नेपाल के सुप्रीम कोर्ट ने ओली सरकार द्वारा संसद भंग करने के फैसले पर नेपाल सरकार और राष्ट्रपति कार्यालय को शुक्रवार को कारण बताओ नोटिस जारी किया. सभी याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कोर्ट ने रविवार तक दोनों पक्षों से नेपाल के निचले सदन प्रतिनिधि सभा को भंग करने के लिए लिखित कारण बताने को कहा है.
इस नोटिस में कहा गया है कि वह संसद को अचानक भंग करने के अपने निर्णय पर एक लिखित स्पष्टीकरण प्रस्तुत करे. जज ने इस मामले की अगली सुनवाई 15 जनवरी को तय की है.
नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ अचानक संसद भंग करने के लिए प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली द्वारा उठाए गए कदम को चुनौती देने वाली सभी याचिकाओं पर सुनवाई करने के बाद यह नोटिस जारी किया है.
सभी याचिकाओं की सुनवाई नेपाल के प्रधान न्यायाधीश चोलेंद्र शमशेर राणा की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने की. पांच सदस्यीय पीठ में न्यायमूर्ति बिश्वंभर प्रसाद श्रेष्ठ, न्यायमूर्ति तेज बहादुर केसी, न्यायमूर्ति अनिल कुमार सिन्हा और न्यायमूर्ति हरि कृष्ण कार्की शामिल हैं. प्रधान न्यायाधीश राणा की एकल पीठ ने बुधवार को सभी रिट याचिकाओं को संवैधानिक पीठ को सौंप दिया था.
बहुत हो चुका ओली जी! अब विश्राम कीजिए…
संसद को भंग करने के सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए कुल 13 रिट याचिकाएं उच्चतम न्यायालय में दायर की गयी हैं. अदालत ने दोनों पक्षों से यह स्पष्टीकरण भी मांगा है कि-
अदालत संसद भंग करने की राष्ट्रपति के निर्णय को रद्द करने की मांग करने वाले याचिकाओं के पक्ष में आदेश क्यों नहीं जारी कर सकती. कोर्ट ने कहा कि यदि कोई कानूनी आधार है जिससे कोर्ट याचिकाकर्ताओं द्वारा मांग के अनुसार निर्णय नहीं दे सकता है तो उसे अटॉर्नी जनरल के कार्यालय के माध्यम से 3 जनवरी तक जमा करें.
बुधवार को सुनवाई के दौरान वरिष्ठ वकीलों ने संवैधानिक प्रावधानों का हवाला देते हुए दलील दी कि-
प्रधानमंत्री ओली को तब तक सदन को भंग करने का अधिकार नहीं है, जब तक कि कोई वैकल्पिक सरकार बनाने की कोई संभावना नहीं हो.
गौरतलब है कि प्रधानमंत्री ओली की सिफारिश पर रविवार को राष्ट्रपति बिद्या देवी भंडारी द्वारा प्रतिनिधि सभा भंग करने तथा मध्यावधि चुनाव की तारीखों की घोषणा करने के बाद नेपाल में राजनीतिक संकट पैदा हो गया है.