भारत में किसान और मजदूर के व्यावहारिक रिश्ते को सही तरीके से समझे जाने की ज़रूरत है

आज देश के कोने-कोने से मजदूर, कामगार, मेहनतकश और तमाम तरह से रोजी-रोटी के इंतजाम में शहरों में आए लोगों का कोरोना महामारी जैसी विषम परिस्थितियां पैदा होने पर गाँव भाग कर जानें के लिए मजबूर होना यह दर्शाता है कि इनका संबंध अभी भी निश्चित रूप से खेती-किसानी और किसान से है और इसलिए अब जरूरी हो जाता है कि उस रिश्ते को सही तरीके से समझा जाए।

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जिन आदिवासियों की ज़मीन में से कोयला निकाला जाना है, वार्ता की मेज़ से वे गायब क्यों हैं?

किसी को यह याद दिलाने की आवश्यकता नहीं है कि आदिवासी सबसे अधिक हाशिये के समुदायों में से हैं। वे भारत की 1.3 बिलियन की आबादी का मात्र 8 प्रतिशत बनाते हैं, लेकिन पिछले दशकों में विकास परियोजनाओं द्वारा विस्थापित 60 मिलियन लोगों में से लगभग 40 प्रतिशत आदिवासी ही हैं। उनमें से केवल 25 प्रतिशत का ही पुनर्वास हुआ है, लेकिन किन्हीं को भी उनका पूरा अधिकार नहीं मिला है।

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सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए सरकारी सेवाएँ क्यों हैं ज़रूरी?

पब्लिक सर्विसेज इंटरनेशनल की एशिया पसिफ़िक सचिव केट लेप्पिन ने कहा कि यदि सरकारी स्वास्थ्य प्रणाली पूर्ण रूप से सशक्त होती तो कोविड-19 महामारी के समय यह सबसे बड़े सुरक्षा कवच के रूप में काम आती. आर्थिक मंदी से बचाने में भी कारगर सिर्फ पूर्ण रूप से पोषित सरकारी सेवाएँ ही हैं जिनको पिछले 40 सालों से नज़रअन्दाज़ किया गया है.

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बनारस में भुखमरी की पहली रिपोर्ट करने वाले पत्रकारों के उत्पीड़न पर NHRC का चीफ सेक्रेटरी को नोटिस

शिकायत को मानवाधिकार आयोग ने डायरी संख्या 58948/CR/2020 के तहत दर्ज किया और आज सोमवार को इससे सम्बंधित केस संख्या 10606/24/72/2020 पर सुनवाई करते हुए उत्तर प्रदेश के प्रमुश सचिव को कार्रवाई का नोटिस जारी कर दिया है.

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“न कोई घुसा है, न किसी का कब्ज़ा है” कहने के पीछे प्रधानमंत्री का आशय क्या है

शुक्रवार को चीन के साथ जारी सीमा विवाद पर हुई ऑनलाइन सर्वदलीय बैठक से धीरे-धीरे छन कर जानकारियां बाहर आ रही हैं. विपक्षी दलों की तमाम दुश्चिंताओं के बीच मीडिया ने जिस ख़बर को सबसे ज्यादा तवज्जो दी वह है प्रधानमंत्री का बयान.

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शिक्षा पर STARS परियोजना का लोन रद्द करने के लिए अकादमिकों ने लिखा विश्व बैंक को पत्र

1400 बुद्धिजीवियों, शिक्षाविदों एवं नागरिक सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों ने भारतमें “स्टार्स” (स्ट्रेंथेनिंग टीचिंग लर्निंग एंड रिजल्ट्स फॉर स्टेट्स-STARS) शिक्षा परियोजना के स्थगन के लिए विश्व बैंक को लिखा खत

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अवसाद को समझने में जाति, धर्म, रंग, लिंग के भेद पूंजीवाद का पर्दा हैं

मजदूर अपनी ही मेहनत से खुद को कटा हुआ पाता है, वह परिपूर्ण नहीं खालीपन का अनुभव करता है। खुश नहीं दुखी रहता है। वह अपनी शारीरिक और मानसिक ऊर्जा का उपयोग नहीं, अपना शरीर तोड़ रहा होता है, अपने दिमाग को बर्बाद होते देख रहा होता है।

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औपनिवेशिक लूट के साझा अतीत बावजूद अश्वेतों के प्रति हमारा व्यवहार अहंकारपूर्ण क्यों है?

उपनिवेशवाद की विरासत ने दोयम दर्जे के भारतीयों की एक ऐसी राष्ट्रीय पहचान को मजबूती प्रदान की जो आज भी श्वेत रंग को अश्वेत रंग से ऊंचा मानने के जरिये अभिव्यक्त होती है

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‘जूनटीन्थ’ दिवस: आज़ादी और इंसाफ़ के नारों तले दबे हैं नाइंसाफ़ी के कंकाल

1865 में दासता से कथित आज़ादी का ऐलान और आज इतने बरस बाद 2020 में एक बार फिर अश्वेत लोगों का खुलेआम क़त्ल हो रहा है- अश्वेत वर्ग रोज़ ही पूछता होगा कि आखिर वह कैसी आजादी थी।

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कोरोना की आपदा के बीच कोल ब्लॉक की नीलामी किसको आत्मनिर्भर बनाने के लिए है?

कोरोना की आपदा को क्या खनन कंपनियों के लिये अवसर में बदलने की तैयारी चल रही है? कोल ब्लॉक को लेकर केंद्र सरकार जो कुछ करने जा रही है, उससे …

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