पवन ऊर्जा ने एशिया-प्रशांत क्षेत्र को 110 मिलियन कारों के धुएं से दी निजात


क्या आपको पता है एशिया पैसिफिक के जिस क्षेत्र में आप और हम रहते हैं, वहां विंड एनर्जी की मौजूदा उत्पादन क्षमता इतनी है कि अगर उतना बिजली उत्पादन कोयले से हो तो 510 मिलियन टन का कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन होगा? जी हाँ, सही पढ़ा आपने। दूसरे शब्दों में कहें तो बिजली उत्पादन के इस विकल्प के प्रयोग से कार्बन डाइऑक्साइड का उतना उत्सर्जन टाला जा सका जितना 110 मिलियन कारें उत्सर्जन करतीं।

दुनिया को नेट ज़ीरो मार्ग पर रखने और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से विंड एनर्जी स्थापित करने की आवश्यकता है।

अमूमन हम लोग विंड एनेर्जी को तरजीह नहीं देते लेकिन यहाँ ये जानना बड़ा तसल्ली देगा कि हमारे एशिया पैसिफिक के क्षेत्र में पिछले साल 56 गीगावाट की नयी क्षमता स्थापित की गयी, जिसके बाद इस क्षेत्र की कुल उत्पादन क्षमता हो गयी 347 गीगावाट। और पिछले साल महामारी के चरम दौर में, जब दुनिया उसे झेल रही थी, चीन विंड एनर्जी में खेल रहा था। इस 56 गीगावाट की क्षमता में अकेले चीन ने 52 गीगावाट की क्षमता स्थापित कर रिकार्ड बनाया, जो कि उसके साल 2060 तक नेट जीरो होने के लक्ष्य की ओर बढ़ता हुआ मज़बूत क़दम के तौर पर दिखता है।

बात भारत की करें तो लगभग 39 गीगावाट की संचयी पवन ऊर्जा क्षमता के साथ, हमारा देश दुनिया मेंचौथे स्थान पर है और 57 टन कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन को टाल रहा है।

कुल मिलाकर देखें तो 2020 वैश्विक पवन उद्योग के लिए इतिहास में अब तक का सबसे अच्छा वर्ष था जिसमें 93 गीगावॉट नई क्षमता स्थापित की गई, जो कि साल-दर-साल 53 प्रतिशत की वृद्धि थी, लेकिन वैश्विक पवन ऊर्जा परिषद (GWEC) द्वारा प्रकाशित एक नई रिपोर्ट चेतावनी देती है कि यह वृद्धि 2050 तक दुनिया को नेट ज़ीरो हासिल करने के लिए पर्याप्त नहीं। GWEC की 16-वीं वार्षिक फ्लैगशिप रिपोर्ट, ग्लोबल विंड रिपोर्ट 2021, के अनुसार दुनिया को नेट ज़ीरो मार्ग पर रहने के लिए और जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए अगले दशक में तीन गुना तेज़ी से पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है। मतलब, दुनिया को जलवायु परिवर्तन के सबसे बुरे प्रभावों से बचने के लिए हर एक वर्ष में न्यूनतम 180 गीगावॉट नई पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है, जिसका मतलब है कि उद्योग और नीति निर्माताओं को संयंत्रों की स्थापना में तेज़ी लाने के लिए जल्द कार्य करने की आवश्यकता है।

कुल वैश्विक पवन ऊर्जा क्षमता अब 743 GW तक बढ़ गयी है, जिससे दुनिया को सालाना 1.1 बिलियन टन CO2 उत्सर्जन से अधिक से बचने में मदद मिलती है। यह उत्सर्जन दक्षिण अमेरिका के वार्षिक कार्बन उत्सर्जन के बराबर है।

प्रौद्योगिकी नवाचारों और स्केल की अर्थव्यवस्थाओं के माध्यम से, वैश्विक पवन ऊर्जा बाजार पिछले एक दशक में लगभग चौगुना हो गया है और इसने ख़ुद को दुनिया भर में सबसे अधिक लागत-प्रतिस्पर्धी और लचीले बिजली स्रोतों में से एक के रूप में स्थापित किया है। 2020 में, चीन और अमेरिका – दुनिया के दो सबसे बड़े पवन ऊर्जा बाजारों में, – जिन्होंने 2020 में नए प्रतिष्ठानों का 75 प्रतिशत स्थापित किया और जो दुनिया की कुल पवन ऊर्जा क्षमता के आधे से अधिक हिस्से का हिसाब देते हैं, प्रतिष्ठानों की महोर्मि से रिकॉर्ड वृद्धि हुए।

आज भले ही दुनिया में 743 गीगावॉट पवन ऊर्जा क्षमता है, जो विश्व स्तर पर 1.1 बिलियन टन CO2 से बचने में मदद करती है लेकिन फिर भी, इस रिपोर्ट से पता चलता है कि पवन ऊर्जा की तैनाती का वर्तमान दर इस सदी के मध्य तक कार्बन न्यूट्रैलिटी प्राप्त करने के लिए पर्याप्त नहीं होगी, और अब आवश्यक गति से पवन ऊर्जा को बढ़ाने के लिए नीति निर्माताओं द्वारा तत्काल कार्रवाई की जानी चाहिए।

IRENA और IEA जैसे अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा निकायों द्वारा स्थापित किए गए परिदृश्यों के अनुसार, विश्व को हर साल कम-से-कम 180 GW नई पवन ऊर्जा स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि ग्लोबल वार्मिंग को पूर्व-औद्योगिक स्तरों से 2°C अधिक की सीमा के नीचे रखा जा सके और 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य को पूरा करने के लिए एक मार्ग को बनाए रखने के लिए प्रति वर्ष 280 GW तक स्थापित करने की आवश्यकता होगी।

GWEC अपनी रिपोर्ट के माध्यम से नीति-निर्माताओं से आह्वान कर रहा है कि वे एक ’जलवायु आपातकालीन’ दृष्टिकोण अपनाएं, जिससे तुरंत बढ़ावे की अनुमति हो। इसमें शामिल हैं:

·         लालफीताशाही को खत्म करना और परियोजनाओं के लिए लाइसेंसिंग और अनुमति को शीघ्रता और व्यवस्थित करने के लिए प्रशासनिक संरचनाओं में सुधार करना

·         ग्रिड, बंदरगाहों और अन्य बुनियादी ढांचे में निवेश में भारी वृद्धि को स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि प्रतिष्ठानों को बढ़ावा मिल सके

·         यह सुनिश्चित करने के लिए कि वे जीवाश्म ईंधन के प्रदूषण की वास्तविक सामाजिक लागतों का लेखा-जोखा रक्खें और रिन्यूएबल ऊर्जा पर आधारित प्रणाली में जल्द-से-जल्द संक्रमण की सुविधा प्रदान करें, ऊर्जा बाजार में सुधार

अपनी प्रतिक्रिया देते हुए GWEC के CEO बेन बैकवेल कहते हैं, “दुनिया भर के लोग और सरकारें महसूस कर रही हैं कि हमारे पास खतरनाक जलवायु बदलाव से निपटने के लिए एक सीमित समय है जबकि कई प्रमुख अर्थव्यवस्थाओं ने लंबी अवधि के नेट ज़ीरो लक्ष्यों की घोषणा की है, हमें यह सुनिश्चित करने की आवश्यकता है कि ये महत्वाकांक्षा ज़मीन और पानी में रिन्यूएबल ऊर्जा की स्थापना में तेज़ी से बढ़ते निवेश और इंस्टालेशन के साथ होने के लिए तत्काल और सार्थक कार्रवाई की जाए। पिछले साल चीन और अमेरिका में रिकॉर्ड वृद्धि देखना वास्तव में उत्साहजनक है, लेकिन अब हमें दुनिया के बाकी हिस्सों से हरकत देखनी की ज़रूरत है, ताकि हम वहां हम पहुंच पाएं जहां हमें होने की ज़रूरत है।

“हमारे मौजूदा बाजार पूर्वानुमान बताते हैं कि अगले पांच वर्षों में 469 गीगावॉट नई पवन ऊर्जा क्षमता स्थापित की जाएगी। लेकिन हमें 2025 भर तक हर साल कम से कम 180 गीगावॉट नई क्षमता स्थापित करने की आवश्यकता है ताकि हम यह सुनिश्चित कर सकें कि हम ग्लोबल वार्मिंग को 2 ° C से नीचे सीमित करने के लिए सही रास्ते पर बने रहें – मतलब हम वर्तमान में औसतन प्रत्येक साल 86 गीगावॉट कम के ट्रैक पर हैं। और  इन स्थापना स्तरों को मध्य शताब्दी तक कार्बन न्यूट्रैलिटी प्रदान करने के लिए 2030 से परे 280 गीगावॉट तक ऊपर जाने की आवश्यकता होगी। हम हर साल पीछे रह जाते हैं और आगे के वर्षों में (हम जो पहाड़ चढ़ रहे हैं वो) पहाड़ ऊंचा होता जाता है।”

इस क्रम में भारत की नज़र से, GWEC में नीति निदेशक, मार्तंड शार्दुल कहते हैं, “भारत 38 गीगावाट से ज़्यादा की क्षमता के साथ दुनिया का चौथा सबसे बड़ा पवन ऊर्जा बाजार है। साल 2050 तक नेट ज़ीरो लक्ष्य हासिल करने में तटवर्ती और अपतटीय पवन दोनों को एक बड़ी भूमिका निभानी होगी। भारत सरकार ने पहले ही रेन्युब्ल के क्षेत्र में महत्वाकांक्षी लक्ष्य निर्धारित कर रखे हैं और साथ ही ग्रीन हाइड्रोजन की नीलामी के इरादे भी सार्वजनिक कर दिए हैं। लेकिन स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को प्राथमिकता देने के लिए सही और नयी नीतियों को लागू करना महत्वपूर्ण होगा।”

नेट ज़ीरो पर बोलते हुए मार्तंड आगे कहते हैं, “नेट ज़ीरो भारत का निर्माण करने का अर्थ है कई लाख नए, दीर्घकालिक, और स्थानीय रोज़गार और नौकरियों अवसर पैदा करना। अपनी ‘आत्मनिर्भर भारत’ पहल के माध्यम से, देश खुद को एक अक्षय ऊर्जा विनिर्माण केंद्र के रूप में स्थापित करना चाहता है, जो बड़े पैमाने पर निवेश और आपूर्ति श्रृंखला के अवसरों को खोलेगा और भारत को अन्य देशों का समर्थन करने के लिए दुनिया की स्वच्छ ऊर्जा प्रौद्योगिकियों का एक प्रमुख आपूर्तिकर्ता बनाएगा और तमाम देशों को नेट ज़ीरो के मार्ग पर बढ़ने में मदद करेगा।”


Climateकहानी के सौजन्य से


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