स्वामी अग्निवेश जी से मेरी मुलाकात करीब तीस साल पहले 1991 में हर की पौड़ी, हरिद्वार पर हुई थी। तब मैं यूनाइटेड नेशंस यूथ ऑर्गेनाइजेशन से जुड़ा था। स्वामी जी से उस मुलाकात में हुई लम्बी बातचीत के दौरान उन्होंने मुझसे काशी आने की इच्छा जाहिर की।
फ़रवरी 1992 में श्रुति नागवंशी के साथ अपने जीवन की डोर जोड़ने के बाद हमने पर्यावरण प्रदूषण पर राज्यस्तरीय निबंध प्रतियोगिता करायी। इसका पुरस्कार वितरण समारोह और राहुल सांकृत्यायन जन्मशती का आयोजन 28 अक्टूबर 1992 को उदय प्रताप डिग्री कॉलेज के पुस्तकालय-सभागार में आयोजित किया गया, जहां स्वामी अग्निवेश जी मुख्य अतिथि थे और सुप्रसिद्ध साहित्यकार श्री बच्चन सिंह जी थे।
एक स्मारिका का भी प्रकाशन किया गया, जिसमें उत्तर प्रदेश के राज्यपाल बी. सत्यनारायण रेड्डी, संपूर्णानंद संस्कृत विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. विद्यानिवास मिश्र और हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर कीर्ति सिंह ने भी अपने सन्देश और लेख भेजे। डॉ. विद्यानिवास मिश्र ने अपने सन्देश में राहुल सांकृत्यायन के साथ काम करने का जिक्र किया और नवयुवकोंं को उनके द्वारा हिंदी के लिए किये गये काम का अनुसरण करने का आह्वान किया।
स्वामी अग्निवेश जी काशी कार्यक्रम के लिए आये और मेरे घर में ही रहे। उदय प्रताप कॉलेज में स्वामी जी ने ओजस्वी भाषण दिया, जिसने कॉलेज को हिला कर रख दिया।
अख़बारों ने कार्यक्रम के जो समाचार प्रकाशित किये, उनके शीर्षक कुछ निम्न थे: ‘’विश्व पर्यावरण को सबसे बड़ा खतरा विस्तारवादी देशोंं से’’, ‘’ब्राह्मणवादी व्यवस्था को नष्ट किये बिना सम समाज की रचना नहीं’’, ‘’आज धर्म के नाम पर पाखंड का बोलबाला’’ और ‘’सामाजिक विषमता को तोड़ने के लिए युवको से आगे आने का आह्वान’’ आदि।
कार्यक्रम के बाद मैं दिल्ली में स्वामी जी के कार्यालय 7, जंतर मंतर पर गया। स्वामी जी वहां नहीं थे। वहीं ऊपर उनके कार्यालय में कैलाश सत्यार्थी मिले। उनके साथ उनकी साथी सुमन भी वहां थीं। वह पर वे लोग दक्षिण एशिया बाल दासता विरोधी संगठन (SAACS) के तहत उत्तर प्रदेश के चुनाव में अभियान चलाना चाहते थे।
इसी दौरान सुमन और कैलाश सत्यार्थी जी से बातचीत में मैंने कहा कि SACCS का नाम जटिल है और आम जनता में ग्राह्य नहीं होगा। इसी बातचीत से निकल कर बचपन बचाओ आन्दोलन का नाम पहली बार सामने आया।
1993 में बचपन बचाओ आंदोलन के बनने और विधानसभा चुनाव के दौरान सक्रिय होने को लेकर उस वक्त अखबारों में बहुत खबरें छपी थीं।
27 अक्टूबर 1993 को कानपुर में एक सम्मेलन हुआ। इसी बीच सितम्बर 1993 में शराबबंदी आन्दोलन में स्वामी जी की गिरफ्तारी हुई, जिसका काशी से विरोध किया गया। इसी साल यानी 1993 में कैलाश सत्यार्थी, स्वामी से अलग हो गये और मैं बचपन बचाओ आन्दोलन के लिए कार्य करने लगा।
2014 में जब कैलाश सत्यार्थी को नोबेल शांति पुरस्कार मिला, तो स्वामी जी ने बिहार से मुझे फ़ोन कर के करीब दो घंटे लम्बी बात की। मैंने स्वामी जी से कहा कि “आप विस्तारवादी देशो के खिलाफ हैं, इसलिए आपको Right Livelihood award मिला जबकि कैलाश जी को नोबेल।”
स्वामी जी से मेरी अनेक मुलाकातें और विस्तृत बातें हैं, किन्तु स्वामी जी के दोस्ताना व्यवहार ने उन्हें एक साथी ही बनाए रखा जबकि समाजसेवा में स्वामी जी मेरे गुरु थे और हैं।
स्वामी जी का जन्म 21 सितम्बर को हुआ था और 21 सितम्बर विश्व शांति दिवस भी है। 2018 में स्वामी जी अपना जन्मदिन मनाने काशी आये थे। उसकी जिम्मेदारी मुझे मिली थी। साथ में बिहार के मनोहर जी भी आये। अनेक कार्यक्रम हुए। वे तमाम लोगों से मिले।
जन्मदिवस से एक दिन पहले 20 सितम्बर को मानवाधिकार जन निगरानी समिति ने यातना पीड़ितों के सम्मान में एक कार्यक्रम रखा था। कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में उपस्थित स्वामी अग्निवेश ने कहा था:
आज मुझे इस कार्यक्रम में सम्मिलित होकर बहुत अच्छा लगा कि वर्तमान परिस्थिति में यह सम्मान ऐसे पीड़ितों को दिया जा रहा है जो लगातार अपने परिवेश और संघर्षों के बावजूद न्याय के लिए लगातार संघर्ष करते रहे हैं। इसके साथ ही यह भी एक बहुत बड़ी बात है कि अपने जैसे पीड़ितों के लिए ये एक आदर्श उदाहरण भी प्रस्तुत कर रहे हैं, जिन्हें देखकर इनके जैसे अन्य पीड़ित भी अपने खिलाफ़ हुए अन्याय के खिलाफ लगातार संवैधानिक तरीके से संघर्ष कर न्याय पाने की प्रक्रिया में लगे हैं। यह बहुत महत्वपूर्ण है कि ऐसे लोग भारत के संविधान और न्याय व्यवस्था में अपना विश्वास रखते हैं जबकि भारत में आज ऐसा माहौल बना है कि व्यक्ति संवैधानिक तरीके से अपनी बात रखता है तो कुछ फासीवादी ताकतें उनके ऊपर हमला कर उनकी आवाज को दबाने का प्रयास करती हैं। इसका ज्वलंत उदहारण मै खुद हूं कि इधर बीच मेरे ऊपर फासीवादी ताकतों ने कई बार हमला करवा कर मेरी आवाज को दबाने का प्रयास किया है।
स्वामी अग्निवेश, 20 सितंबर 2018, वाराणसी
उन्होंने यह भी साझा किया कि जो हमारे वेदों की मूल भावना वसुधैव कुटुम्बकम है उसकी तरफ समाज को लौटना पड़ेगा तभी हम समाज के सर्वांगीण विकास की ओर बढ़ सकते हैं। स्वामी जी काशी विद्वत परिषद् के अध्यक्ष श्री रामयत्न शुक्ल से उनके आवास पर मिले और पहली बार आर्यसमाजी और सनातनी के बीच एक सद्भाव बना। मैंने स्वामी जी से कहा कि आप पाखंड का विरोध करें, किन्तु सनातन का नहीं। उस साल स्वामी जी ने अपने जन्मदिन पर प्रेस वार्ता करके श्री मोहन भगवत और श्री नरेंद्र मोदी को शास्त्रार्थ के लिए ललकारा था।
स्वामी जी से मिलने का कार्यक्रम 2019 में फिर बना। वे चाणक्यपुरी के पार्क में टहलते हुए मिले। मेरे और श्रुति के अलावा हमारे साथ शबाना भी उनसे मिलीं। स्वामी ने शबाना को उनके नाम से बुलाया, जबकि शबाना कुछेक बार ही स्वामी जी से मिली थीं। यह थी स्वामी जी की जमीनी कार्यकर्ताओं के प्रति इज्जत! स्वामी जी से हमने बातचीत की। मैंने उन्हें वसुधैव कुटुम्बकम पर आन्दोलन को बढ़ाने की राय दी थी, जिस पर वे बहुत संजीदा थे।
दिल बहुत दुखी है स्वामी जी के देहान्त से। वो भी अपने जन्मदिवस से केवल दस दिन पहले उनका जाना। स्वामी जी शरीर से गये हैं, किन्तु उनके विचार और आत्मा संघर्ष करती रहेगी कट्टरपंथी ताकतों के खिलाफ़। अपने गुरु को यही श्रद्धांजलि है मेरी।
अंत करने से पहले नेपाल के लोकतांत्रिक नेता, ग्वांगजू ह्यूमन राइट्स अवॉर्ड विजेता, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग, नेपाल के पूर्व कमिश्नर और नेपाल के राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार श्री सुशील पोखरैल का श्रद्धा भरा संदेश:
यह सुबह स्वामी जी के निधन का बहुत दुखद समाचार लेकर आयी। वह नेपाली जनता के करीबी मित्र थे। उन्होंने न सिर्फ कमैया लोगों (नेपाल में बंधुआ मजदूर) के सशक्तीकरण के लिए हमारे संघर्ष और कमैया प्रथा के अंत को अपना समर्थन दिया बल्कि वे हमारे जनवादी आंदोलन के दौरान भी हमारे कॉमरेड बने रहे। नेपाल के इतिहास में उनका योगदान और समर्थन याद रखा जाएगा।
श्री सुशील पोखरैल