से।

आप सोच सकते हैं कि इनकी जुबान में कितना वजन है। इन्होने आपको कहा था आपको बकया मिलेगा क्या किया इन्होंने दो हवाई जहाज खरीदे जिससे दुनिया भर में घूम सकते हैं। क्या किया इन्होने? दिल्ली में संसद भवन के सौंन्दर्यीकरण के लिए 20 हजार करोड़ रूपये सरकार ने रखे। 20 हजार करोड़ रूपये का सुन्दरीकरण, 16 हजार करोड़ रूपये के दो हवाई जहाज और आपका 15 हजार करोड़ का बकाया आज तक आपको नहीं मिला। समझ लीजिए। बहुत देख ली आपने इनकी, बातों का मूल्य आपने बहुत देख लिया।

इनका 56 इंच का सीना देख लिया जिसके अन्दर एक छोटा सा दिल है, जो अपने अरबपति मित्रों के लिए धड़कता है। वे किसान का दिल नहीं समझ रहे हैं। किसान का दिल इस धरती, इस देश की धरती के लिए धड़कता है। क्योंकि उस धरती को वह सींचता है उस धरती से उसकी जान जुड़ी हुई है उस धरती से ही उस किसान ने ही इस देश को आत्मनिर्भर बनाया। हरित क्रान्ति, श्वेत क्रान्ति के जरिए, इस देश को आत्मनिर्भर बनाने वाला किसान है। यही किसान का बेटा सीमा पर सुरक्षा करता है, सीमा पर तैनात होकर इस देश की सुरक्षा करता हैं।

इस देश के लिए अपनी जान देता है, इस देश के लिए शहीद होता है। उसी किसान का बेटा एक जवान बनकर प्रधानमंत्री की सुरक्षा करता है। उसी किसान का बेटा प्रधानमंत्री के लिए तैनात होता है और उसे सुरक्षित करता है लेकिन ये प्रधानमंत्री किसान का दिल नहीं पहचान रहे हैं। किसान का रोज अपमान कर रहे हैं। इनके जितने भी पार्टी के लेाग हैं, इनके जितने भी मंत्री हैं, रोज कहते हैं कि किसान नहीं बैठा है, किसान आन्दोलन नहीं कर रहा है, यह सच्चा आन्दोलन नहीं है, कहते हैं कि ये आतंकवादी हैं, ये देशद्रोही हैं।

प्रधानमंत्री ने खुद संसद में सिक्खों का अपमान किया। क्या कहा उन्होने- हंसे, किसानों को आन्दोलनजीवी कहा। क्या मतलब है इसका? क्या मतलब है आन्दोलनजीवी का? किसान आन्दोलन कर रहा है अपने जीवन के लिए, अपनी मिट्टी के लिए, अपने देश के लिए, अपने बेटे के लिए जो हमारी सीमा में खड़ा हुआ है। उसका मजाक उड़ाने वाला, उसको देशद्रोही कहने वाला, उसको आतंकवादी कहने वाला, वह देशभक्त नहीं है। वह देशभक्त कभी नहीं हो सकता, जो किसान के दिल को नहीं पहचान सकता।

इस देश को किसान ने बनाया है। 78 दिनों से किसान दिल्ली बार्डर पर बैठा है। मेादी जी अमरीका हो आये, पाकिस्तान हो आये, चीन हो आये, लेकिन जिस शहर में रहते हैं उसके बार्डर तक नहीं पहुं पाये। 78 दिनों से किसान उनका इंतजार कर रहे हैं कि जिनको हमने वोट दिया, जिनको हमने सत्ता दी, जिनको हमने प्रधानमंत्री बनाया, वह हमारी बात सुनेंगे, वह हमारे पास आयेंगे। लेकिन वह नहीं आये, उल्टा संसद में खड़े होकर उन्होने मजाक उड़ाया। उनके मंत्रियों ने अपशब्द बोले। जो 215 किसान शहीद हुए हैं उनका आदर नहीं किया। उनका अपमान किया।

लेकिन जो इस देश को बेंच डालता है जो हवाईअड्डे, रेलवे, एलआईसी, बीएसएनएस, एमटीएनएल, बीएचईएल, सेल, ओएनजीसी बेंच रहा है, उससे आप क्या उम्मीद रखते हैं। क्या उम्मीद रखते हैं।

मैं आज यहां आयी हूं आपको बताने, कि कांग्रेस पार्टी और मैं और कांग्रेस का एक एक नेता आपके साथ खड़े हैं। आपके साथ इस आन्दोलन में हम खड़े हैं। हमारी शक्ति आपकी शक्ति है। लेकिन मैं यह भी हम यही बताने आये हैं भाईयों और बहनों, आप जाग जाइये। जिससे आप उम्मीद रख रहे हैं उसने आपके लिए कुछ नहीं किया अब समझदार बन जाइये, समझ लीजिए सच्चाई क्या है। जब यह आपसे बड़े-बड़े वादे करते हैं तेा समझ जाइयें- ये वादे खोखले हैं यह शब्द खोखले हैं। इन्होने अपने बड़े बड़े खरबपति मित्रों के लिए सब कुछ किया है। उनके लिए सारे दरवाजे खोल दिये। जब लाॅकडाउन हुआ, कोरोना महामारी आयी, उस समय कहां थे? कहाँ थे यह खरबपति मित्र? जब तमाम लेाग इन्हीं सड़कों पर इन्हीं हाईवे पर पैदल चलकर गांवों के लिए रवाना हुए, क्या सुविधा बनायी? किस तरह मदद की आपकी? जिन लेागों के लिए यह काम करते हैं वह लोग आपकी परवाह नहीं करते। ये खुद आपकी परवाह नहीं करते।

अब समय आ गया है, आप जागिये, पीछे मत हटिए। आपने आन्दोलन शुरू किया है यह आपके अस्तित्व का आन्दोलन है। यह आपकी जमीन का आन्दोलन है। एक भी कदम पीछे मत हटिये। हम आपके साथ खड़े हैं आपके साथ लड़ेंगे। जब तक यह कानून रद्द नहीं होंगें, तब तक हम पीछे नहीं हटेंगे।

आपको मालूम है कि कांग्रेस की सरकार के समय आपके लिए क्या क्या किया गया था। अगर कांग्रेस की सरकार आयेगी तो यह कानून रद्द किये जायेंगे। आपको उपज का समर्थन मूल्य मिलेगा। आपकी मदद के लिए कानून बनेेंगे, आपको पीसने के लिए नहीं बनेंगे। हम आपके दिलों के साथ, आपके जीवन के साथ राजनीति नहीं करेंगे। आपका बंटवारा करके धर्म के नाम पर, जाति के नाम पर, आपको अलग करके आपको तोड़ेंगे नहीं, आपको जोड़ेंगे।

और मैं यह कहना चाहती हूं कि इस आन्दोलन में आप सब जुड़िए। एक-एक किसान जुड़े, चाहे किसी भी मजहब का हो किसी भी जाति का हो। पूरे यूपी के किसान की आवाज होनी चाहिए।

जिस तरह से कुछ दिनों पहले एक किसान ने 40 कुन्तल गोभी सड़क पर फेंक दी कि मेरे कोई काम की नहीं है क्यांेकि उसे एक रूपये किलो का दाम मिल रहा था। उस तरह से कभी नहीं होना चाहिए। आपको कभी जुल्म और इस तरह के अत्याचार नहीं सहने चाहिए।

आप खड़े होइये, हिम्मत बनाइये, हम आपके साथ हैं- जय जवान जय किसान। जय जवान जय किसान, जय जवान जय किसान।



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जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

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