नेपाल में बुर्जुआ जनवादी क्रांति के हासिल को संस्‍थागत करना पहला लक्ष्‍य : बाबूराम



‘समकालीन तीसरी दुनिया’ द्वारा नेपाल के राजनीतिक घटनाक्रम पर आयोजित एक अनौपचारिक संवाद सत्र 

बाएं से अचिन विनायक, आनंद स्‍वरूप वर्मा, बाबूराम भट्टराई और जया मेहता 

नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री और वरिष्‍ठ माओवादी नेता बाबूराम भट्टराई ने कहा है कि नेपाल में राजनीतिक स्थिरता का होना भारत के लिए बहुत आवश्‍यक है और भारत सरकार इस बात को समझती है, इसीलिए वह नेपाल के संविधान निर्माण समेत अन्‍य आंतरिक मामलों में कोई दख़ल नहीं दे रही तथा एक स्थिर और टिकाऊ शासन व संविधान के लिए नेपाल को पूरा सहयोग भी दे रही है। भट्टराई प्रवासी नेपालियों के संघ के एक कार्यक्रम में भारत आए थे जिस दौरान उन्‍होंने दिल्‍ली में पत्रकारों व राजनीतिक कार्यकर्ताओं के एक समूह को संबोधित करते हुए बुधवार को यह बात कही।

नई दिल्‍ली के एन.डी. तिवारी भवन में मासिक ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ की ओर से आयोजित एक अनौपचारिक संवाद सत्र में करीब पचासेक श्रोताओं को नेपाल के ताज़ा सियासी हालात पर संबोधित करते हुए बाबूराम भट्टराई ने नेपाल के माओवादी आंदोलन की शुरुआत के बारे में बताया कि आखिर कैसे उसकी पृष्‍ठभूमि भारत के माओवादी आंदोलन से ज़रा अलग है। उन्‍होंने कहा, ”माओ को प्रस्‍थान बिंदु मानते हुए नेपाल की परिस्थिति के हिसाब से हमने प्रयोग किया। हमारे यहां का माओवादी आंदोलन भारत से कुछ अलग किस्‍म का है। हमने 1990 के बाद माओवादी आंदोलन शुरू किया जब अंतरराष्‍ट्रीय कम्‍युनिस्‍ट आंदोलन संकट में थ्‍ाा। हमारा मुख्‍य संघर्ष बुर्जुआ जनवादी क्रांति के लिए था, इसीलिए दस साल में हम कामयाब हुए। वहां सामंतवाद और राजशाही थी, इसलिए वर्ग के साथ राष्‍ट्रीयता के प्रश्‍न को भी हमने उठाया। लैंगिकता, क्षेत्र और जाति के प्रश्‍नों को हमने सामूहिक रूप से संबोधित किया और उसी के हिसाब से रणनीति व मांगें तय कीं, जिसके बाद एक जनयुद्ध शुरू किया गया।”

नेपाल में संविधान बनाने की आखिरी तारीख  बीत चुकी है और पिछले दिनों वहां अचानक इस समयावधि के पूरा होने के बाद सियासी हलचल बढ़ गई थी। मीडिया में कहा जा रहा था कि नेपाल वापस हिंदू राष्‍ट्र बन सकता है। ऐसी परिस्थिति में नेपाल के भीतर और बाहर अपने समर्थक समूह को संबोधित करना माओवादी पार्टी के लिए बहुत जरूरी था। बाबूराम ने बताया कि माओवादी धड़ों की एकता की कोशिशों के साथ ही जरूरी है कि अपने समर्थकों तक सही बात को पहुंचाया जाए। इसीलिए वे भारत में प्रवासी नेपालियों के कार्यक्रम में आए हैं। इसके अलावा उन्‍होंने राष्‍ट्रपति समेत कई मंत्रियों से भी मुलाकात की है।

कार्यक्रम में सबसे पहले बाबूराम भट्टराई का स्‍वागत करते हुए ‘समकालीन तीसरी दुनिया’ के संपादक आनंद रूवरूप वर्मा ने नेपाल मंच पर प्रो. अचिन विनायक और जया मेहता के बुलाया। उसके बाद एक संक्षिप्‍त भूमिका रखते हुए उन्‍होंने सीधे बाबूराम से सभा को संबोधित करने का आग्रह किया। बाबूराम ने माओवादी पार्टी के शांति प्रक्रिया में जाने की पड़ताल संघर्ष की ऐतिहासिकता में करते हुए यह समझाया कि तब ऐसा क्‍यों जरूरी था। उन्‍होंने कहा, ”दुनिया की बाकी कम्‍युनिस्‍ट पार्टियों से हम थोड़ा आगे भी पहुंचे। नेपाल में जो स्थिति 2006 के बाद पैदा हुई वह यूरोप की तरह थी। नेपाल की भूरणनीतिक स्थ्‍िाति के हिसाब से हमने सोचा कि नुकसान ज्‍यादा हो सकता है, इसलिए बुर्जुआ ताकतों के साथ हमने कुछ समय के लिए मिलकर सामंतवाद को खत्‍म करने का तय किया। हमने शांति प्रक्रिया में जाते ही समावेशी, समानुपाती और सहभागितामूलक लोकतंत्र की बात की।”

बाबूराम भट्टराई का पूरा वक्‍तव्‍य यहां सुनें 

उन्‍होंने ईमानदारी से स्‍वीकार किया, ”हम जानते थे कि वर्ग, जाति, क्षेत्र, राष्‍ट्रीयता के नाम पर जो दमन होता है वह बुर्जुआ ढांचे में खत्‍म तो नहीं हो पाएगा लेकिन हमने बुर्जुआ जनवादी क्रांति कर के जो हासिल किया है उसको संस्‍थागत कर के हम समाजवाद की ओर जाने का प्रयत्‍न करेंगे। यह सर्वहारा के लिए भी फायदेमंद होगा। इसी सोच के साथ हम शांति प्रक्रिया में आए थे।”

करीब आधे घंटे के संबोधन के बाद आनंद स्‍वरूप वर्मा ने श्रोताओं के सवाल आमंत्रित किए। अधिकतर श्रोताओं ने बाबूराम से सवाल पूछे। एक सवाल के जवाब में बाबूराम ने बताया कि अब माओवादियों को जनयुद्ध चलाने की जरूरत नहीं है, अब जन आंदोलन से ही राजनीति आगे बढ़ेगी। उन्‍होंने कहा, ”नेपाली कांग्रेस और यूएमएल का गठजोड़ काफी प्रतिगामी है। इतनी जल्‍दी वे लोगों की आवाज़ नहीं सुनने वाले, इसीलिए वहां दोबारा संघर्ष शुरू होने का खतरा है।” माओवादी पार्टी इसी आशंका के चलते जनमत बनाने की कोशिश कर रही है।

सवाल पूछती वरिष्‍ठ पत्रकार सीमा मुस्‍तफा 

कुछ सवालों पर अपनी अनभिज्ञता को बाबूराम ने पूरी ईमानदारी से स्‍वीकार किया तो दूसरी ओर कुछ कड़वे सवालों को उन्‍होंने पूरी सहजता के साथ झेला। मसलन, सामाजिक कार्यकर्ता गोपाल कृष्‍ण ने नेपाल में मतदाता पहचान पत्र को लेकर एक अहम सवाल उठाया कि उसमें बायोीट्रिक डेटा पर माओवादी पार्टी का पक्ष क्‍या है। इसके अलावा उन्‍होंने ब्रह्मपुत्र नहीं के बारे में भी एक सवाल पूछा। दोनों से ही अपनी अनभिज्ञता जताते हुए बाबूराम ने कहा कि वे इन विषयों को पार्टी के संज्ञान में लाएंगे और इस पर ज्‍यादा जानकारी हासिल करेंगे। इसी तरह भारत और नेपाल के बीच हुए द्विपक्षीय व्‍यापार समझौते के बारे में विष्‍णु शर्मा के सवाल पर उन्‍होंने कहा कि हर द्विपक्षीय समझौता नकारात्‍मक नहीं होता और वे इस बात को मानते हैं कि गलोबलाइज़ेशन के बीच दुनिया से कटकर नहीं रहा जा सकता। कार्यक्रम में सीपीआइ(एमएल)- न्‍यू प्रोलितारियन के शिवमंगल सिद्धांतकर, विनीत तिवारी, जया मेहता, अचिन विनायक आदि ने भी अहम सवाल पूछे।

कार्यक्रम को वैसे तो कुल दो घंटे चलना था लेकिन आखिरी वक्‍त में किसी जरूरी संदेश के चलते समय से पहले ही श्रोताओं के सवालों को निपटाना पड़ा। धन्‍यवाद ज्ञापन प्रो. अचिन विनायक ने किया।


(जनपथ) 
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