दुनिया के सामने कोरोना वायरस संक्रमण का अब तक चार महीने का अनुभव सामने है। उपलब्ध जानकारियाँ और विभिन्न देशों की गतिविधियां बता रही हैं कि अगले दो या तीन हफ्ते में देश और दुनिया का कार्यकलाप धीरे-धीरे पटरी पर लौटने लगेगा। इस दौरान पूरी दुनिया ने जो चीज एक साथ झेली है वह है ‘‘लॉकडाउन’’ और जो सीखी है वह है ‘‘पुलिस के नियंत्रण’’ में रहना। मैं कोरोना वायरस के संकट को कमतर नहीं आंक रहा लेकिन इस संकट के नाम पर उत्पन्न खतरे की ओर आपका ध्यान खींचना चाह रहा हूं। मैं अपनी बात भारत के सन्दर्भ में रखूंगा लेकिन दुनिया में जो ‘‘कोरोना वायरस संक्रमण काल’’ का परिदृश्य है उस पर भी आपका ध्यान आकृष्ट करूंगा।
भारत में कोरोना वायरस का प्रवेश
भारत में 30 जनवरी 2020 को कोरोना वायरस संक्रमण का पहला मामला चीन के वुहान से लौटे भारतीय छात्र में पाया गया। यह छात्र केरल का रहने वाला था। 3 फरवरी तक संक्रमित लोगों की संख्या तीन हो गई थी। मार्च आते आते कोरोना वायरस संक्रमित लोग भारत में 1000 तक पहुंच गए। 2 अप्रैल को यह संख्या 2000 को पार कर गई। 4 अप्रैल तक 3000 और 19 अप्रैल को 15712 संक्रमण और 507 मौतें दर्ज हो गयी थीं।
इस बीच देश में सत्ता की राह पर साम्प्रदायिक सोच वाली मीडिया ने यह समाचार चलाया कि भारत में कोरोना वायरस संक्रमण मुसलमानों के तबलीगी जमात से फैल रहा है, हालांकि इससे पहले 7 मार्च को इटली और जर्मनी से लौटे सिख समुदाय के एक धार्मिक समूह के 27 लोग कोरोना वायरस पॉजिटिव पाये गए थे। ऐसे ही 5 मार्च को आगरा में ताजमहल देखने आये विदेशियों में से 5 लोग कोरोना संक्रमित थे। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 18 जनवरी से 23 मार्च तक विदेश से 15 लाख यात्री भारत आये।
देश में लॉकडाउन
24 मार्च 2020 को रात्रि 8.00 बजे ‘‘राष्ट्र के नाम सम्बोधन’’ के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में 21 दिनों के लॉकडाउन की जब घोषणा की तब लगभग 10 करोड़ लोग देश में विभिन्न राज्यों में अस्थायी रूप से रह रहे थे। ये लोग अचानक इतनी लम्बी तालाबन्दी से सशंकित हो गये और येन केन प्रकारेण अपने घर लौट जाने के लिये तत्पर हो गये। अफरातफरी में कोई 25 लाख मजदूर अपने छोटे बच्चों, पत्नी और सामान के साथ 1000 से लेकर 1500 किलोमीटर तक लम्बी यात्रा पर पैदल ही निकल पड़े। पुलिस के डण्डे, बारिश, भूख और डर के साथ देश के लगभग सभी राष्ट्रीय राजमार्गों पर मजबूर मजदूरों का काफिला 71 वर्ष पूर्व बंटवारे के विस्थापन की याद दिला गया। काफी लोग जहां थे वहीं अटक गये। पुलिस का खौफ़ और राज्य सरकारों के दिलासा के झांसे में उन्हें रुकना पड़ा। कोई और चारा भी नहीं था।
स्थिति तब और विस्फोटक हो गयी जब प्रधानमंत्री ने लॉकडाउन को बढ़ाकर 3 मई तक कर दिया। सूरत, मुम्बई में लोग रेलवे स्टेशन पर जमा हो गये। बिना किसी पूर्व तैयारी के घोषित इस ‘‘तात्कालिक इमरजेन्सी’’ का देश के 15 करोड़ प्रवासियों, मजदूर और लोगों पर बहुत बुरा असर पड़ा। इस बीच गुजरात, दक्षिण भारत और उत्तर प्रदेश के सम्पन्न मध्यवर्ग को लग्जरी बसों में भरकर पुलिस की निगरानी में उनके गंतव्य तक पहुंचाया भी गया। लॉकडाउन में विदेशी सैलानियों के इण्डिया गेट पर भ्रमण की भी खबरें हैं।
प्राचीन भारत में जैसे वर्ण व्यवस्था मजबूत थी वैसे ही अब यहां वर्ग व्यवस्था जड़ जमा रही है। आर्थिक उदारीकरण और वैश्वीकरण ने अमीरी और गरीबी के बीच खाई को बहुत बढ़ा दिया है। विगत कुछ वर्षों में यहां साम्प्रदायिक ध्रुवीकरण के तेज होने से एक सम्प्रदाय विशेष (मुस्लिमों) में असुरक्षा एवं आक्रोश काफी बढ़ा है। संविधान की धज्जियां उड़ाकर गरीब मुसलमानों एवं दलितों पर दबंगों के हमले बढ़े हैं और हमलावरों को राजनीतिक संरक्षण मिलने से समाज में कटुता और अविश्वास भी गहराया है। देश में लाँकडाउन और कोरोना वायरस संक्रमण के सन्दर्भ में भी साम्प्रदायिक विद्वेष, गरीबों की उपेक्षा और उन पर पुलिसिया जुल्म तथा सरकारी लापरवाही बड़े पैमाने पर देखी गयी है। अब भी जो लोग अपने घर नहीं पहुंच सके और जहां भी फंसे हुए हैं वे सरकारी कुव्यवस्था के शिकार हैं और भूख, अभाव तथा अव्यवस्था में जीने को मजबूर हैं। लॉकडाउन के सरकारी पैकेज 1.70 लाख करोड़ रुपये में 10 फीसद भी इन बहुसंख्यक गरीब मजदूरों के लिए नहीं हैं। सरकार के रवैये और अब तक की घोषणा से देश का लगभग 40 करोड़ श्रमिक, किसान संतुष्ट नहीं है। उसे आगे की जिन्दगी का अंधेरा परेशान कर रहा है।
लॉकडाउन के साइड इफेक्ट
भारत में असंगठित क्षेत्र देश की करीब 94 फीसद आबादी को रोजगार देता है और देश की अर्थव्यवस्था में इसका 45 फीसद योगदान है। लॉकडाउन की वजह से असंगठित क्षेत्र पर बुरी मार पड़ी है। रातों रात लाखों लोगों के रोजगार छिन गए हैं। खेती किसानी की स्थिति भी अच्छी नहीं हैं। यह समय खेती के लिए बेहद महत्त्वपूर्ण है। नयी फसल तैयार है लेकिन खेतों को मजदूर नहीं मिल रहे हैं। माल की ढुलाई बन्द होने से अनाज और कृषि उपज काफी बरबाद हो रही है। भारत की कुल आबादी का 58 फीसद हिस्सा खेती पर निर्भर है और देश की अर्थव्यवस्था में कृषि का 256 बिलियन डालर का योगदान है। यह अन्दाजा नहीं लगाया जा रहा है कि मौजूदा हालात में अर्थव्यवस्था को कितना नुकसान होगा?
कुछ और अलग-अलग सेक्टर के अध्ययन भी आये हैं। जैसे सेन्टर फॉर एशिया पैसिफिक एविएशन (सीएपीए) के अनुमान के अनुसार एविएशन इन्डस्ट्री को करीब 4 अरब डालर का नुकसान झेलना पड़ेगा। इसका असर टूरिज्म और हॉस्पिटैलिटी उद्योग पर पड़ेगा। आटो इण्डस्ट्री में करीब 2 अरब डालर के नुकसान का अनुमान है। विशेषज्ञ कह रहे हैं कि कोरोना वायरस संक्रमण एवं लॉकडाउन से प्रभावित भारतीय अर्थव्यवस्था में जान फूंकने के लिए कम से कम 10 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज की जरूरत है।
कोरोना वायरस संक्रमण ने बदली जीवनशैली
कुछ महीने या साल जो भी लगें, कोरोना वायरस संक्रमण तो थम ही जाएगा लेकिन यह लोगों के जीवन जीने के तरीके को बदल चुका होगा। कुछ आदतें तो लोग खुद अपना लेंगे और कुछ सरकार और पुलिस समझा देगी। समाज में कुछ शब्द प्रचलन में भी आ गए हैं। जैसे सोशल डिस्टेन्सिंग, क्वारेनटाइन, आइसोलेशन, लॉकडाउन, कोरोमियल्स आदि। जाहिर है अब लोगों को आपस में फासला रखना होगा, हर दूसरे पर शक करना होगा। गले मिलना तो दूर हाथ मिलाने में भी परहेज करना पड़ेगा।
यदि साम्प्रदायिक समूहों का वर्चस्व रहा तो व्यक्ति इन्सान कम, हिन्दू-मुसलनमान के रूप में ही पहचाना जाएगा। लोगों के रोजमर्रा के जीवन में जिन नये उत्पादों का महत्व बढ़ गया है उनमें सेनिटाइजर, मास्क, ग्लव्स (दस्ताने), पर्सनल प्रोटेक्शन किट (पीपीई), गन थर्मामीटर आदि अब हर मध्यवर्गीय परिवार में आवश्यक रूप से रखे जाने लगेंगे।
याद कीजिए दुनिया में एचआइवी/एड्स संक्रमण के स्थापित होते ही (सन् 1980 के बाद) चिकित्सा में डिस्पोजेबल उपकरण, कन्डोम आदि जीवन के आवश्यक अंग बन गए थे। ऐसे ही अब जब आप कहीं जाएंगे तो आपको अपना हाथ और शरीर सेनेटाइज करना होगा। शायद आप न हाथ मिला पाएं, न गले मिल सकें और प्यार का चुम्बन तो आपके लिए मुश्किल ही हो जाए।
बदली रोगों की प्राथमिकताएं
कोरोना वायरस संक्रमण के इस भयावह दौर में अस्पतालों में रोगों और मरीजों की प्राथमिकताएं बदल जाएंगी। आकस्मिक एवं गहन चिकित्सा विभाग में संक्रामक रोगों का विभाग अलग से लगभग सभी अस्पतालों में बनाया जाएगा। चिकित्सक अब कोरोना संक्रमण को अन्य रोगों की तुलना में ज्यादा अहमियत दिया करेंगे। अस्पतालों के अपने रोग और उपचार की व्यवस्था में जन स्वास्थ्य को ज्यादा महत्व देना होगा। कैंसर, हृदय रोग, मधुमेह, पेट के रोग, किडनी, लीवर के रोग, मानसिक रोग आदि से भी ज्यादा अब कोरोना वायरस संक्रमण व वायरस संक्रमण को अहमियत दी जाएगी। सभी निजी और सरकारी अस्पताल अब अपने यहां ज्यादा से ज्यादा वेंटिलेटर, आइसीयू, आइसोलेशन वार्ड आदि की व्यवस्था में लग गये हैं। चिकित्सकों के निजी क्लीनिक में भी मरीजों के बैठने की जगह को बदला जाना जरूरी होगा। मरीजों को मास्क पहनना लगभग अनिवार्य कर दिया जाएगा। कहीं भी थूकना गम्भीर अपराध की श्रेणी में डाला जा सकता है। क्लीनिक या अस्पतालों में प्रवेश द्वार पर ही थर्मल स्कैनर लगाये जाएगें। विशेषज्ञों के चयन की प्राथमिकता बदल जाएगी।
देखा जा रहा है कि इमरजेंसी मेडिसिन एवं महामारी विशेषज्ञों का महत्व अचानक बढ़ गया है। अस्पतालों व क्लीनिक के बाह्य मरीज विभाग (ओपीडी) का प्रतीक्षा कक्ष नये रूप में तैयार किया जा रहा है ताकि मरीज आपस में पर्याप्त दूरी सुनिश्चित कर सकें। कई शहरों के अस्पतालों में मरीजों के बैठने और बिस्तर की व्यवस्था में साम्प्रदायिक विभाजन को अहमियत दिया जा रहा है। अब आप जब भी अस्पताल या चिकित्सक के पास परामर्श के लिए जांगे तो सम्भवतः आपको यह घोषणापत्र भरना होगा कि आप हाल-फिलहाल में कहीं विदेश यात्रा से तो नहीं लौटे।
महामारी अधिनियम 1897
कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से देश में लॉकडाउन की पृष्ठभूमि में जिस अहम कानून/अधिनियम की मुख्य भूमिका है वह है महामारी अधिनियम 1897, जो 123 वर्ष पुराना है। यह अधिनियम पहली बार अंग्रेजों के जमाने में लागू किया गया था, जब पूर्व बम्बई स्टेट में उसी वर्ष बूबोनिक प्लेग ने महामारी का रूप लिया था। इस अधिनियम की केवल चार धाराएं हैं और इसका उपयोग तब किया जाता है जब राज्य या देश पर कोई बड़ा संकट आने वाला हो या कोई खतरनाक बीमारी/महामारी देश में प्रवेश कर चुकी हो। कोरोना वायरस संक्रमण (कोविड-19) से निबटने के लिए केन्द्र सरकार ने इस अधिनियम की धारा 2 को लागू करने का निर्देश राज्यों और केन्द्र शासित प्रदेशों को दिया है।
इस अधिनियम की धारा 2 में ‘लॉकडाउन’ लागू करने, लॉकडाउन का उल्लंघन करने वालों पर आइपीसी की धारा 188 के तहत सजा देने का प्रावधान है। इस अधिनियम के तहत सरकार को यह अधिकार है कि वह व्यक्ति या व्यक्तियों के समूह (जो महामारी से ग्रस्त हैं) को किसी अस्पताल या अस्थायी आवास में रख सके। इसी अधिनियम में सरकारी आदेश नहीं मानने वाले व्यक्ति को 6 माह तक के कारावास तथा जुर्माने का प्रावधान है। इस अधिनियम में सरकारी कर्मचारी एवं पुलिस को कार्यपालन के लिए कानूनी सुरक्षा का भी प्रावधान है। यह अधिनियम 1897 के अलावा 1959 में उड़ीसा के पुरी जिले में तथा 2009 के पुणे में, 2015 में चण्डीगढ़ में, 2018 में गुजरात के वडोदरा जिले में लगाया जा चुका है। इन दिनों पूरे देश में यह अधिनियम 3 मई तक (फिलहाल) लागू हो चुका है।
कोरोना वायरस संक्रमण काल की परिस्थितियां
कोरोना वायरस संक्रमण ने रोग और महामारी के प्रति मानवीय समाज को नये रूप में जीने को बाध्य कर दिया है। अब तक किसी भी घातक महामारी या बीमारी के फैलने पर राज्य और पुलिस की इतनी केन्द्रित और सशक्त भूमिका आम लोगों ने नहीं देखी थी।
अभी पहली बार जब पूरे देश में वैश्विक महामारी कोरोना वायरस संक्रमण की वजह से ‘लॉकडाउन’ को कड़ाई से लागू किया गया तो पता चला कि नागरिकों के निजता के कानूनी प्रावधान इस महामारी अधिनियम 1897 के सामने बौने हैं। निजता का अधिकार भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत जीवन का अधिकार और निजी स्वतंत्रता के अधिकार का मूलभूत हिस्सा है। यह संविधान के भाग 3 के तहत प्रदत्त आजादी का ही हिस्सा है। इसके अनुसार किसी भी व्यक्ति को विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया के अतिरिक्त उसके जीवन और शरीर की स्वतंत्रता व अधिकार से वंचित नहीं किया जा सका, हालांकि संविधान के अनुच्छेद 352 के अनुसार राष्ट्रीय आपातकाल में अनुच्छेद 358, 359 राष्ट्रपति को यह अधिकार देता है कि वह मौलिक अधिकार का निलम्बन कर दे लेकिन अनुच्छेद 20 और 21 में दिए गए अधिकार किसी भी दशा में वापस नहीं लिए जा सके। आज महामारी अधिनियम 1897 तथा बहुमत प्राप्त केन्द्र सरकार की गतिविधियों की समीक्षा करें तो स्पष्ट दिखेगा कि सरकार पुलिस की मदद से देश में कोई भी कड़ा कदम भी उठा सकती है।
कोरोना वायरस संक्रमण के बाद का भारत
कोरोना वायरस संक्रमण के कम होते ही दुनिया धीरे धीरे चलने लगेगी। इस बीच सरकार द्वारा उठा;s ग;s बहुत से तात्कालिक कदम लोगों की जिन्दगी का हिस्सा बन जाएंगे। सत्ता ij काबिज सरकार अपने मन मुताबिक निर्णय तेजी से लेगी बगैर विपक्ष या लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की परवाह किये। लोगों और सरकार के काम करने के तरीके बदल जाएंगे। ज्यादातर स्कूल, कॉलेज और नौकरियां ‘आँनलाइन’ हो जाएंगी। मोबाइल, कम्प्यूटर के आपके डेटा सरकारी सर्विलांस पर होंगे। नागरिक अधिकारों के लिए जन संगठनों का सामूहिक लोकतांत्रिक प्रतिरोध राष्ट्रविरोधी ठहरा दिया जाएगा जिसे अधिकांश सम्पन्न मध्यवर्ग और पूंजीपतियों का समर्थन होगा। गुटनिरपेक्ष देशों, क्षेत्रीय सहयोग, की जगह एकीकृत वैश्विक व्यवस्था को मजबूत करने का पूरा प्रयास होगा। राज्यों की शक्तियां घटा दी जाएंगी और लोकतंत्र के नाम पर कथित राष्ट्रवादी एकीकृत राजनीति और मजबूत होगी। लोकतंत्र का दायरा सिमटेगा।
वैश्विक महामारी (पैन्डेमिक) के दौर में सभी व्यक्तियों को कुछ नियमों का पूरी तरह पालन करना होता है। इसके लिए सरकार लोगों की निगरानी करती है और नियम तोड़ने वाले को दण्ड देती है। इसके लिए आपके आधार नम्बर, मोबाइल नम्बर एवं कम्प्यूटर डेटा अहम भूमिका निभाएंगे। आपके इर्द-गिर्द लगे कैमरे आप पर बराबर निगरानी करेंगे और तकनीक के सहारे सरकार जब चाहेगी आपको पकड़ लेगी और उनके नियंत्रण के जो भी उपाय किये हैं वह जल्द खत्म नहीं होंगे और आप पुलिस के माध्यम से सरकार के हर अच्छे-बुरे आदेश को मानने के लिये बाध्य किए जाएंगे। अब सरकार से सवाल पूछने की गुंजाइश भी बहुत कम रह जाएगी। वैश्विक स्तर पर सत्ता का नियंत्रण सबसे ज्यादा ताकतवर देश के पास होगा और राष्ट्रीय स्तर पर आपकी सरकार शक्तिशाली होगी। लोकतंत्र की परिभाषा अब ‘‘जनता का जनता के द्वारा जनता के लिये शासन’’ के बजाय ‘‘जनता के लिये सरकार का शासन’’ होगा जिसमें विपक्ष लगभग मौन होगा।
क्या आप तैयार हैं इस नयी शासन व्यवस्था के लिए?
लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं।