बाबरी मस्जिद गिराने की योजना नहीं थी, अचानक गिरी, सारे आरोपित नेता बरी: CBI कोर्ट


बाबरी मस्जिद विध्‍वंस के 28 साल पुराने केस में आज लखनऊ स्थित सीबीआइ की विशेष अदालत ने अपना फैसला सुना दिया। जज एसके यादव ने 2000 पन्‍ने का फैसला पढ़ते हुए सभी आरोपितों को बरी कर दिया और कहा कि बाबरी को गिराये जाने की घटना अचानक हुई थी, पूर्व-नियोजित नहीं थी।

जज ने सभी 32 आरोपितों को फैसले के दिन आज कोर्ट में मौजूद रहने का आदेश दिया था लेकिन एलके आडवाणी, मुरली मोहर जोशी, उमा भारती और कल्‍याण वीडियो कॉन्‍फ्रेंसिंग से कोर्ट में मौजूद हुए। उमा भारती कोरोना संक्रमण से ग्रस्‍त हैं और ऋषिकेश के एम्‍स में भर्ती हैं।

बाबरी मस्जिद को 6 दिसंबर, 1992 को ढहाये जाने के मामले में दो एफआइआर हुई थी। एक अज्ञात कारसेवकों पर थी और दूसरी भारतीय जनता पार्टी के नेताओं पर थी, जिसमें लालकृष्‍ण आडवाणी, मुरली मनोहर जोशी, विनय कटियार, उमा भारती, साध्‍वी ऋतम्‍भरा, सतीश प्रधान आदि आरोपित थे। इसके अलावा 47 अन्‍य एफआइआर उस दिन की घटनाओं के सम्‍बंध में दर्ज की गयी थीं।

राम जन्‍मभूमि विवाद पर अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने टिप्‍पणी की थी कि ‘’बाबरी विध्‍वंस कानून के राज का उल्‍लंघन है और जो गलत हुआ है उसे दुरुस्‍त किया जाना चाहिए।‘’ इसके बाद आज के फैसले में बाबरी विध्‍वंस के सभी आरोपितों को अपराध से बरी कर दिया गया है।

जज एसके यादव ने फैसला पढ़ते हुए कहा कि आरोपितों के खिलाफ़ पर्याप्‍त साक्ष्‍य नहीं हैं। इस तरह राम जन्‍मभूमि के मामले में सौ साल पुराना दीवानी मुकदमा और बाबरी मस्जिद तोड़े जाने के मामले में 28 साल पुराना फौजदारी मुकदमा हमेशा के लिए समाप्‍त हो गया है।


About जनपथ

जनपथ हिंदी जगत के शुरुआती ब्लॉगों में है जिसे 2006 में शुरू किया गया था। शुरुआत में निजी ब्लॉग के रूप में इसकी शक्ल थी, जिसे बाद में चुनिंदा लेखों, ख़बरों, संस्मरणों और साक्षात्कारों तक विस्तृत किया गया। अपने दस साल इस ब्लॉग ने 2016 में पूरे किए, लेकिन संयोग से कुछ तकनीकी दिक्कत के चलते इसके डोमेन का नवीनीकरण नहीं हो सका। जनपथ को मौजूदा पता दोबारा 2019 में मिला, जिसके बाद कुछ समानधर्मा लेखकों और पत्रकारों के सुझाव से इसे एक वेबसाइट में तब्दील करने की दिशा में प्रयास किया गया। इसके पीछे सोच वही रही जो बरसों पहले ब्लॉग शुरू करते वक्त थी, कि स्वतंत्र रूप से लिखने वालों के लिए अखबारों में स्पेस कम हो रही है। ऐसी सूरत में जनपथ की कोशिश है कि वैचारिक टिप्पणियों, संस्मरणों, विश्लेषणों, अनूदित लेखों और साक्षात्कारों के माध्यम से एक दबावमुक्त सामुदायिक मंच का निर्माण किया जाए जहां किसी के छपने पर, कुछ भी छपने पर, पाबंदी न हो। शर्त बस एक हैः जो भी छपे, वह जन-हित में हो। व्यापक जन-सरोकारों से प्रेरित हो। व्यावसायिक लालसा से मुक्त हो क्योंकि जनपथ विशुद्ध अव्यावसायिक मंच है और कहीं किसी भी रूप में किसी संस्थान के तौर पर पंजीकृत नहीं है।

View all posts by जनपथ →

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *