सुनील दत्त और नरगिस का प्रेम यदि आज के यूपी में होता तो…

किश्वर देसाई द्वारा लिखी गई किताब ‘द ट्रू लव स्टोरी ऑफ नरगिस’ के मुताबिक राज कपूर से अलग होने के बाद वो आत्महत्या करने के बारे में सोचने लगी थीं। आज वैलेंटाइन डे के दिन राज कपूर और नरगिस की प्रेम कहानी के बारे में जानना मौजू होगा।

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…आर या पार हो जट्टा तगड़ा होजा: तिहाड़ में गूंजते लहरी नगमे और पैर पर लिखी एक इबारत

मनदीप बाहर आये कुछ कहानियां लेकर। तिहाड़ में बंद किसानों की कहानियां। उनके पास न तो कोई रिकॉर्डर था, न कैमरा, न नोटबुक और न मोबाइल। बाहर आते ही उन्‍होंने अपने नोट्स मीडिया को दिखाये, जो पुलिस की लाठी से सूजे अपने पैरों पर उन्‍होंने लिख मारे थे। उन्‍हीं नोट्स के आधार पर उन्‍होंने एक संक्षिप्‍त कहानी लिखी और जनपथ को भेजी है।

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धर्म और राष्ट्रवाद आधारित समूह ‘अन्य’ के प्रति हमारी संवेदना को क्यों हर लेते हैं? कैसे बचें?

सामान्यतः एक समूह के लोग अपनी आत्मछवि अच्छी करने के लिए अपने समूह से बाहर के लोगों के नकारात्मक पहलू ढूंढते हैं। यही सोच हमें दूसरों की तकलीफों को पहचानने और उनसे सहानभूति करने से रोकती है।

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म्यांमार में तख्तापलट: एक साल के लिए आपातकाल, आंग सान सू की और राष्ट्रपति नज़रबंद

1 फरवरी को जबकि नई संसद को समवेत होना था, सुबह-सुबह फौज ने तख्ता-पलट कर दिया। कई मुख्यमंत्रियों, मंत्रियों और मुखर नेताओं को भी उसने पकड़कर अंदर कर दिया है। यह आपातकाल उसने अभी अगले एक साल के लिए घोषित किया है।

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‘किसान सच्चा पृथ्वीपति है, उसे सरकार से क्यों डरना?’ किसान आंदोलन के लिए गांधीजी के कुछ सबक

आज की हमारी सरकार भले ही किसानों की योग्यता और बुद्धिमत्ता पर संदेह करती हो और किसानों के साथ चर्चा करने वाले अनेक वार्ताकार उन्हें नासमझ के रूप में चित्रित करते हों किंतु गांधी जी उनमें एक आजाद, जाग्रत और प्रबुद्ध नागरिक के दर्शन करते हैं।

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इस आंदोलन का ‘महात्मा गांधी’ कौन है?

किसान आंदोलन को तय करना होगा कि उसकी अगली यात्रा में कितने और कौन लोग मार्च करने वाले हैं! उन्हें चुनने का काम काम कौन करने वाला है?

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दो महीने से चल रहे किसान आंदोलन को समझने के लिए कुछ ज़रूरी बिन्दु

इस समय इस आंदोलन पर बहुत सारे विश्लेषण आ रहे हैं लेकिन उन्हीं विद्वानों के विश्लेषणों पर ध्यान दें जो पिछले कई दशकों से किसानों के हित की बात कर रहे हैं। कॉरपोरेट घरानों के शुभचिंतक विद्वानों के नजरिये को पढ़ते समय भी इन विश्लेषणों की रोशनी में ही उनकी परख करें।

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क्या न्यायपालिका का काम कार्यपालिका और विधायिका के फैसलों को संरक्षण देना है?

अगर सरकार की मंशा आंदोलन को समाप्त करने अथवा मामले को लंबा खींचकर किसान नेताओं के धैर्य की परीक्षा लेने के लिए सुप्रीम कोर्ट का उपयोग करने की थी तो सुप्रीम कोर्ट ने सरकार की यह मंशा पूरी की है और स्वयं को उपयोग होने दिया है।

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किसान आंदोलन ने आत्मनिर्भरता की असली लड़ाई का रास्ता खोल दिया है!

क्या सरकार शेयर बाजार में होने वाले लेन-देन पर मात्र 0.5% का टर्नओवर टैक्स लगाकर आत्मनिर्भरता कर नहीं लगा सकती और इसके जरिए 4-5 लाख करोड़ रुपये सालाना नहीं वसूल सकती है? जबकि 1% के आत्मनिर्भरता कर के माध्यम से किसानों की मांग और गरीब भारत को व्यापक खाद्य सुरक्षा प्रदान करने से जुड़ी तमाम लागतों से भी अधिक राजस्व की वसूली हो सकती है।

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सरकार के लिहाज का नया न्‍यायिक शिष्‍टाचार

किसी को तेल लगाना या खुश करना एक जज का काम नहीं है। लिहाज अपने मूल में मौन सम्‍मति की द्योतक है जहां कोई संवैधानिक कुतुबनुमा नदारद होता है। सोचिए, इस लिहाज के पीछे शर्तें क्‍या-क्‍या हो सकती हैं?

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