तिर्यक आसन: बधाई हो! हिंदी में पाठकों से अधिक संख्या साहित्यकारों की हो गई है

बधाई देने के लिए कई प्रकाशकों, संपादकों, साहित्यकारों ने ‘पेड स्लीपर सेल’ बना रखी है। ‘पेमेंट’ नकद के रूप में नहीं होता। कई अन्य रूपों में होता है। बधाई की जितनी नई उपमा, उतना अधिक पेमेंट।

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बात बोलेगी: सब सपनों के मर जाने से जीवन नहीं मरा करता है

यह सब एक ऐसे समय में लिखा जा रहा है जब किसी को किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता क्योंकि किसी के साथ कुछ हो जाने से खुद उसे ही कुछ फर्क नहीं पड़ता। जब पीड़ितों को पीड़ा से फर्क न पड़े और उत्पीड़कों के लिए भी उत्पीड़न एक सामान्य बात हो जाए और यह सब एक व्यवस्था के तहत हो रहा हो तब सामुदायिक जीवन में फर्क पड़ने जैसा कोई भाव नहीं रह नहीं जाता है।

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पंचतत्व: जंगल कटते हैं तो कटते रहें… क्योंकि हीरा तो है सदा के लिए!

वन और पर्यावण मंत्रालय देश के पर्यावरण कानूनों में बड़े बदलाव लाने की तैयारी कर रहा है और वन्य जीव संरक्षण अधिनियम, 1972 में भी बदलाव लाया जा सकता है. अगर यह रिपोर्ट सही है तो इसका मतलब यह हुआ कि पर्यावरणीय रूप से संवेदनशील इलाकों में में भी इन्फ्रास्ट्रक्चर और औद्योगिक ढांचे विकसित किये जा सकेंगे.

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दक्षिणावर्त: थोपी गयी महानताएं और खंडित बचपन के अंतर्द्वंद्व

एक तरफ तो तालिबानी शासन से मुक्ति, जिस दौरान गुल-मकई के छद्म नाम से लिखकर मलाला प्रख्यात हुईं, दूसरी तरफ इंग्लैंड का खुलापन और तीसरी तरफ इस्लाम का शिकंजा, जहां तयशुदा नियमों और संहिता के अलावा कुछ भी बोलना शिर्क है, गुनाह-ए-अज़ीम है। हो सकता है कि मलाला ने शादी के विषय में खुलकर बोल दिया हो, वह पश्चिम के खुलेपन से प्रेरित रही हों, लेकिन वह अपने देश की ‘कल्चरल एंबैसडर’ भी तो हैं और इसीलिए हिजाब, इसीलिए उनके पिता की सफाई, आदि!

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तिर्यक आसन: शुद्ध फ़कीर, संकर फ़कीर और साइलेन्ट फ़कीर

इस देश में जिसके भी साथ बेचारा जुड़ा उसकी दुर्दशा तय है। बेचारी गंगा, बेचारी गाय, बेचारी स्त्री, बेचारे आदिवासी, बेचारे दलित, बेचारे अल्पसंख्यक, बेचारे किसान, बेचारे मजदूर, बेचारी भारत माता। इनकी बेचारगी ‘प्रोडक्ट’ बन जाती है। प्रोडक्ट अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बिकता है।

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बात बोलेगी: बारहवीं की सरकारी तेरहवीं और मेरिटोक्रेसी का मिडिल क्लास अचार

अचार की तरह हिंदुस्तान में बारहवीं कक्षा का इम्तिहान भी भविष्य के महलों की बुनियाद है। बारहवीं कक्षा की अंकसूची और उसका पर्सेंटाइल भी अचार की तरह का एक जायका है। इन दोनों तरह के जायकों पर ही जैसे मोदीयुग में संकुचित होते मध्यवर्ग का वजूद टिका है।

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तन मन जन: रामदेव के दावे और IMA का गुस्सा

इस विवाद की आड़ में सरकार ने जनता को रामदेव एवं आइएमए के सर्कस में व्यस्त कर अपनी विफलता से लोगों को ध्यान बंटा दिया। कुल नतीजा क्या निकला पता नहीं मगर इस नूराकुश्ती ने वर्तमान सरकार के विफल कोरोना संक्रमण नियंत्रण के प्रति उत्पन्न जनाक्रोश को थोड़ा ठंडा कर दिया।

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पंचतत्व: ये बनारस में गंगा पर जमी काई है या नदियों के प्रति हमारी सामाजिक चेतना का अक्स?

आपको याद होगा जब पिछले साल इन दिनों देशव्यापी लॉकडाउन चल रहा था तब महामारी की पहली लहर के दौरान गंगा का पानी साफ हो गया था। कम प्रदूषण को वजह बताते हुए लोगों ने तब बालिश्त भर लंबे पोस्ट लिखे थे। हरी गंगा पर लोग कम लिख रहे हैं।

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दक्षिणावर्त: हिंदी का एक लेखक क्या, किसके लिए और क्यों लिखे? साल भर के कुछ निजी सबक

लेखन एक तपस्या है, जिसमें आपका हृदय और मस्तिष्क समिधा बनते हैं। यह कोई हंसी-ठट्ठा नहीं है। न ही, यह अंशकालिक काम है। अगर आप लेखन को अपना सर्वस्व समर्पित नहीं कर चुके हैं, तो फिर वह लेखन भी आपको पूर्ण-काम नहीं बनाएगा। बहसें भले ही आप कितनी करते रहें।

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तिर्यक आसन: मेरी दो महत्वाकांक्षाएँ चोरी की और बाकी सब साइलेंट कॉपी!

हजार-दस हजार करोड़ की चोरी को ‘करप्शन’ कहा जाता है। दस-बीस रूपये की चोरी को चोरी कहा जाता है। बड़ी चोरी करने वाला ‘करप्ट’ होता है। छोटी चोरी करने वाला चोर। करप्ट एलिट वर्ग से है, तो हजार-दस हजार करोड़ की चोरी करने के बाद भी उसका वर्ग नहीं बदलता। वो कैपिटलिस्ट ही रहता है। दस-बीस रूपए की चोरी करने वाले का वर्ग बदल जाता है।

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