तन मन जन: कोरोना वायरस के इर्द-गिर्द गहराते घरेलू और वैश्विक विवाद


कोरोना वायरस से उपजी महामारी और इसके प्रसार को लेकर विवाद गहराता जा रहा है। कोरोना वायरस संक्रमण के बढ़ते मामले, उनकी गम्भीरता और विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लू.एच.ओ.) की भूमिका पर शुरू से ही सवाल खड़े हैं। डब्लू.एच.ओ. पर आरोप है कि उसने इस वायरस को लेकर देर से चेतावनी जारी की और दुनिया को इस जानकारी से अलग रखा। इसके अलावा चीन और अमरीका भी कई देशों के निशाने पर हैं।

जब कोरोना वायरस का पहला मामला वर्ष 2019 के नवम्बर में वुहान शहर में सामने आया तब काफी दिनों तक दुनिया को यह पता नहीं चला कि कोरोना वायरस संक्रमण का आतंक मनुष्यों पर शुरू हो चुका है। सवाल चीन पर उठे कि उसने समय पर दुनिया को यह क्यों नहीं बताया कि खतरनाक कोरोना वायरस अब मनुष्यों को संक्रमित कर उसकी जान ले रहा है। अमरीका ने डब्लूएचओ पर सवाल उठाया कि उसने कोरोना वायरस संक्रमण की जानकारी उससे छुपायी। अमरीका के अलावा आस्ट्रेलिया, ब्रिटेन, जर्मनी समेत कई देशों ने चीन के साथ डब्लूएचओ पर सवाल उठाये कि वायरस के मानव में संक्रमण के फैलने की जानकारी होते हुए भी उसने समय पर चेतावनी क्यों नहीं दी। दुनिया के करीब 62 देशों ने आधिकारिक तौर पर चीन और डब्लूएचओ के खिलाफ कोरोना वायरस फैलाने के आरोपों की जांच के मांगपत्र पर हस्ताक्षर किये हैं।

वैश्विक विवाद के पीछे के आरोप

कोरोना वायरस संक्रमण से सम्बन्धित विवाद में देखें कि मुख्य आरोप क्या है। आरोप यह है कि डब्लूएचओ ने चीन के साथ मिलकर कोरोना वायरस के संक्रमण की जानकारी को अमरीका से छिपाया। अमरीकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने डब्लूएचओ के फंड रोकने की धमकी दी और उस पर चीन की तरफदारी का आरोप भी लगाया। ट्रंप ने तो यहां तक कहा कि डब्लूएचओ चीन की जनसम्पर्क एजेन्सी के रूप में काम कर रहा है, जबकि चीन ने डब्लूएचओ के कार्य की सराहना की और कहा कि ऐसे विवाद से कोरोना वायरस संक्रमण नियंत्रण के प्रयासों पर असर पड़ेगा। एक अमरीकी अखबार ‘न्यूयार्क पोस्ट’ के अनुसार चीन ने मान लिया है कि उसने देश में फैले कोरोना वायरस संक्रमण के शुरूआती नमूनों और मामले से जुड़े सबूतों को नष्ट कर दिया है। आरोप में चीन के राष्ट्रीय स्वास्थ्य आयोग के एक सुपरवाइजर लियो डेंगफेंग के हवाले से कहा गया है कि चीन सरकार ने 3 जनवरी 2020 को एक आदेश जारी कर कोरोना वायरस सैम्पल को अनधिकृत प्रयोगशालाओं में नष्ट करने के लिए एक आदेश जारी किया था। अमरीका की धमकी और दुनिया भर में हो रही आलोचना के बीच डब्लूएचओ ने कोरोना वायरस संक्रमण से निपटने में चीन के प्रयासों की सराहना ही की है।

भारत में कोराना वायरस संक्रमण विवाद

जहां दुनिया में कोरोना वायरस संक्रमण के फैलने, फैलाने को लेकर विवाद है वहीं भारत में इस वायरस के संक्रमण से मरने वाले लोगों के आंकड़ों को लेकर विवाद है। लगभग सभी राज्यों में कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों का आंकड़ा छुपाया जा रहा है। भारतीय चिकित्सा अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) स्वयं परेशान है कि आंकड़ों की स्पष्टता नहीं होने से महामारी की तीव्रता के आकलन में दिक्कत है और सही आकलन के अभाव में महामारी से बचाव के सही प्रयासों तक पहुंचना मुश्किल है।

कोरोना संक्रमण से प्रभावित लोगों की संख्या और इससे मरने वाले व्यक्तियों के आंकड़ों में हेरफेर ने इस महामारी की मृत्युदर के निर्धारण पर सवाल खड़ा कर दिया है। शुरू में (मार्च 2020) कोरोना संक्रमण से मरने वाले लोगों का आंकड़ा कुछ और (0.6 फीसद) था जबकि एक महीने बाद ही अप्रैल के अन्त तक कोरोना संक्रमण की मृत्यु दर घटकर 0.3 फीसद रह गयी। आइसीएमआर के महानिदेशक डॉ. बलराम भार्गव ने शुरू में कोरोना संक्रमण के कम्यूनिटी ट्रान्समिशन से इनकार किया था लेकिन अब न तो सरकार और न ही आइसीएमआर इस बात की पुष्टि कर रहा है कि यह संक्रमण अब कम्यूनिटी ट्रान्समिशन में आ चुका है या नहीं।

दुनिया भर में 55 लाख संक्रमित लोगों में से 3 लाख 44 हजार से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है जिसमें अकेले अमरीका में मृतकों का आंकड़ा एक लाख को पार कर चुका है। भारत में भी संक्रमित मरीजों की संख्या 1 लाख 35 हजार है जबकि मरने वालों का आंकड़ा 3,909 के लगभग है (सभी आंकड़े 24 मई 2020 की दोपहर तक के हैं)।

भारत में अब कोरोना संक्रमण के इलाज और दूसरे पहलुओं की चर्चा से ज्यादा आंकड़ों का खेल होगा। केन्द्र सरकार विगत 24 मार्च को किये लॉकडाउन की अनिवार्यता और उसके फायदे गिनाने के लिए कह रही है कि लॉकडाउन नहीं होता तो भारत में कोरोना संक्रमण से प्रभावित मरीजों की संख्या 30 लाख और मरने वालों का आंकड़ा 2.1 लाख होता। सरकार के अनुसार देश में संक्रमण के 80 फीसद मामले पांच राज्यों के हैं जिनमें महाराष्ट्र, तमिलनाडु, दिल्ली, गुजरात एवं राजस्थान है। देश में रोजाना कोरोना वायरस संक्रमित लोगों का आंकड़ा तेजी से बढ़ रहा है। रोजाना संक्रमितों का जो आंकड़ा सरकार के पास है उसकी तुलना में दो गुना से ज्यादा लोग निजी क्लीनिक में कोरोना वायरस संक्रमण की जांच और उपचार करा रहे हैं। सरकार ने कोरोना वायरस से पीड़ित मरीजों को ‘‘घर में ही रहकर इलाज कराने’’ की सुविधा शायद इसीलिए दी है।

कोरोना संक्रमण वैक्सीन विवाद

विलियम हेसलटाइन अमरीका के जाने-माने वैज्ञानिक हैं। प्रो. हेसलटाइन ने कैंसर, एचआइवी समेत अनेक जानलेवा रोगों पर अब तक अनेक शोध किये हैं। कोराना वायरस संक्रमण के टीके को लेकर उनकी स्पष्ट प्रतिक्रिया है कि ‘‘इसमें वक्त लगेगा’’। उन्होंने कहा है, ‘‘सरकारों को टीका के भरोसे नहीं रहना चाहिए। यदि किसी देश का नेतृत्व यह उम्मीद लगाये हुए है कि टीका तैयार होने पर ही लॉकडाउन में ढील दी जाएगी तो यह निर्णय सही नहीं है।’’

उधर डब्लूएचओ अब धीरे-धीरे अपने पैंतरे बदल रहा है। शुरू में इस वायरस को नियंत्रित करने की उम्मीद में दुनिया थी और ऐसा लग रहा था कि संगठन कुछ आशाजनक खबर देगा लेकिन इस मुद्दे पर लम्बी चुप्पी के बाद यह बयान कि ‘‘हमें कोराना के साथ ही जीना होगा’’ इस बात को स्पष्ट करने के लिए काफी है कि यह वायरस अब स्थायी रूप से मानव समाज में ही रहने वाला है। डब्लूएचओ के वरिष्ठ अधिकारी माइकल रायन कहते हैं कि कोरोना वायरस अब एक नया ‘एन्डेमिक वायरस’ बन कर रह जाएगा। आशंका है कि यह वायरस कभी खत्म ही न हो। एचआइवी वायरस भी तो ऐसे ही लॉन्च हुआ था। खत्म नहीं हुआ न!

ऐसे ही अब ‘‘हर्ड इम्यूनिटी’’ की भी चर्चा चल रही है। जाहिर है कि धीरे-धीरे इन्सानों के समूह के ज्यादातर लोग इस वायरस से इम्यून हो जाएंगे तो वैसे ही वायरस का प्रकोप सीमित होता चला जाएगा। वैसे तो हर्ड इम्यूनिटी द्वारा किसी टीकाकरण कार्यक्रम की मदद से अतिसंवेदनशील लोगों की सुरक्षा सुनिश्चित कर ली जाती है, लेकिन इन सारी बातों का निचोड़ यह है कि यह कोरोना वायरस जो शुरू से ही विवादास्पद रहा, उसकी जांच, उपचार, बचाव के टीके सब अभी तक विवादों से ही घिरे हैं।

कोरोना से बचाव के टीके का सच

इस सदी के सबसे ज्यादा चर्चित एवं खतरनाक बताये जाने वाले कोरोना वायरस से बचाव के टीके की चर्चा तो कोरोना वायरस के कहर से पहले से ही गर्म है। अमरीका में हुए एक शुरुआती रिसर्च में कहा गया है कि नॉवेल कोरोना वायरस में एक खास बदलाव (डी-614 एवं जी-614) ज्यादा हावी है। उल्लेखनीय है कि कोरोना वायरस संक्रमण में योरप एवं अमरीका के दूसरे हिस्से में पाये गये डी-614 स्ट्रेन ज्यादा खतरनाक हैं। इसका स्ट्रेन जी-614 भी ऐसे ही खतरनाक है। यह खतरनाक इसलिए है कि यह शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली या वैक्सीन से बचने के लिए अपना स्वरूप बदलने में सक्षम है। इसके अलावा चीन में कोरोना वायरस के स्ट्रेन को लेकर हुए रिसर्च में पाया गया है कि इसके 30 से अधिक स्ट्रेन हो सकते हैं। यह अध्ययन चीन के झेजियांग विश्वविद्यालय का है।

चौंकाने वाली बात यह है कि इसमें से 19 स्ट्रेन तो पहली बार सामने आये हैं। इस स्ट्रेन की क्षमता भी अलग-अलग है। कुछ में कोशिकाओं पर आक्रमण की क्षमता अधिक है तो कुछ में तेज प्रसार की क्षमता है। ये सब स्ट्रेन अब तक सबसे ज्यादा घातक रूप में योरप और न्यूयार्क में देखे गये हैं। यूनिवर्सिटी आफ शेफील्ड, लास अलामोस नेशनल लेबोरेट्री के वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया है कि कोरोना वायरस का आकार तेजी से बदलता रहता है और यह तेजी से बढ़ता है। इसका नतीजा क्या होगा अभी तक स्पष्ट नहीं है। यूनिवर्सिटी कालेज लंदन में हुए एक अन्य अध्ययन में कोरोना वायरस में हो रहे 198 बदलावों की पहचान की गयी है। कुल मिलाकर कोरोना वायरस की वैक्सीन और दवा को लेकर किये जा रहे दावे अब भी हवा में हैं।

कोरोना की वैक्सीन और भारतीय कम्पनी

इधर एक खबर यह भी है कि आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक संभावित वैक्सीन का भारतीय कम्पनी ‘‘सीरम इन्स्टीच्यूट आफ इंडिया’’ बड़े पैमाने पर निर्माण भी शुरू कर चुकी है। कम्पनी के सीईओ आदर पूनावाला ने इस बात की पुष्टि की है कि टीका जल्द ही बाजार में आ जाएगा। बताया जा रहा है कि सीरम इन्स्टीच्यूट ‘कैंडिडेट वैक्सीन’ का निर्माण शुरू कर चुका है। आक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के रिसर्चर अपने कैंडिडेट वैक्सीन ChAdox1nCov-19 का परीक्षण 1,110 लोगों पर कर चुके हैं। उम्मीद है कि अक्टूबर तक कम्पनी 4 करोड़ वैक्सीन बना लेगी। वैसे कम्पनी अब तक के परिणामों से अतिउत्साहित है और वह सालाना 1.5 अरब वैक्सीन डोज़ बनाने की क्षमता रखती है। कोरोना वायरस संक्रमण का मामला चूंकि अब और बढ़ेगा तथा लोगों के ज्यादा संक्रमित होने की स्थिति में वैक्सीन का धन्धा खूब चलेगा इसलिए अब कोरोना वायरस संक्रमण के रोकथाम के सामाजिक, राजनीतिक उपायों को छोड़कर सरकार भी वैक्सीन के भरोसे ही है। आइसीएमआर, भारत सरकार का स्वास्थ्य मंत्रालय सब अब कोरोना के इलाज और बचाव के चल रहे उपायों से धीरे-धीरे पीछे हट रहे हैं और लोगों को कोरोना के साथ जीने का मंत्र देकर वैक्सीन बेचने/बांटने में लगना चाह रहे हैं।

अभी चिकित्सा क्षेत्र की प्रचलित पत्रिका ‘‘द लैंसेट’’ में प्रकाशित एक लेख में चीन में विकसित कोविड-19 के टीके के शुरुआती ट्रायल के परिणामों को लेकर एक लेख भी छपा है। इसमें दावा किया गया है कि इस टीके में सार्स सीओवी-2 को खत्म करने वाले एन्टीबाडी को बनाने और शरीर की रोग प्रतिरोधक तंत्र की कोशिकाओं की मदद करने वाले गुण देखे गये हैं, हालांकि चीन के बीजिंग इन्स्टीच्यूट आफ बायोटेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं को अभी इस वैक्सीन पर भरोसा नहीं है।

बहरहाल कोरोनावायरस संक्रमण ने जो मानवीय संकट उत्पन्न किये उससे पूरी दुनिया में आर्थिक तबाही बरबादी के उच्चतम स्तर तक हुई है। दैनिक मजदूरी करने वाले तथा निजी रोजगार में लगे दुनिया के 400 करोड़ लोग और भारत में 40  करोड़ लोगों के समक्ष आजीविका का संकट गहरा चुका है। यदि उन्हें काम नहीं मिला तो वे अगले 20-25 दिनों में तबाही के कुएं में धंसने लगेंगे। इससे सामाजिक असंतुलन, सामाजिक हिंसा में बदल सकता है। मसलन अपराध और लूटमार बढ़ेगी। गृहयुद्ध जैसे हालात के खतरे दिखायी दे रहे हैं। क्या हम समय रहते कुछ ठोस कर सकते हैं?

‘आपदा में अवसर’ तलाशने की जगह क्या हम ‘आपदा के सबक’ से मानवीय समाज और मानवता की खुशहाली का रास्ता नहीं ढूंढ सकते? यह काम अकेले सरकार नहीं कर सकती। विपक्ष को साथ लेकर देश में एक अच्छी राजनीतिक पहल से ही शायद कोई हल निकले।


लेखक जनस्वास्थ्य वैज्ञानिक और होमियोपैथिक चिकित्सक हैं


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3 Comments on “तन मन जन: कोरोना वायरस के इर्द-गिर्द गहराते घरेलू और वैश्विक विवाद”

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