उत्तर प्रदेश में अपराध के चार दशक के इतिहास में पहली बार एक साथ आठ पुलिसकर्मियों की हत्या की घटना को अंजाम देने वाले गैंगस्टर विकास दूबे को मध्यप्रदेश के उज्जैन में महाकाल मंदिर से कथित रूप से गिरफ्तार कर लिया गया है। कथित तौर पर इसलिए, क्योंकि देखने में यह गिरफ्तारी कम, सरेंडर ज्यादा लग रही है। तथ्य कुछ कह रहे हैं। सबसे पहले एक नज़र बीती रात से घटे घटनाक्रम पर। पूरे दो दिन तक पुलिस ने विकास दूबे के नोएडा और फरीदाबाद में होने की कहानी बतायी। कल रात से ही अटकलें लगायी जा रही थीं कि विकास नोएडा के फिल्म सिटी में किसी चैनल पर लाइव सरेंडर करेगा। इस अफ़वाह के समानांतर कल रात ही उज्जैन के डीएम और एसएसपी ने महाकाल मंदिर में बैठक की। कल रात साढ़े आठ बजे के करीब उज्जैन के डीएम आशीष सिंह व कप्तान मनोज कुमार भारी हड़बड़ाहट में महाकाल मंदिर पहुँचे। दोनों वहां दर्शन के लिए नहीं गये थे। मंदिर परिसर के एक कक्ष में दोनों के बीच मंथन चला। सुबह विकास दूबे ने सरेंडर कर दिया। कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि इतना अलर्ट होने के बावजूद विकास दूबे मंदिर में आराम से दर्शन करके वापस आ गया। आज सुबह पता चला कि मंदिर के गार्ड ने विकास दुबे को पहचाना। गार्ड से विकास दुबे ने बोला कि वो विकास दुबे है। फिर कानपुर क्षेत्र के प्रभारी रहे और उज्जैन के प्रभारी मंत्री नरोत्तम मिश्र का बयान आया। कांग्रेस के मुताबिक संयोग की बात है कि कल ही महाकाल मन्दिर थाने के टी.आई. बदले गये थे। कल ही पुलिस लाइन से अरविन्द सिंह तोमर को लाकर महाकाल थाने का प्रभारी बनाया गया और महाकाल थाना प्रभारी प्रकाश वास्कले को नीलगंगा थाने ट्रांसफर कर दिया गया।
संपादक
कानपुर के बिठूर के शिवली थाना अन्तर्गत बिकरु गांव के निवासी विकास की हिस्ट्रीशीट उत्तर प्रदेश की राजनीति और अपराध के ताने-बाने का एक छोटा-सा सिरा है। आज चर्चा का विषय बने विकास के आपराधिक जीवन की शुरुआत लगभग 30 साल पहले नब्बे के दशक में हो चुकी थी। विकास ने उन दिनों छोटे-मोटे अपराध करना शुरू किया था और पुलिस की गिरफ्त में आने के बाद स्थानीय रसूखदारों की पैरवी के बाद उसे अभयदान मिलता रहा। इससे उसका हौसला बढ़ता गया।
इस दौर में कानपुर देहात के इलाकों में ब्राह्मणों की बहुलता वाले गांवों में भी कुर्मियों और यादवों का राजनैतिक वर्चस्व बढ़ रहा था। यह बात अगड़ी जातियों के गले नहीं उतर रही थी। राजनैतिक उत्थान ने पिछड़ी जातियों को काफी मजबूत कर दिया था। उनका प्रभाव क्षेत्र कृषि और पशुपालन से इतर सरकारी ठेकों एवं अन्य व्यवसायों में बढ़ने लगा था। दूसरी तरफ अगड़ी जातियों के पास न खेत बचे थे और न ही कांग्रेस के ज़माने का राजनैतिक प्रभाव। ऐसे में उस दौर में आये दिन पिछड़ी जातियों के लोगों के द्वारा अगड़ी जातियों के साथ संघर्ष की खबरें आम हुआ करती थीं।
उसी दौर में किसी स्थानीय मामले को लेकर बगल के गांव के कुछ चौधरी लोगों ने विकास के पिता का अपमान किया, जिसका बदला लेने के लिए विकास ने बिकरू से सटे गांव दिब्बा निवादा में घुस कर चौधरी समुदाय के लोगों को जमकर पीटा। विकास के ऊपर मामला दर्ज हुआ और पुलिस उसे पकड़कर थाने भी ले आयी लेकिन पूर्व विधायक नेकचन्द्र पाण्डेय की पैरवी के चलते विकास जल्द ही बाहर आ गया।
कहते हैं इस घटना के बाद कानपुर के अगड़ी जाति के नेताओं को विकास के रूप में एक औजार मिल गया था। हर बार जातिगत क्षत्रपों को उनके अंजाम तक पहुंचाने के लिए विकास नाम के औज़ार का इस्तेमाल तकरीबन हर राजनैतिक दल के नेताओं ने किया और विकास ने बेहद शातिर तरीके से इस पिछड़ा बनाम अगड़ा के संघर्ष के बीच अगड़ी जातियों और विशेष रूप से ब्राह्मणों के बीच पनप रहे अपने संभावित दुश्मनों को भी नेस्तनाबूत करना शुरू कर दिया।
नब्बे के दशक के पूर्वार्ध में बिल्हौर के पास राजन कटियार की हत्या हुई जिसमें विकास के बहनोई रामखेलावन पाण्डेय को नामजद किया गया। माना जाता है कि उक्त घटना को विकास के इशारे पर अंजाम दिया गया था। इस घटना के कुछ समय बाद ही बिकरू गांव के ही एक स्थानीय दबंग ब्राह्मण झुन्ना बाबा की हत्या हुई जिसमें कथित तौर पर विकास का हाथ बताया गया।
विकास की नज़र उनकी 16 बीघा ज़मीन के एक चक पर थी और उसी को हथियाने के लिए इस घटना को अंजाम दिया गया था। इस घटना का मामला दर्ज हुआ था लेकिन पीड़ित परिवार ने बाद में शिकायत वापस ले ली। इस घटना के बाद विकास के नाम की गूंज कानपुर मण्डल के राजनैतिक धुरंधरों तक पहुंच चुकी थी। इसी बीच उसे एक स्थानीय नेता का पूर्णकालिक राजनीतिक वरदहस्त प्राप्त हुआ। उन भाजपा नेता का चुनाव क्षेत्र तत्कालीन चौबेपुर विधानसभा क्षेत्र में होने के कारण विकास उनके लिए एक मज़बूत सेनापति साबित हुआ। बिकरू से लगायत शिवली तक विकास का वर्चस्व स्थापित होने लगा और नेताजी को वोट मिलने लगे।
विकास ने इस वरदहस्त का फायदा उठाते हुए ज़मीनों पर कब्ज़ा, स्थानीय ठेकों और व्यापारियों से वसूली का विस्तार किया। इसी बीच विकास के रिश्ते तत्कालीन सांसद श्याम बिहारी मिश्र से भी प्रगाढ़ हो गये। इसके बाद मानो उसकी महत्वाकांक्षा को पंख लग गये। उसने अपने प्रभाव क्षेत्र को कानपुर से सटे जनपदों में विस्तार देना शुरू कर दिया।
लल्लन बाजपेयी से दुश्मनी और वर्षों तक चला खूनी संघर्ष
1996 में उत्तर प्रदेश की राजनीतिक उथल-पुथल अपने चरम पर थी। भाजपा का मंदिर आन्दोलन का नशा अब वोटरों के मन से धीरे-धीरे उतर रहा था और कांग्रेस आपसी लड़ाई में हाशिये पर जा रही थी। भाजपा को सपा-बसपा की बढ़ती राजनैतिक पैठ से जगह-जगह चुनौती मिल रही थी और इसी बीच कांशीराम की सोशल इंजीनियरिंग के तहत कई अगड़ी जातियों के कद्दावर नेताओं का बसपा में आना शुरू हो चुका था। इसी क्रम में भाजपा नेता हरिकिशन श्रीवास्तव जो कि भाजपा के नेता थे, ने भी बसपा का दामन थाम लिया, तो उनके साथ उनका सबसे ख़ास सिपहसालार विकास भी बसपा में शामिल हो गया।
उस साल हुए चुनाव में भाजपा के उम्मीदवार संतोष शुक्ल थे जिनके चुनाव संचालन की कमान एक अन्य स्थानीय दबंग लल्लन के हाथ में थी। इस चुनाव में भाजपा और बसपा के बीच कड़ी टक्कर हुई और विकास की लल्लन के साथ झड़प के कई छोटे-बड़े मामले हुए। अंततः विकास का सिक्का चला और हरिकिशन श्रीवास्तव कुछ हज़ार वोटों के अंतर से विजयी हुए। उनके विजय जुलूस पर शिवली बाजार में हमला हुआ और उसी दिन से विकास और लल्लन एक दूसरे के जानी दुश्मन बन बैठे।
चुनाव बीतने के कुछ हफ़्तों के बाद ही लल्लन के भाई पर गोलियां बरसायी गयीं। इस मामले में विकास समेत उसके भाइयों को भी नामजद किया गया। नब्बे के दशक के अंत में कानपुर देहात के इलाकों में बढ़ती आबादी के बीच कस्बायी इलाकों का गैर-योजनाबद्ध विस्तार अपने चरम पर था और ज़मीनों के दाम आसमान छूने लगे थे। विकास ने ज़मीनों पर कब्ज़े बढ़ाये और वसूली के नये आयाम खोज कर खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना लिया।
साथ ही उसने न सिर्फ अपने परिवार के सदस्यों को तीन गांवों की प्रधानी दिलवायी बल्कि खुद के लिए भी जिला पंचायत सदस्य का पद प्राप्त किया। इस पद पर वो 15 वर्षों तक काबिज़ रहा। विकास का प्रभाव क्षेत्र अब शिवली समेत मंधना, बिल्हौर, शिवराजपुर और कानपुर शहर तक फैल चुका था। 2000 में विकास को कानपुर के शिवली थानाक्षेत्र स्थित ताराचंद इंटर कॉलेज के सहायक प्रबंधक सिद्धेश्वर पांडेय की हत्या के मामले में नामजद किया गया था। इसी साल उसके ऊपर रामबाबू यादव की हत्या की साजिश रचने का आरोप लगा था। बताया जाता है कि रामबाबू की हत्या की साजिश उसने जेल से बैठकर रची थी।
बसपा से नजदीकियां और उससे मिला प्रश्रय
विकास को लगातार मिलते राजनैतिक प्रश्रय का नतीजा वर्ष 2001 में दिखा। उसने जीवन की सबसे दुःसाहसिक घटना को अंजाम दिया। विकास ने 11 नवंबर, 2001 को कानपुर के थाना शिवली के अंदर घुसकर तत्कालीन श्रम संविदा बोर्ड के चैयरमेन, राज्यमंत्री भाजपा नेता संतोष शुक्ला की हत्या कर दी थी। संतोष शुक्ला हत्याकांड ने पूरे प्रदेश में हड़कंप मचा दिया था लेकिन पुलिस विकास का कुछ नहीं बिगाड़ पायी और वो कई दिनों तक फरार घोषित रहा।
जानकारों की मानें तो विकास अपने इलाके में ही रहता था लेकिन राजनैतिक दबाव के कारण उस पर कोई कार्रवाई नहीं होती थी। विकास ने इस मामले में आत्मसमर्पण भी उसी साल के अक्टूबर महीने में बसपा सरकार आ जाने के बाद किया। इस आत्मसमर्पण को बड़े ही नाटकीय अंदाज़ में नेताओं और पुलिसकर्मियों की मौजूदगी में अंजाम दिया गया।
उसके बाद विकास जेल में बैठकर ही जरायम की दुनिया में आगे बढ़ने लगा। बाद में विकास की नज़दीकियां चौबेपुर के तत्कालीन बसपा विधायक अशोक कटियार से भी हो गयीं। इस बीच उसे बसपा से निष्कासित भी किया गया, लेकिन विकास द्वारा खुलेआम यह दावा किया गया कि तत्कालीन राष्ट्रीय उपाध्यक्ष मायावती ने उसे भाजपा के राजनैतिक दबाव के चलते निकाला। इसके बावजूद उनका आशीर्वाद उसे सदैव प्राप्त होता रहता है।
उसी दौर की तत्कालीन मंत्री प्रेमलता कटियार पर भी विकास को प्रश्रय देने के आरोप तब लगे थे जब विकास के प्रभाव के कारण प्रेमलता के पुत्र को जिला पंचायत चुनावों में जीत मिली थी। विकास के ऊपर पांच दर्जन से अधिक मामले दर्ज़ हैं जिसमें प्रमुख रूप से 2004 में एक केबल व्यवसाई दिनेश दुबे की हत्या, 2013 में अन्य रसूखदार की हत्या समेत 2018 में अपने चचेरे भाई अनुराग पर जानलेवा हमला करवाने का मामला भी है। इस मामले में अनुराग की पत्नी ने विकास समेत चार लोगों के खिलाफ एफआइआर दर्ज करायी थी।
खुद को शिवली का स्वघोषित डॉन बताने वाले विकास ने कई स्थानीय और आसपास के जनपदों के युवाओं की टीम तैयार कर रखी है जो उसके इशारों पर कानपुर नगर से लेकर कानपुर देहात तक लूट, डकैती, मर्डर जैसे जघन्य अपराधों को अंजाम देते हैं।
विकास ने करोड़ों रुपये की संपत्ति अर्जित की है। विकास के दो पुत्र हैं जिसमें से एक इंग्लैण्ड में शिक्ष्रा प्राप्त कर रहा है एवं दूसरा पुत्र कानपुर शहर में रहता है। विकास ने अपने गांव के समीप ही एक स्कूल एवं डिग्री कालेज समेत एक विधि महाविद्यालय भी बनवाया है।
सोशल मीडिया पर भी होता रहा घमासान
कानपुर की घटना के बाद विपक्ष ने उत्तर प्रदेश सरकार को सोशल मीडिया पर सुबह से ही घेरना शुरू कर दिया था। समाजवादी पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव और उनके समर्थकों ने जगह-जगह प्रदर्शन कर दिवंगत पुलिसकर्मियों के लिए शोकसभा भी आयोजित की। दोपहर होने तक विकास दूबे की पत्नी के चुनाव प्रचार में बीते दिनों इस्तेमाल हुए सपा समर्थित पोस्टर जारी होने के बाद विपक्ष थोड़ा शांत हुआ। प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष अजय लल्लू ने भी इसे शहादत करार देते हुए मामले की जांच की मांग की।
इसी आपाधापी में विपक्षी दलों के समर्थकों द्वारा एक अन्य भाजपा नेता विकास दूबे की मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ समेत वरिष्ठ नेत्री उमा भारती एवं अन्य वरिष्ठ नेताओं के साथ तस्वीरें जारी की गयीं जिसके बाद उक्त नेता को अपना वीडियो सन्देश जारी कर सफाई देनी पड़ी। इसी बीच विपक्ष द्वारा प्रदेश के कैबिनेट मंत्री बृजेश पाठक के साथ विकास दूबे की नज़दीकियों को जाहिर करती एक तस्वीर भी जारी की गयी, हालांकि बाद में स्पष्ट हुआ है उक्त तस्वीर बृजेश पाठक के बसपा में रहने के दिनों की है।
उत्पल पाठक बनारस स्थित स्वतंत्र पत्रकार हैं। यह कहानी न्यूजलॉन्ड्री हिन्दी से साभार प्रकाशित है।