कॉर्पोरेट फासीवाद एक खतरनाक मुकाम पर खड़ा है. सरकारें अपनी विफलता को छिपाने के लिए नये-नये मनोगतवादी खेल खेल रही हैं. एक तरफ कोरोना में भारत की हालत विश्वव्यापी स्तर पर ख़राब हो रही है. दूसरी तरफ राम मंदिर का उद्घाटन हो रहा है. अर्थव्यवस्था बरबादी की ओर है और कॉर्पोरेट फासीवाद सार्वजनिक फायदे के कल-कारखाने बेचने में लगा हुआ है. सब कुछ राम भरोसे है.
यही सब सोचते हुए और राम को याद करते-करते मैं भी पूरे देश की तरह सो गया. तभी अचानक राम-राम कहते हुए राम जी मेरे सपने में आए. बोले, “कैसे हो ‘प्रच्छन बौद्ध’ रघुवंशी? हमें क्यों याद किया?”
मैंने कहा, “प्रभु, आजकल कोरोना काल में भारत में बस आपके मंदिर के उद्घाटन की चर्चा है चारों तरफ!”
वे बहुत जोर से हँसे और बोले, “जब कर्म पर भरोसा नहीं होता तो लोग कहते है कि सब राम भरोसे है. मैं जिसके करीब रहा, वो कभी सुखी नहीं रहा. देवी सीता को देख लो या मेरे बाद मेरे वंश रघुवंश की हालात देख लो. देवी सीता का नाम जब मेरे नाम से जुड़ता है, तभी कल्याण होता है. अब लोगों ने देवी सिया को मेरे नाम से हटा दिया है, तो क्या होगा?”
मैंने कहा, “आप तो खुश होंगे उद्घाटन से!”
इतने में राम जी नाराज़ हो गये और क्रोधित होते हुए बोले, “पिछले साल 9 नवंबर को राम जन्मभूमि विवाद मामले में सुप्रीम कोर्ट का जो फ़ैसला आया और जिसके बाद मंदिर निर्माण का रास्ता साफ़ हो गया था, उसी फ़ैसले में 6 दिसंबर 1992 को बाबरी मस्जिद के विध्वंस को न सिर्फ़ ग़ैर-क़ानूनी बताया गया है बल्कि उस घटना को (1992 में कल्याण सिंह की बीजेपी सरकार द्वारा) सुप्रीम कोर्ट को दिये गये आश्वासन को वादाख़िलाफ़ी भी करार दिया गया है. यही नहीं, अप्रैल 2017 में बाबरी मस्जिद विध्वंस केस की सुनवाई के दौरान एक मौक़े पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था: “मौजूदा केस में यह ज्ञात होता है कि 25 साल पहले जो कथित अपराध हुआ था उसने भारत के संविधान के सेकुलर ताने बाने को झकझोर दिया है। मैं पहले भी षडयंत्र का शिकार हुआ था शम्बूक वध में, जिसके कारण अपना स्वार्थ चलाने वालों ने सनातन का कितना नुकसान किया. वे आज भी मेरे न्याय को बदनाम कर रहे हैं. तुलसीदास के साथ किसने अत्याचार किया था, जिससे वो अयोध्या में आकर रहे और मस्जिद में रहे और उन्होंने तो कुछ नहीं लिखा. वो किसी से डरे नहीं. और बाद में काशी के वही लोग उनके रामचरित मानस को इस्तेमाल कर रहे हैं. मेरी वंशावली को देखें तो आप पाएंगे कि मेरे वंश की 36वीं पीढ़ी में महान सत्यवादी राजा हरिश्चंद्र व 48वीं पीढ़ी में गंगा अवतरण हेतु प्रसिद्ध भगीरथ का जन्म हुआ था। राजा हरिश्चंद्र के बारे में कहा जाता है कि उन्होंने काशी में पवित्र गंगा के तट पर श्मशान घाट पर डोम का कार्य किया था व अपने पुत्र रोहिताश्व की मृत्यु पर उसके दाह संस्कार हेतु अपनी ही पत्नी से उसकी साड़ी का आधा टुकड़ा कर के रूप में लिया था. हरिश्चंद्र के समय आदि गंगा गोमती थीं किन्तु अपने स्वार्थ के लिए लोगों ने इतिहास में बदलाव लाया. यह सब धनलाभ और राजनीतिक लाभ के लिए किया गया असत्य है”.
मैं उन्हें सुनता रहा, वे बोलते रहे।
“तुम्हें तो पता है कि कई रामायण लिखे गये. उसी एक रामायण में सहस्रमुखी रावण के साथ मेरा युद्ध होता है और मैं मूर्छित हो जाता हूं. तब देवी सिया गुस्से में काली बनकर संहार कर हमें बचाती हैं. कुछ सनातनी और हिन्दू अब हिटलर और मुसोलिनी को मानते हैं, मनुस्मृति को मानते है. वे मातृ शक्ति को इज्जत नहीं देते. उन्होंने देवी सिया को मेरे नाम से अलग कर दिया है. सुमा का बनाया वृत्तचित्र काशी से अयोध्या की शांति यात्रा फिर से देखो. हिटलर और मुसोलिनी को मानने वाले उपनिषद भी नहीं पढ़ते हैं. महाभारत के द्रोण-पर्व (67/17,18) और शांति-पर्व (26-28) में संकृति के पुत्र दानी रंतिदेव की कहानी पढ़ना, किन्तु लिखना मत नहीं तो ये सब तुम्हारा मॉब लिंचिंग कर देंगे. इसीलिए मुण्डक उपनिषद (1/2/7-11) ने कर्मकांड का विरोध किया था. छान्दोग्योपनिषद् (5/10-16) से पहले पुनर्जन्म का कहीं जिक्र नहीं है.”
मैंने कहा, “मेरे लिए क्या आदेश है प्रभु?
वे बोले, “तू सही दिशा पर है. दशा जो भी हो. अपनी परंपरा के वसुधैव्य कुटुम्बकम और सभी को समान न्याय और सम्मान के लिए जातिवाद और पितृसत्ता की अप-परंपरा के उन्मूलन के लिए संघर्ष तेज करो और जल्द ही तुम लोगों का वनवास ख़त्म होना है, किन्तु मुसोलिनी और हिटलर की विचारधारा का समापन करोगे, यह शपथ दो”.
मेरे शपथ लेने के बाद राम जी चले गये और मैं जय सियाराम कहता रह गया. आँख खुली तो घबरा कर उठा. सामने आतंकवादी कट्टरवाद का शिकार हुए कवि अवतार सिंह पाश की फोटो दिखी. सोचा सपने को लिखते हैं, तभी पाश की पंक्तियां याद आयीं:
अगर देश की सुरक्षा ऐसे ही होती है कि हर हड़ताल को दबा कर अमन को रंग चढ़ता है कि वीरगति बस सीमाओं पर मर कर परवान चढ़ती है कला का फूल बस राजा की खिड़की में ही खिलता है अकल हूकूमत के कुएं पर जुत कर ही धरती सींचेगी मेहनत को राजकमल के दरवाजे पर दस्तक ही बनना है तो हमें देश की सुरक्षा से खतरा है!
कवर तस्वीर 17वीं शताब्दी की एक प्राचीन पेंटिंग है जिसमें भगवान राम और सीता के सामने हनुमान हाथ जोड़े खड़े हैं
आप लोग अपने कलम का इस्तेमाल बहुत ही सोच समझकर समालोचक ढंग करते है। जिसमे एक निश्चित वर्ग के ,एक निश्चित सम्प्रदाय को प्रभावित करने वाले टुकड़े टुकड़े गैंग की छवि दिखती है। जिनके दिमाग मे ही देश का विखण्डन भरा हुआ रहता है । एक निश्चित समय तक कामयाब रहे लेकिन अब तो हेडिंग पढ़कर समझ आ जाता है लिखने वाला देश का कोई गद्दार है जो जानबूझकर किसी ऐसे मुद्दे पर विचार रखता है जो हमे एकजुट कर सकता है। तुम्हारी शिक्षा ही ऐसी मिली है जैसे आतंकवादी अपनी जान को हथेली में पहले रखते है ठीक वैसे ही हालात आप लोगो की होने वाली है।